माँ कात्यायनी की भक्ति से चारों पुरुषार्थों अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्ष की होती है प्राप्ति
महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं। माँ कात्यायनी स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। ये स्वर्ण के समान चमकीली हैं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी। इसीलिए ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं।
शक्ति की देवी माँ दुर्गा के छठे स्वरूप को माँ कात्यायनी के नाम से पूजा जाता है। महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर माँ दुर्गा उनकी इच्छानुसार..उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म ली थीं। महर्षि कात्यायन ने ही इनका पालन-पोषण किया। महर्षि कात्यायन द्वारा सर्वप्रथम पूजे जाने के कारण देवी दुर्गा के इस स्वरूप को कात्यायनी कहा गया।
कथा के अनुसार कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कीं। कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया, तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया।
महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं। माँ कात्यायनी स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। ये स्वर्ण के समान चमकीली हैं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी। इसीलिए ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं।
माँ कात्यायनी की महिमा
नवरात्र के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा का विधान है। माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। माँ कात्यायनी की उपासना एवं आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से चारों फलों अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भक्त के रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। माँ कात्यायनी की उपासना से साधक के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इनका गुण शोध कार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं। इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है। इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है। माँ कात्यायनी के पूजन से भक्त के भीतर अद्भुत शक्ति का संचार होता है।
माँ कात्यायणी के शस्त्र
माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है। माँ कात्यायनी अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान हैं। इनकी चार भुजाएं है। इनका एक हाथ अभय मुद्रा में, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है। माँ कात्यायनी के अन्य हाथों में तलवार तथा कमल पूष्प सुशोभित है। माँ कात्यायनी का अभय मुद्रा जहां सुरक्षा, शांति, परोपकार और भय को दूर करने का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं वरद मुद्रा चढ़ावा, सत्कार, दान, मदद, दया और ईमानदारी का प्रतीक है। यदि बात तलवार की करें तो माँ कात्यायनी के हाथ में सुशोभित तलवार की तेज धार और चमक ज्ञान का प्रतीक है। यह ज्ञान सभी संदेहों से मुक्त है। इसकी चमक और आभा यह बताती है कि ज्ञान के मार्ग पर कोई संदेह नहीं होता है। माँ कात्यायनी के हाथों में सुशोभित कमल पुष्प ऐश्वर्य और सुख का सूचक है। कमल के पुष्प को सद्भावना, शांति, समृद्धि एवं बुराइयों से मुक्ति का प्रतीक भी माना गया है।
माँ कात्यायणी की पूजा
दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें। फिर माता के परिवार में शामिल देवी-देवता की, जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं। इनकी पूजा के पश्चात माँ कात्यायनी की पूजा का विधान है। साधक को चाहिए का वह हाथों में फूल लेकर माँ कात्यायनी को शुद्ध और सच्चे मन से ध्यान एवं इस मंत्र का जाप करें।
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
गृहस्थ नवरात्र के छठे दिन सबसे पहले मां कात्यायनी की मूर्ति या तस्वीर को लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें। तदुपरांत चौकी पर मनोकामना गुटिका रखें। दीपक प्रज्जवलित रखें। उसके उपरांत हाथ में लाल पुष्प लेकर मां का ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप करें।
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
इसके बाद हाथ में लिए हुए पुष्प मां को अर्पण करें तथा मां का षोडशोपचार से पूजन करें। नैवेद्य चढाएं तथा एक सौ आठ की संख्या में इस मंत्र जाप करें। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। मंत्र की समाप्ति पर मां की प्रार्थना तथा आरती करें।
माँ कात्यायणी की साधना
नवरात्र के छठे दिन देवी दुर्गा के इस स्वरूप की साधना का विशेष महत्व है। जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं, उन्हें नवरात्र के छठे दिन माँ कात्यायनी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। मन को आज्ञा चक्र में स्थापित करने हेतु माँ का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने पर उसे सहजभाव से माँ कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। साधक इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक तेज से युक्त रहता है।
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं उन्हें दुर्गा पूजा के छठे दिन माँ कात्यायनी जी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। फिर मन को आज्ञा चक्र में स्थापित करने हेतु माँ का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। माँ कात्यायनी की भक्ति से साधक को अर्थ, कर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
माँ कात्यायनी मंत्र
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
कात्यायनी ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
माता कात्यायनी स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
देवी कात्यायनी कवच
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी
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