कैलाश मानसरोवर यात्रा का अर्थ है 'भगवान शिव से साक्षात संवाद' का अवसर
विदेश मंत्रालय इस कैलाश यात्रा का आयोजन प्रत्येक वर्ष जून से सितंबर के दौरान दो अलग-अलग मार्गों - लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड), और नाथू ला दर्रा (सिक्किम) के माध्यम से करता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा (KMY) अपने धार्मिक मूल्य और सांस्कृतिक महत्व के लिए जानी जाती है। यह हर साल सैकड़ों लोगों द्वारा चलाया जाता है। भगवान शिव के निवास के रूप में हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण होने के नाते, यह जैन और बौद्धों के लिए भी धार्मिक महत्व रखता है।
साक्षात भगवान शिव से संवाद की यात्रा अनादिकाल से शिवधाम अर्थात कैलाश मानसरोवर की यात्रा होती आ रही है। यहां का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है, जिसमें मानसरोवर के लिए अनवतप्त नाम का उल्लेख किया गया है। अर्थात जो कभी भी तप्त नहीं होता ऐसा सरोवर। यह यात्रा कठिन परंतु जीवनभर स्मृति मात्र से आनंद देने वाली होती है। यही एकमात्र ऐसी यात्रा है,जहां भगवान शिव से साक्षात संवाद का अवसर मिल सकता है।
कठिन लेकिन आनंदमयी है यह यात्रा
मानसरोवर के चारों ओर सतलज, करनाली (सरयू की सहयोगी नदी), ब्रह्मपुत्र तथा सिंधु के उद्गम हैं। इसके उत्तर में कैलास, दक्षिण में गुरला मांधाता, पश्चिम में राक्षस ताल है। सागरतट से 14,950 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मानसरोवर का व्यास 54 मील तथा गहराई 300 फीट है। भारत, नेपाल और ल्हासा (तिब्बत-चीन) के मार्ग से यह यात्रा होती है, जिसमें सबसे कठिन लेकिन सर्वाधिक आनंददायी और सुंदर यात्रा मार्ग भारत से होकर जाता है। यात्रा में 27 दिन लगते हैं और कुछ प्रदेश सरकारें यात्रियों को अनुदान भी देती हैं। इस यात्रा को भारत के विदेश मंत्रालय और चीन सरकार के माध्यम से संपन्न किया जाता है। इसमें सामान्यत: एक लाख रुपये प्रति यात्री खर्च हो जाते हैं।
कैलाश पर्वत पर साक्षात विराजता है शिव परिवार
हम सभी देवों के देव महादेव की पूजा भी करते हैं, भगवान शिव परिवार की पूजा और अनुष्ठान को बहुत धूमधाम से मनाते भी हैं, जिनमें माता पार्वती, विघ्नहर्ता गणेश जी और कार्तिकेय तो हैं ही, साथ ही उनके वाहन भी पूजे जाते हैं। यह भारतीय परंपरा में सभी जीवों के प्रति आदर का भाव भी दर्शाता है, जिसके अंतर्गत शिवजी के वाहन नंदी यानी बैल, भगवान गणेश जी के वाहन मूषक और कार्तिकेय जी के वाहन मोर शामिल हैं। पर कोई बता सकता है कि समूचा शिव परिवार कहां रहता है? बाकी सारे देवी-देवता स्वर्ग में या अपने-अपने लोकों में रहते हैं। अकेले शिवजी का ही परिवार ऐसा है, जो हमारी पृथ्वी पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सिर्फ 865 किमी दूर तिब्बत के पश्चिमी भाग में कैलास पर्वत पर साक्षात विराजमान है। दुनिया में शायद कोई दूसरा पर्वत है ही नहीं, जिसे हजारों वर्षों से इतनी पवित्रता से पूजा जाता है, जैसे कैलाश पर्वत को।
सभी करते हैं कैलाश पर्वत की पावनता का सम्मान
