‘मातृ दिवस, पर आइए मिलकर ''माँ'' की महिमा गाएं, ''माँ'' के श्री चरणों में शीश नवाएं
देश और दुनियाभर में आज मातृ दिवस मनाया जा रहा है। आज माताओं के पूजन-अर्चन का दिन है। वास्तव में माँ की महिमा का जितना गुणगान किया जाए उतना ही कम है। माँ की ममता के बारे में जितना कहा जाए कम है।माँ की महिमा अनंत एवं अपार है। माँ ही किसी भी बच्चे की प्रथम पाठशाला होती है। माँ ही जननी है। माँ ही ममता है। माँ ही लाड़ है। माँ ही प्यार है। माँ ही दुलार है। माँ ही शिक्षा है। माँ ही दीक्षा है।
देश और दुनियाभर में आज मातृ दिवस मनाया जा रहा है। आज माताओं के पूजन-अर्चन का दिन है। वास्तव में माँ की महिमा का जितना गुणगान किया जाए उतना ही कम है। माँ की ममता के बारे में जितना कहा जाए कम है। बेटी जब बड़ी होती है। उसकी शादी होती है। एक औरत के रूप में वह अपनी जान को खतरे में डालकर, बेहद शारीरिक पीड़ा सहकर, खुशी-खुशी अपने बच्चे को जन्म देती है।
माँ के रूप में वह बच्चे की देखभाल करते हुए अपने आराम के बारे में कभी भी नहीं सोचती है। वह बेगरज और बेफिक्र होकर अपनी जिम्मेदारी निभाती है। जरूरत पड़ने पर खुद भूखी रहकर अपने बच्चों का पेट भरती है। गरीब परिवार से संबंध रखने वाली माताएं मेहनत मजदूरी कर अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है।
बच्चों को चोट लगने पर उस माँ को पीड़ा होती है। वह बड़े प्यार और दुलार से अपने बच्चों को मरहम-पट्टी करती है। अगर बच्चे बीमार हो जाएं तो रात भर जागकर उनकी देखभाल करती है। थकान की परवाह किए बिना वह अपने बच्चों की हर जरूर का ध्यान रखती है। मसलन बच्चों ने क्या खाया ? क्या वे ठीक तरह के पढ़-लिख रहे हैं? क्या वे अच्छी संगति में हैं ? क्या वे खुश हैं ? आदि-आदि। बच्चे बेशक अपनी माँ को भूल जाएं अथवा माँ के प्रति बेपरवाह हो जाएं, परंतु माँ का प्यार अपने बच्चों के प्रति कभी कम नहीं होता है।
माँ की महिमा अनंत एवं अपार है। माँ ही किसी भी बच्चे की प्रथम पाठशाला होती है। अतः माँ ही किसी भी बच्चे को स्वरों एवं व्यंजनों का बोध कराती है। माँ ही किसी भी बच्चे को वर्णमालाओं का उच्चारण करना सीखाती है। माँ की गोद में ही बच्चा अच्छे-बुरे का अंतर समझ पाता है। माँ से ही कोई भी बच्चा सच्चा संस्कार सीख पाता है।
माँ से ही बच्चा प्यार करना सीखता है। माँ से ही बच्चा सत्य बोलना सीखता है। माँ ही बच्चे को निष्ठावान बनाती है। माँ ही बच्चे तो चरित्रवान बनाती है। माँ ही बच्चे को परोपकारी बनाती है। माँ के सानिध्य में ही बच्चा सत्यनिष्ठ बनता है। माँ के सानिध्य में ही बच्चा कर्तव्यनिष्ठ बनता है। माँ के सानिध्य में ही बच्चा देश प्रेमी बनता है।
माँ के सानिध्य में ही बच्चा सच्चा राष्ट्रभक्त बनता है। माँ ही बच्चे को सनातन धर्म, सनातन संस्कृति का संवाहक बनाती है। माँ ही बच्चे को धर्म, संस्कृति, आस्था एवं अध्यात्म का अहसास कराती है। माँ ही बच्चे को साधु, संतों, महात्माओं, धर्म गुरुओं एवं धर्माचार्यों का सानिध्य प्राप्त करना सीखाती है। माँ ही बच्चे को अपनों की पहचान कराती है। माँ ही बच्चे को वेदों, पुराणों, धर्मग्रंथों एवं शास्त्रों का अध्य्यन करना सीखाती है।
माँ ही बच्चे को ज्ञान, विज्ञान एवं ध्यान के बारे में बताती है। माँ ही बच्चे को पूजा, अर्चना, उपासना, आराधना, साधना एवं वंदना करना सीखाती है। माँ ही बच्चे को विनम्र बनाती है। माँ ही बच्चे को महान बनाती है। माँ से ही बच्चा नमन, निवेदन एवं प्रणाम करना सीखता है। माँ से ही बच्चा प्रणत होना सीखता है। माँ ही सच्चे अर्थों में किसी भी बच्चे की गुरु होती है। माँ ही किसी भी बच्चे की मार्गदर्शक होती है। माँ ही किसी भी बच्चे की पथप्रदर्शक होती है।
माँ ही जननी है। माँ ही ममता है। माँ ही लाड़ है। माँ ही प्यार है। माँ ही दुलार है। माँ ही शिक्षा है। माँ ही दीक्षा है। माँ ही संस्कार है। माँ ही आत्मा है। माँ ही मंदिर है। माँ ही तीरथ है। माँ ही धाम है। माँ ही पूजा है। माँ ही अर्चना है। माँ ही आराधना है। माँ ही साधना है। माँ ही वंदना है। माँ ही प्रार्थना है। माँ ही परमात्मा है। माँ ही परम सत्य है। माँ ही परम गुरु है। माँ ही परमानंद है। माँ तुझे शत्-शत् नमन है। माँ तुझे शत्-शत् प्रणाम् है।
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