सूर्योपासना का महापर्व छठ : क्या राजा-क्या रंक और क्या फकीर, सभी आते हैं पतित-पावनी माँ गंगा के तीर
लोकपर्व छठ चार दिनों का अत्यंत कठिन, किंतु अति-महत्वपूर्ण पर्व है। इस वर्ष छठ महापर्व का शुभारंभ 31 अक्टूबर, गुरुवार यानी चतुर्थी तिथि से नहाय-खाय के साथ हो रहा है। 1 नवंबर, शुक्रवार को खरना, 2 नवंबर, शनिवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य और 3 नवंबर, रविवार को उदियमान सूर्य को अर्घ्य और पारण के साथ महापर्व का समापण होगा।
भगवान सूर्य की उपासना का पावन पर्व छठ का नाम सुनते ही शुद्धता एवं पवित्रता का अहसास होता है। दीपवाली के ठीक छह दिन बाद मनाए जाने वाले छठ महापर्व का मानव जीवन में विशेष स्थान है। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य षष्ठी का व्रत करने का विधान है। सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण ही इसे छठ कहा गया है।
लोकपर्व छठ चार दिनों का अत्यंत कठिन, किंतु अति-महत्वपूर्ण पर्व है। इस वर्ष छठ महापर्व का शुभारंभ 31 अक्टूबर, गुरुवार यानी चतुर्थी तिथि से नहाय-खाय के साथ हो रहा है। 1 नवंबर, शुक्रवार को खरना, 2 नवंबर, शनिवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य और 3 नवंबर, रविवार को उदियमान सूर्य को अर्घ्य और पारण के साथ महापर्व का समापण होगा।
लोक आस्था के महापर्व छठ के प्रथम दिन नहाय-खाय होता है। व्रती नहा-धोकर इस दिन अरवा चावल, लौकी तथा चने की दाल का भोजन करती हैं। दूसरे दिन दिनभर का व्रत रखा जाता है तथा शाम में गन्ने के रस अथवा गुड़ की खीर बनाई जाती है। पूजा के उपरांत प्रसाद के रूप में खीर का ही भोजन किया जाता है। तीसरे दिन चौबीस घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है। शाम में व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देते हैं। चौथे दिन व्रती अदीयमान सूर्य को दूध से अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं।
छठ पर्व का शुभारंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है। जबकि समापन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होता है। व्रती छत्तीस घंटे का निर्जला व्रत करते हैं। खरना पूजन से ही घर में देवी षष्ठी यानी छठी मईया का आगमन हो जाता है। षष्ठी के दिन घर के समीप ही किसी नदी, तालाब अथवा जलाशय के किनारे एकत्रित होकर पहले दिन अस्ताचलगामी तथा दूसरे दिन उदीयमान सूर्य को अर्ध्य समर्पित किया जाता है। भगनान सूर्य की उपासना के उपरांत व्रती अपना व्रत खोलते हैं।
महापर्व छठ में कोसी भरने की परंपरा सतयुग से चली आ रही है। संतान, पुत्र, सुंदर शरीर एवं युद्ध क्षेत्र में विजय प्राप्ति की कामना से कोसी भरी जाती है। घर परिवार में कोई शुभ कार्य संपन्न होने पर अथवा मनोंकामनाओं की पूर्ति के पश्चात कोसी भरी जाती है। कोसी भरने की प्रक्रिया संध्या अर्ध्य के पश्चात पूरी की जाती है। संध्या अर्ध्य के उपरांत घर लौटकर अथवा नदी किनारे ही कोसी भरी जाती है।
