मोदी सरकार और पूर्वांचल का विकास मॉडल
2014 के लोकसभा चुनाव में जब नरेन्द्र मोदी ने गुजरात की वडोदरा लोकसभा क्षेत्र के अलावा उत्तर प्रदेश के वाराणसी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की घोषणा की तो राजनीति के विश्लेषकों को हैरानी हुई। कई राजनीतिक विश्लेषकों ने दावा किया कि गुजरात के नरेन्द्र मोदी पूर्वांचल में कैसे जीत पाएंगे?
2014 के लोकसभा चुनाव में जब नरेन्द्र मोदी ने गुजरात की वडोदरा लोकसभा क्षेत्र के अलावा उत्तर प्रदेश के वाराणसी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की घोषणा की तो राजनीति के विश्लेषकों को हैरानी हुई। कई राजनीतिक विश्लेषकों ने दावा किया कि गुजरात के नरेन्द्र मोदी पूर्वांचल में कैसे जीत पाएंगे?
भारतीय जनता पार्टी के विरोधी नेताओं को भी लगा कि वाराणसी में मोदी को आसानी से हराया जा सकता है। यही सोचकर आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल आनन-फानन में चुनाव लड़ने वाराणसी पहुंच गए। इस चुनाव में मोदी 3, 71, 784 वोटों के भारी अन्तर से अरविन्द केजरीवाल को हराया। नरेन्द्र मोदी को कुल 5,81,022 वोट मिले। वहीं दूसरे स्थान पर रहे केजरीवाल को केवल 2,09,238 वोट मिले। कांग्रेस के उम्मीदवार अजय राय केवल 75,614 वोट प्राप्त कर सके और अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की भी जमानत जब्त हो गई। वाराणसी सहित पूरे पूर्वांचल की जनता जो अब तक की कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की सरकारों की उपेक्षा की शिकार थी, ने मोदी को एक ऐसे विकास पुरुष के रूप में देखा जो उन्हें विकास के रास्ते पर आगे बढ़ा जा सकता था। पूर्वांचल के क्षेत्रों की जनता के बीच मोदी की विकास पुरुष की छवि पहले पहुंची थी, मोदी बाद में पहुंचे। ठीक उसी तरह जैसे सन 1917 ई. में गांधी चम्पारण में बाद में पहुंचते हैं एक समाज के उद्धारक संत-महात्मा की छवि पहले पहुंच गई थी।
मोदी को पूर्वांचल की जनता ने दिल खोलकर स्वागत किया और वाराणसी सहित लगभग सभी सीटें भाजपा की झोली में डाल दीं। सरकार बनी और अब बारी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की थी अपनी जिम्मेदारी निभाने की। आंकड़ों पर गौर करें तो हम पाते हैं कि मोदी और योगी की सरकार ने पूर्वांचल की जड़ता को समाप्त करने के लिए कई काम किए हैं।
सबसे पहले वाराणसी की बात करते हैं जहां से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी निवर्तमान सांसद हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार भी हैं। पूरे विपक्ष ने यहां एक तरह से आत्मसमर्पण कर दिया है। विपक्षी पार्टियां एक ढंग का उम्मीदवार भी नहीं खोज पाईं। यहां विपक्ष ने एक तरह से आत्मसमर्पण कर दिया है। इसीलिए जब नामांकन से एक दिन पहले 26 अप्रैल को मोदी जब वाराणसी पहुंचे तो पूरा वाराणसी 'मोदीमय' हो गया। इससे उनकी लोकप्रियता को समझा जा सकता है। यहां से प्रधानमंत्री की जीत सुनिश्चित है फिर भी केन्द्र सरकार, सांसद और राज्य सरकार के कार्यों की समीक्षा करनी चाहिए जिनके आधार पर जनता मूल्यांकन कर सके।
सबसे पहले हम इस मुद्दे पर बात करते हैं कि वाराणसी को एक सांसद के रूप में मोदी ने अपने 5 वर्षों के कार्यकाल में क्या दिया? 2014 में लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद उन्होंने वाराणसी को सजाने और संवारने के लिए कई कदम उठाए हैं। एक सांसद को अपने स्थानीय क्षेत्र के विकास के लिए 5 वर्षों में 25 करोड़ रुपए मिलते हैं। मोदी ने इन 25 करोड़ रुपये को वाराणसी के विकास में तो पूरा खर्च किया ही साथ ही 24 हजार करोड़ की अलग से विकास योजनाएं चल रही हैं। इनमें से अधिकांश योजनाएं या तो पूरी हो गयी हैं या पूरी होने की स्थिति में पहुंच गई हैं। साथ ही 'हृदय योजना' के तहत वाराणसी की ऐतिहासिक धरोहरों, स्मारकों के संरक्षण के लिए अलग से धन आवंटित किए गए हैं और इनपर काम बहुत तेजी से चल रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी को जापान के धार्मिक नगर क्योटो की तर्ज़ पर विकसित करने का वादा किया था। इसके लिए वे खुद जापान भी गए, वहां के राष्ट्राध्यक्ष शिन्जो आबे से विचार-विमर्श भी किया। प्रधानमंत्री के निमंत्रण पर शिन्जो आबे वाराणसी भी आए। दोनों ने राजेन्द्र प्रसाद घाट पर पण्डित छन्नू लाल मिश्र के गायन के बीच गंगा आरती का आनन्द उठाया। यहीं वाराणसी को स्वच्छ और सुन्दर बनाने के लिए दोनों देशों के बीच समझौता भी हुआ। इसके बाद जापान के विशेषज्ञों की टीम की देखरेख में वाराणसी की सफाई का अभियान शुरू हुआ।
