सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा- विलय के बाद नए राज्य में कर्मी को आरक्षण से वंचित नहीं कर सकते

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा- विलय के बाद नए राज्य में कर्मी को आरक्षण से वंचित नहीं कर सकते

सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि विलय के बाद यदि कर्मी नए राज्य में जाते हैं तो वे उस राज्य के ही निवासी माने जाएंगे और उसे सेवा में आरक्षण का लाभ दिया जाएगा। भले ही उनका निवास पुराना राज्य ही क्यों न हो। जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने यह आदेश देते हुए झारखंड हाईकोर्ट के आदेश निरस्त कर दिया, जिसमें एक कर्मचारी को राज्य में माइग्रेट होकर आया माना गया और उसे आरक्षण का लाभ देने से मना कर दिया था। इस आदेश के खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट आए थे। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इस मामले में यह देखा जाना चाहिए कि कर्मचारी ने 2000 के राज्य पुनर्गठन ऐक्ट के तहत स्वयं को झारखंड में विलय कर लिया था। ऐक्ट कहता है कि ऐसे कर्मी अपने साथ आरक्षण की व्यवस्था भी ले जाएंगे और उन्हें वही सुविधाएं दी जाएंगी जो उन्हें अविभाजित राज्य में रहने पर मिलती हैं। कोर्ट ने कहा कि संविधान पीठ यह तय कर चुकी है कि माइग्रेंट लोग आरक्षण के हकदार नहीं होंगे, चाहे उनकी जाति उस राज्य में भी आरक्षित वर्ग के रूप में चिन्हित क्यों न हो।

लेकिन पंकज का मामला ऐसा नहीं है। वह बाकायदा कानून के तहत सेवा के साथ विलय होकर झारखंड में आए हैं। इसके अलावा बिहार के 18 जिले, जिनसे झारखंड बना है उन जिलों में भी उनकी जाति को आरक्षण का लाभ प्राप्त था, ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि वह माइग्रेंट हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि उनका यह मामला भी नहीं है कि वह दोनों राज्यों में आरक्षण ले रहे हैं। उन्होंने झारखंड में ही आरक्षण मांगा बिहार में नहीं। अविभाजित बिहार में जो आरक्षण मिला था उसमें झारखंड शामिल था और उसके बाद उन्होंने झारखंड को ही चुना और वहीं रह गए। इसलिए उन्हें झारखंड में आरक्षण का लाभ दिया जाएगा। कोर्ट ने आदेश दिया कि पंकज नियुक्त किया जाए और उन्हें वरिष्ठता दी जाए उसके अनुसार ही उनका वेतन भत्ते तय किए जाएं।

क्या था मामला: वर्ष 2000 में झारखंड के गठन से पूर्व पटना के पंकज कुमार हजारीबाग में शिक्षक के रूप में काम कर रहे थे। झारखंड अगल राज्य बनने पर उन्होंने झारंखड को ही चुना और वहीं विलय करवा लिया। 2008 में उन्होंने संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा दी और 2010 में आए परिणाम में आरक्षित वर्ग में पांचवें नंबर पर चयनित हो गए। मगर जब नियुक्ति की बात आई तो राज्य ने उन्हें नियुक्ति नहीं दी और कहा कि उनकी सेवा पंजिका में निवास का स्थायी स्थान पटना लिखा हुआ है, वह झारखंड के निवासी नहीं हैं, बल्कि माइग्रेंट हैं। इस मामले को वह हाईकोर्ट ले गए। एकल पीठ ने उनके पक्ष में फैसला दिया लेकिन इसके खिलाफ राज्य सरकार ने फुल बेंच में अपील की और 2:1 के अनुपात में उसने राज्य सरकार के पक्ष में फैसला देकर उन्हें माइग्रेंट ही माना।