छठ महापर्व पर सूर्यदेव को अर्ध्य अर्पित करने का विधान है। क्योंकि भगवान भास्कर की भक्ति से मनुष्यों के संपूर्ण मनोरथ पूर्ण होते हैं। देवी अदिति के गर्भ से भगवान सूर्य की उत्पति एवं भगवान विराट के नेत्रों से सूर्यदेव की अभिव्यक्ति हुई है। समस्त जगत के जीवनदाता, ज्योति एवं उष्णता के परमपूंज तथा समस्त ज्ञान के स्वरूप सर्वोपकारी देव श्री सूर्य नारायण की महिमा अपरंपार है। वेदों तथा पुराणों में सूर्य को ब्रह्म कहा गया है। सूर्य को संपूर्ण विश्व का सृजनकर्ता तथा संपूर्ण सृष्टि का गतिदाता कहा जाता है। सूर्यदेव को प्रकाश, ज्ञान, ऊर्जा, ऊष्मा एवं जीवन शक्ति प्रदान करने वाला एवं रोगाणु, कीटाणु नाशक भी कहा गया है।
श्रद्धा भाव से अर्घ्य अर्पित करने मात्र से ही उपासक की समस्त पीड़ाओं को दूर कर सूर्यदेव सफलता के मार्ग को प्रशस्त करते हैं। सूर्य की प्रातःकालीन किरणों को अमृत वर्षी माना गया हैं। सूर्य की किरणों को आत्मसात करने से शरीर तथा मन स्फूर्तिवान होता है। नियमित सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करने से नेतृत्व क्षमता, बल, तेज, पराक्रम, यश एवं उत्साह में वृद्धि होती है। शरीर ह्ष्ट-पुष्ट रहता है। पक्षाघात, क्षय रोग, पोलियो, ह्रदय विकार, हड्डियों की कमजोरी आदि रोगों से मुक्ति मिलती है।
महापर्व छठ में विशेष रूप से ठेकुआ, गेहूं के आटे तथा गुड़ से बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में मौसमी फलों के साथ ही नारियल, मूली, सुथनी, अखरोट, अदरक, सिंघाड़ा, कच्ची हल्दी, मुंगफली तथा गन्ने का भी विशेष महत्व होता है। पूजन सामग्रियों की औषधीय महत्ता है। ठेकुआ तथा खीर का सेवन करने से शरीर को त्वरित उर्जा की प्राप्ति होती है। गन्ने के मधुर रस से पित्त का शमन होता है। हल्दी औषधीय गुणों की खान है। अदरक खांसी तथा श्वास के लिए रामबाण औषधि है। मूली पाचन क्रिया में सहायक होती है। सिंघाड़ा वात विकार दूर करता है। संतरा भी पाचन में सहायक है।
छठ व्रत शुद्धि तथा आस्था का महापर्व है। इस पर्व में समानता एवं सद्भाव की अनूठी बानगी देखने को मिलती है। आस्था, श्रद्धा एवं भक्ति के महापर्व पर छठी मईया की पूजा में न तो एश्वर्य का बोध होता है, और ना ही धन का। न चेहरे पर कोई अहं, न घमंड और ना ही कोई ताव होता है। मन में बस एक ही ललक होती है छठी मईया करो सबका उद्धार। छठ महापर्व पर क्या राजा, क्या रंक तथा क्या फकीर सभी आते हैं, पतित-पावनी मां गंगा के तीर।
मान्यताएं एवं परंपराएं, श्रद्धा एवं निष्ठा, भक्ति एवं भावना, यहां तक कि सांसारिक भौतिकता की चकाचौंध में भी छठी मईया की पूजा में अपना राग नहीं तोड़तीं। छठ महापर्व में न तो कोई ऊंच है और नहीं नीच। न कोई छूत है और ना ही अछूत, न अमीर है और ना ही गरीब। मां गंगा के तट पर हर वर्ग एवं समुदाय के लाखों लोगों की होती है भीड़। लाखों श्रद्धालुओं का उमड़ता है सैलाब। बच्चों, बूढ़ों, तथा जवानों की होती है जुटान और दऊरा में होते हैं, नाना प्रकार के फल तथा पकवान।
गंगा घाट पर दिखता है सुहागिन महिलाओं की मांग में चमकता सिंदूर, तो सकून देती है गंगा जल की प्रत्येक बूंद। पुरुषों एवं बच्चों के माथे पर होता है दऊरा और गन्ने का बोझ, परंतु उनके मन में होती है समर्पण की सोच। बस यही राग है, यही आलाप है तथा यही है जिंदगी। इसी रूप में तो छठी मईया की है बंदगी। यही सूर्यदेव एवं छठी मईया की पूजा है, अर्चना है, उपासना है, साधना है, आराधना है, वंदना है तथा प्रार्थना है।
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