कब है सावन का पहला प्रदोष व्रत? जानिए शुभ मुहूर्त, प्रदोष काल और महत्व
भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। सावन मास का प्रदोष व्रत अत्यंत मंगलमय और लाभकारी माना जाता है। सावन मास और प्रदोष व्रत दोनों ही भगवान शिव को प्रिय है। कहा जाता है कि सावन मास में प्रदोष व्रत रखने वाले भक्तों की मनोकामनाओं को भोलेनाथ पूरा करते हैं। इसके साथ ही घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। इस साल सावन मास का पहला प्रदोष व्रत 05 अगस्त, दिन गुरुवार को पड़ा रहा है। त्रयोदशी तिथि 05 अगस्त को शाम 05 बजकर 09 मिनट से प्रारंभ होगी, जो कि 06 अगस्त की शाम 06 बजकर 51 मिनट तक रहेगी।
प्रदोष काल का समय और महत्व:- 05 अगस्त को शाम 06 बजकर 27 मिनट से 06 बजकर 51 मिनट तक का समय प्रदोष काल होगा। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की प्रदोष काल में पूजा शुभ मानी जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने के कष्टों से मुक्ति मिलती है और मनोकामना पूरी होने की मान्यता है।
प्रदोष काल क्या होता है?:- प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर की पूजा प्रदोष काल में करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार, सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक का समय प्रदोष काल कहा जाता है। कहा जाता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
प्रदोष व्रत पूजा विधि:- प्रदोष व्रत के दिन स्नान के बाद पूजा के लिए बैठें। भगवान शिव और माता पार्वती को चंदन, पुष्प, अक्षत, धूप, दक्षिणा और नैवेद्य अर्पित करें। महिलाएं मां पार्वती को लाल चुनरी और सुहाग का सामान चढ़ाएं। मां पार्वती को श्रृंगार का सामान अर्पित करना शुभ माना जाता है। इसके बाद भगवान शिव व माता पार्वती की आरती उतारें। पूरे दिन व्रत-नियमों का पालन करें।
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