वाराणसी में प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट 'काशी विश्वनाथ कॉरिडोर' का काम भी काफी तेजी से बढ़ रहा है। यह कॉरिडोर काशी विश्वनाथ मंदिर, मणिकर्णिका घाट और ललिता घाट के बीच 25,000 स्क्वायर वर्ग मीटर के क्षेत्रफल में बन रहा है। इसके अंतर्गत फ़ूड स्ट्रीट, रिवर फ्रंट, समेत बनारस की संकरी गलियों के चौड़ीकरण का काम भी तेजी से चल रहा है, जिसके जल्दी पूरी हो जाने की संभावना है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी को दुनिया का सबसे स्वच्छ शहर बनाने का वादा किया था। इसके पीछे प्रधानमंत्री ने यह भी तर्क दिया था कि शहर के स्वच्छ होने के साथ ही यहां आने वाले सैलानियों की संख्या बढ़ेगी। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छता अभियान की शुरुआत भी वाराणसी से ही कि थी। अस्सी घाट की बाढ़ की मिट्टी से ढंकी सीढ़ियों पर प्रधानमंत्री ने खुद ही फावड़ा चलाया था और झाड़ू भी लगाई थी। बाद में उनकी पहल पर वाराणसी प्रशासन और नगर निगम ने इस काम को गंभीरता से लिया और देखते ही देखते यह शहर स्वच्छता के मामले में 2018 में देश के शहरों में 29 वें स्थान पर पहुंच गया। उत्तर प्रदेश में पहले स्थान पर है। प्रधानमंत्री ने गंगा को स्वच्छ बनाने का भी गुरुत्तर दायित्व अपने हाथों में लिया है। केन्द्र की सरकार ने इसके लिए अलग से एक मंत्रालय का भी गठन किया और नमामि गंगे योजना की भी शुरुआत की। यही नहीं गंगा को परिवहन की दृष्टि से भी उपयोगी बनाने के लिए गंगा में ही इलाहाबाद से हल्दिया के बीच जल परिवहन योजना की शुरुआत की गई है। इस योजना के तहत वाराणसी को कार्गो हब के रूप में विकसित किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर अपने संसदीय क्षेत्र की जनता को 600 करोड़ की लागत वाली कई परियोजनाओं की सौगात दी। इन योजनाओं में अटल इन्क्यूबेशन सेंटर, नागेपुर ग्राम पेयजल योजना और कई विद्युत सब स्टेशन प्रमुख हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने यहां एक अन्य ड्रीम प्रोजेक्ट ऊर्जा गंगा की शुरुआत सन 2017 में की थी। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत गैस ऑथोरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड ( GAIL ) ने डीजल रेल कारखाना कैम्पस में पीएनजी पाइपलाइन बिछाने का काम शुरू कर दिया है। इस क्षेत्र में ऊर्जा गंगा प्रोजेक्ट के तहत 1000 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। वाराणसी में आईपीडीएस नाम की एक अन्य परियोजना भी चल रही है जिसके तहत शहर में लटकते बिजली के तारों को भूमिगत किया जा रहा है। इससे शहर में बिजली से होने वाली दुर्घटनाओं में तो कमी आएगी ही साथ ही इसकी सुंदरता भी बढ़ेगी।
अब बात करते हैं पूर्वांचल की क्योंकि मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र के रूप में वाराणसी का चुनाव इसलिए किया था कि पूर्वांचल को भी विकास की धारा से जोड़ा जा सके। जब श्री नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी की तरफ से 2014 में प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार के रूप में चुना गया तो उसके बाद उन्होंने एक भाषण दिया। इस भाषण में मोदी ने कहा था कि भारत माता की दो भुजाएं हैं- पश्चिमी भारत और पूर्वी भारत। पश्चिमी भारत का अपेक्षाकृत अधिक विकास हुआ है लेकिन पूर्वी भारत पिछड़ गया है। उन्होंने अपने इस भाषण में वादा किया कि यदि भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती है तो विकास में पिछड़ गए पूर्वांचल का विकास करना उनकी प्राथमिकता होगी। सरकार बनने के बाद उन्होंने अपना यह वादा निभाने की पूरी कोशिश की है। कांग्रेस की यूपीए सरकार ने 13 वें वित्त आयोग के दौरान पूर्वांचल के विकास के लिए महज 4 लाख करोड़ रुपए दिए। इनमें से पूरी राशि खर्च