अलवर में 11 अक्टूबर को मनाई जाएगी महाराज अजमीढ़जी की जयंती, स्वर्णकार समाज छात्रों, भामाशाहों और मातृशक्ति को करेगा सम्मानित
राजस्थान के जिला अलवर में स्वर्णकार समाज की ओर से आदि देव महाराज अजमीढ़ जी की जयंती श्रद्धा-भक्ति एवं हर्षोल्लास के साथ मनाई जाएगी। अजमेर शहर को बसाकर मेवाड़ की नीव रखने वाले महाराज अजमीढ़ जी की जयंती 11 अक्टूबर को मनाई जाएगी। अलवर की जिला मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज समिति (रजि.) की ओर से इसकी तैयारियां अभी से शुरु कर दी गई हैं। इस पावन अवसर पर अनेक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे।
राजस्थान के जिला अलवर में स्वर्णकार समाज की ओर से आदि देव महाराज अजमीढ़ जी की जयंती श्रद्धा-भक्ति एवं हर्षोल्लास के साथ मनाई जाएगी। अजमेर शहर को बसाकर मेवाड़ की नीव रखने वाले महाराज अजमीढ़ जी की जयंती 11 अक्टूबर को मनाई जाएगी। अलवर की जिला मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज समिति (रजि.) की ओर से इसकी तैयारियां अभी से शुरु कर दी गई हैं। इस पावन अवसर पर अनेक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे।
समिति के जिला मीडिया प्रभारी प्रशान्त सोनी ने इस बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जयंती राधा कृष्ण मंदिर, अलवर से ध्वजरोहण एवं आरती के साथ शुरू होगी और महाराज जी की जयंती का मुख्य केंद्र 'रजत कलश' है, जो सवा किलो का है। उन्होंने बताया कि यह कलश लक्की ड्रा के माध्यम से जिले के किसी भाग्यशाली व्यक्ति को दिया जाएगा।
प्रशान्त सोनी ने बताया कि महाराज अजमीढ़ जी की जयंती पर अत्यंत सुंदर, आकर्षक और मनमोहक झांकियां भी निकाली जाएंगी। ये झांकियां शहर के मुख्य बाजारों जैसे चन्द्रप्रभु वाटिका, गायत्री मंदिर रोड से होते हुए कार्यक्रम स्थल पर पहुंचेंगीं,जहां समाज के लोगों द्वारा झांकियों का स्वागत किया जाएगा। कार्यक्रम के दौरान समाज के भामाशाहों और अन्य गणमान्य व्यक्तियों का भी स्वागत-सत्कार किया जाएगा।
प्रशान्त सोनी ने यह भी बताया कि गत वर्ष जिन बच्चों ने दसवीं और बाहरवीं कक्षा की परीक्षा में 75 प्रतिशत से अधिक अंक अर्जित किए है, उन्हें भी सम्मानित किया जाएगा। इसके अलावा गत वर्ष में सरकारी सेवाओं में जिन बच्चों ने समाज का नाम रोशन किया है, उन्हें भी सम्मानित किए जाने की योजना है। बच्चों और सरकारी सेवकों के अलावा वर्ष में जिन माताओं ने पहली बार बच्ची को जन्म दिया है, उस मातृशक्ति को सम्मानित किया जाएगा।
आपको बताते चलें कि आदि देव महाराज अजमीढ़ जी स्वर्णकार समाज के आदि पुरुष माने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि महाराज अजमीढ़ जी भगवान ब्रम्हा द्वारा उत्पन्न अत्री की 28वीं पीढ़ी में त्रेता युग में जन्मे थे। वे मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के समकालीन ही नहीं, बल्कि उनके परम मित्र भी थे।
आदि देव महाराजा अजमीढ़ जी के पिता का श्रीहस्ति थे, जिन्होंने महाभारत काल में वर्णित हस्तिनापुर नगर को बसाया था। अजमीढ़ जी जेष्ठ पुत्र होने के कारण हस्तिनापुर राजगद्दी के उतराधिकारी हुए और बाद में अजमीढ़जी प्रतिष्टानपुर (प्रयाग) और हस्तिनापुर दोनों राज्यों के भी सम्राट हुए। प्रारंभ में चंद्रवंशियों की राजधानी प्रयाग प्रतिष्टानपुर में ही थी। हस्तिनापुर बसाए जाने के बाद प्रमुख राज्यगद्दी हस्तिनापुर हो गई।
इतिहासकारों के अनुमान के मुताबिक ई.पू. 2000 से ई.पू. 2200 वर्ष में उनका राज्यकाल रहा। आदि देव महाराजा अजमीढ़ जी धर्म-कर्म में विश्वास रखते थे और उन्हें खिलौने तथा आभूषण बनाने का बेहद शौक था। अपने इसी शौक के चलते वे अनेक प्रकार के खिलौने, बर्तन और आभूषण बनाकर उन्हें अपने प्रियजनों को भेंट किया करते थे। उनके इसी शौक को उनके वंशजों ने आगे बढ़ाकर व्यवसाय के रूप में अपना लिया। तभी से वे स्वर्णकार के रूप में जाने गए और आज तक आभूषण बनाने का यह व्यवसाय उनके वंशजों द्वारा जारी है।
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