एक और रोचक बात यह है कि दुनिया में हर देश में लगभग हर पर्वत पर पर्वतारोही चढ़े हैं और वहां उन्होंने अपने-अपने देश का झंडा फहराया है। एकमात्र कैलाश पर्वत ही ऐसा है, जिसकी पावनता के सामने सिर झुकाते हुए आज तक किसी पर्वतारोही को कैलास पर्वत पर जाने की अनुमति नहीं दी गयी है। ईश्वर में विश्वास न रखने वाले चीन के कम्युनिस्ट शासन ने भी कैलाश पर्वत की पावनता का सम्मान किया है।
अपरंपार है कैलाश पर्वत की महिमा
कैलाश पर्वत की महिमा अपरंपार है। यहां आदि शंकराचार्य आये, गुरु नानक देव जी आये, भगवान स्वामीनारायण अपने बाल्यकाल में नीलकंठ के रूप में यहां पधारे, प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव की यह निर्वाण स्थली है और तिब्बत के बौद्ध कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और भगवान अवलोकितेश्वर के दर्शन करते हैं तथा असंभव समझी जाने वाली कैलाश पर्वत की दंडवत परिक्रमा करते हैं।
स्वर्गवासी होने का नाम ही कैलाशवासी है
कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान 89 किलोमीटर की यह परिक्रमा 21 दिन में पूरी होती है। कैलाश पर्वत की यात्रा के लिए भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा हर साल जनवरी-फरवरी में विज्ञापन देकर इच्छुक यात्रियों से आवेदन मंगवाये जाते हैं। कैलाश यात्रा सदा से इतनी कठिन और दुःसाध्य रही है कि मराठी में तो स्वर्गवासी होने का नाम ही कैलाशवासी है। जो इस यात्रा पर जाते थे उनको अपना तर्पण आदि करके ही भेजा जाता था। जीवित आ गए तो गांव भर में उत्सव अन्यथा यही मान कर संतोष की यात्री शिव धाम गए।
यात्रा के लिए स्वस्थ होना है जरूरी
इन दिनों कैलास यात्रा पथ में, विशेषकर तिब्बत के मार्ग में, अनेक उच्च स्तरीय होटल भी खुल गए हैं जिनके नाम ब्रह्मपुत्र, हिमालय, कैलाश मानसरोवर जैसे हैं ताकि भारतीय हिन्दू यात्रियों को आकृष्ट किया जा सके। लेकिन चिकित्सकीय सुविधाएं न के बराबर हैं। पहले कैलाश यात्रियों का मेडिकल बीमा भी होता था अब अचानक बीमा कंपनियों ने यह भी बंद कर दिया है। कई बार यात्रियों को लगता है कि नाथुला अथवा नेपाल के मार्ग से सीधे सड़क मार्ग पर सरपट दौड़ती एसयूवी गाड़ियों से यात्रा सरल होगी। यह गलत है। यात्रा मार्ग में कम से कम चलना घातक हो सकता है। शरीर तो स्वस्थ ही होना चाहिए और ऊंचाई पर कम आक्सीजन के क्षेत्र के लिए अभ्यस्त भी, ताकि सांस न फूले और अद्भुत, अवर्णनीय प्राकृतिक दृश्यों का आनंद भी लिया जा सके।
ग्रंथों में भी है कैलाश मानसरोवर का वर्णन
कैलाश मानसरोवर का वर्णन आदि ग्रंथों में भी मिलता है। रामायण, महाभारत, पुराणों, विशेषकर स्कंदपुराण में इसका वर्णन है। बाणभट्ट की कादम्बरी, कालिदास के रघुवंश और कुमार संभवम्, संस्कृत और पाली के बौद्ध ग्रंथों में भी इसका सुंदर वर्णन है। महाभारत में इसे बिंदुसर तथा जैन ग्रंथों में इसे पद्म हृद कहा गया है।
एक बार स्नान से सात पीढ़ियां तर जाती हैं
मानसरोवर तट पर आकर मानो होशो हवास गुम हो जाते हैं। सब एक-दूसरे ही लोक में विचरने लगते हैं। शिव पुराण में लिखा है कि मानसरोवर में एक बार स्नान से सात पीढ़ियां तर जाती हैं। ऐसा पावन मौका कहां मिलेगा? श्री कैलास कैलाश दर्शन के बाद मन में अनोखी खुशी और शांति व्यापत्त गयी थी। चित्त तृप्त हो जाती है और थकान गायब हो जाता है। विश्व की संपदा पाने जैसा रोमांच शरीर को शक्ति देता है। वापस होते हैं, तो मन में यह भाव होता है कि चलो प्रभु यात्रा सफल हो गयी।
Comments (0)