चमारों को लोग गाली क्यों देते हैं?
भारत में 6000 जातियां हैं लेकिन गाली सिर्फ़ चमारों को मिलती है। वह इसलिये क्योंकि वह शुरू से ही धर्म सत्ता और राज सत्ता के समक्ष तनकर खड़ा होता आया है। चमारों ने मिटा दिए गए बौद्ध धर्म को ज़िन्दा करके, अपना रविदासिया धर्म खड़ा करके और आजीवक धर्म का कन्सेप्ट दे कर ब्राह्मण की धर्म सत्ता को खुली चुनौती दी। ... प्रसिद्ध लेखक सतनाम सिंह की रिपोर्ट।
भारत में 6000 जातियां हैं लेकिन गाली सिर्फ़ चमारों को मिलती है। वह इसलिये क्योंकि वह शुरू से ही धर्म सत्ता और राज सत्ता के समक्ष तनकर खड़ा होता आया है। चमारों ने मिटा दिए गए बौद्ध धर्म को ज़िन्दा करके, अपना रविदासिया धर्म खड़ा करके और आजीवक धर्म का कन्सेप्ट दे कर ब्राह्मण की धर्म सत्ता को खुली चुनौती दी।
चमारों ने अपनी बहुजन समाज पार्टी बना कर, उसे राष्ट्रिय राजनीतिक पार्टी बनवाकर क्षत्रिय की राज सत्ता को खुली चुनौती दी। ब्रिटिश काल में राजपूत रेजिमेंट के बजाय चमार रेजिमेंट का इतिहास ज्यादा रोमांच और देश भक्ति से भरा है। वह व्यापार -वाणिज्य में फ़िक्की के समानान्तर अपना डिक्की ले आया है और बनिये के वर्चस्व को चुनौती दे रहा है। चमारों ने अपना मिटा दिया गया इतिहास स्वयं गढा।
चमारों ने द्विज साहित्य के मुकाबले अपना दलित साहित्य रचा जो आज पूरी दुनिया की विश्वविद्यालयों में पढाया जाता है। चमारों ने देश में अपना सबसे बड़ा सामाजिक सांस्कृतिक आंदोलन खड़ा किया। वह बालीवुड के मुकाबले अपने बहुजनवुड के चर्चे करने लगा है। वह अपना स्वयं का जातीय संगीत तक बनाने लगा है। वह हर ज़ुल्म ज़ोर जबरदस्ती के सामने डट कर खडा हो जाता है। वह टुकड़े - टुकड़े कट जाता है मगर झुकता नहीं। केवल वही है जो मनु से लेकर तुलसी दास की अमानवीय लिखितों को नकारता है। वह अपने तर्क की राम्पी से वेदों से लेकर पुराणों तक की खाल उधेड़ता है। उसने विपरीत परिस्थितियों में भी शिक्षा में ब्रह्मण के वर्चस्व को तोडा। चमार एक ज़िन्दा कौम है। जागृत कौम है। इसलिये कहावत बनी कि जब चमार का शासन आता है तो वह चमड़े के सिक्के चला देता है। इसलिये सोशल मीडिया पर आए दिन मनुवादियों द्वारा चमार जाति को गालिया दी जाती हैं। ये गालिया इस बात का प्रतीक हैं कि वह प्रगति की राह पर है।
(प्रसिद्ध लेखक सतनाम सिंह की रिपोर्ट में व्यक्त विचार उनके अपने हैं)
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