सुप्रीम कोर्ट अब सप्ताह में पांच दिन करेगा अयोध्या मामले की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई सप्ताह में अब पांच दिन होगी। पहले कोर्ट सप्ताह में तीन दिन इस मामले की सुनवाई करता था। गुरुवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सभी पक्षों को सुना और महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए कहा कि अब मामले की सुनवाई हफ्ते में पांच दिन होगी। इससे पहले केवल मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को सुनवाई होती थी।
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई सप्ताह में अब पांच दिन होगी। पहले कोर्ट सप्ताह में तीन दिन इस मामले की सुनवाई करता था। गुरुवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सभी पक्षों को सुना और महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए कहा कि अब मामले की सुनवाई हफ्ते में पांच दिन होगी। इससे पहले केवल मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को सुनवाई होती थी। लेकिन अब सोमवार और शुक्रवार को भी होगी। सर्वोच्च अदालत के इस फैसले के बाद इस बात के आसार बढ़ गए हैं कि अयोध्या मामले में फैसला 17 नवंबर से पहले आ सकता है। जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को ही रिटायर हो रहे हैं।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई वाली पांच सदस्यीय खंडपीठ में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस धनंज वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर शामिल हैं। गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में एक पक्षकार ‘राम लला विराजमान’ से जानना चाहा कि कैसे इस मामले में भगवान के जन्मस्थान को दावेदार के रूप में कानूनी व्यक्ति माना जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट वकीलों ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट के सवाल के जवाब में रामलला के वकील परासरन की तरफ से कहा गया कि हिन्दू धर्म में किसी स्थान को उपासना के लिए पवित्र स्थल मानने के लिए वहां मूर्तियों का होना जरूरी नहीं है। हिन्दूवाद में तो नदी और सूर्य की भी पूजा होती है और जन्मस्थान को भी कानूनी व्यक्ति माना जा सकता है। मुस्लिम पक्षकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि ‘राम लला विराजमान’ और ‘निर्मोही अखाड़ा’ द्वारा दायर दो अलग-अलग वाद एक दूसरे के खिलाफ हैं और यदि एक जीतता है तो दूसरा स्वयं ही समाप्त हो जाता है।
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ 14 अपीलें
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस विवाद में अपना दावा साबित करने के लिए राजस्व रिकॉर्ड, दस्तावेज और अन्य मौखिक सबूत बहुत महत्वपूर्ण साक्ष्य साबित होंगे। ज्ञात हो कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में अयोध्या को लेकर एक फैसला दिया था, जिसमें कहा था कि अयोध्या की 22.7 एकड़ विवादित भूमि को निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड और रामलला यानी तीन पक्षों के बीच बराबर बांटा जाएगा। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और 14 अपीलें दायर की गईं। इसी महीने की 6 तारीख से कोर्ट इस मामले की नियमित सुनवाई कर रही है।
मध्यस्थता की कोशिशें विफल हुई थी
सुप्रीम कोर्ट की ओर से अयोध्या रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को सुलझाने के लिए जो मध्यस्थता कमेटी बनाई गई थी, वो 18 जुलाई को अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी,जिससे यह खुलासा हुआ कि मध्यस्थता विफल हो गई है। इस मध्यस्थता पैनल में आध्यात्मिक धर्म गुरु श्रीश्री रविशंकर, वरिष्ठ वकील कील श्रीराम पंचू और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एफएम कलीफुल्लाह शामिल थे।
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