भी नहीं हो पाई। मोदी सरकार ने अपने 5 साल के कार्यकाल में 14 वें वित्त आयोग के दौरान पूर्वांचल के विकास के लिए 13 लाख 80 हजार करोड़ रुपए की राशि आवंटित की, जिनमें से 11 लाख करोड़ रुपए की राशि खर्च भी हो चुकी है। पूर्वांचल में उद्योगों के विकास के लिए 1856 किलोमीटर का ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने का काम भी सरकार ने शुरू किया है। इसके अलावा बरौनी और सिन्दरी का कारखाना, वाराणसी ट्रॉमा सेंटर, 6 मेडिकल कॉलेज, एक आईआईएम, 2 हजार करोड़ रुपए की लागत से पूर्वांचल एक्सप्रेस वे, वाराणसी को कई शहरों से जोड़ने के लिए 8 हजार करोड़ रुपए के सड़क मार्ग, झारखंड में 9 राष्ट्रीय राजमार्ग, गंगा सेतु के लिए 5 हजार करोड़ रुपए, मधेपुरा में रेलवे इंजन कारखाना, नमामि गंगे अभियान के तहत पूर्वांचल के सभी शहरों के सीवरेज की व्यवस्था करने का काम भी मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में किया है।
पूर्वांचल में चिकित्सा सुविधाएं बेहद पिछड़ी हुई हैं। इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को अपना इलाज कराने के लिए दिल्ली आना पड़ता है। ऐसे में मोदी सरकार ने पूरे पूर्वांचल को मेडिकल हब के रूप में विकसित करने का काम किया है। हर तीन लोकसभा सीट पर एक मेडिकल कॉलेज की स्थापना की जा रही है। गाजीपुर और मिर्जापुर में मेडिकल कॉलेज का शिलान्यास भी किया जा चुका है। इसके अलावा वाराणसी स्थित सर सुन्दर लाल अस्पताल को उच्चीकृत करके 'एम्स' का दर्जा दिया गया है। गोरखपुर में भी एम्स की नींव रखी जा चुकी है। टाटा के सहयोग से वाराणसी में कैंसर मरीजों का इलाज प्रारंभ हो चुका है। इसके परिणामस्वरूप गोरखपुर और आसपास के क्षेत्रों में जो कालाजार का प्रकोप था वह कम होने लगा है।
आज़ादी के बाद से पूर्वांचल में रेलवे के विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। जबकि यहां से बड़ी संख्या में यात्री सफर के लिए रेलवे का उपयोग करते हैं। मोदी सरकार ने रेलवे के आधारभूत ढांचे के विकास पर पूरा ध्यान दिया है। पिछले 5 वर्षों में केवल पूर्वांचल में रेलवे ने 88000 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। क्षेत्र की सभी रेल लाइनों के दोहरीकरण और विद्युतीकरण का कार्य चल रहा है। छोटे-छोटे शहरों से लंबी दूरी की ट्रेनें चलने लगी हैं जिससे अब लोगों को वाराणसी और लखनऊ तक आने की जरूरत नहीं पड़ रही है। सरकार ने बहराइच और खलीलाबाद के बीच नई रेल लाइन को मंजूरी दी है। यह रेल लाइन सामाजिक और आर्थिक विकास को नई दिशा देगी। इन क्षेत्रों में लघु उद्योगों की बहुलता है लेकिन अब तक किसी भी सरकार का ध्यान इस ओर नहीं गया था। नई रेल लाइन से इन उद्योगों को काफी मदद मिलेगी। इस रेल लाइन का पर्यटन की दृष्टि से भी काफी महत्व है क्योंकि यह बौद्ध धर्म और जैन धर्म से जुड़े श्रावस्ती नगर से होकर गुजरेगी। इस रेल लाइन के शुरू हो जाने से पड़ोसी देश नेपाल की यात्रा भी सुगम हो जाएगी।
आकांक्षी जिला कार्यक्रम
सामाजिक न्याय मोदी सरकार का प्रमुख लक्ष्य है। मोदी सरकार ने अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पंक्ति में अंतिम स्थान पर खड़े व्यक्ति की पहचान कर उसे विकास प्रक्रिया में शामिल करने की पूरी कोशिश की है। देश के सर्वांगीण विकास और 2022 तक न्यू इंडिया के स्वप्न को हकीकत में बदलने के लिए मोदी सरकार ने देश के 115 सबसे पिछड़े जिलों में 5 जनवरी 2018 को आकांक्षी जिला कार्यक्रम शुरू किया। इनमें से कई जिले पूर्वांचल के हैं। ये जिले शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, जैसे मानव विकास के पैमाने पर बहुत अधिक पिछड़े हुए थे। साथ ही यहां बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी घोर अभाव था। इसीलिए इन जिलों में शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, वित्तीय समावेश, कौशल विकास और आधारभूत ढांचे के विकास के लिए सीधा हस्तक्षेप की नीति अपनाई गई है। मोदी सरकार ने अनूठी पहल करते हुए इन जिलों के विकास को सरकारी कार्यक्रम न बनाकर एक जन आंदोलन का रूप देने की कोशिश की है। नीति आयोग और ल्युपिन फाउंडेशन आकांक्षी जिलों के विकास हेतु समन्वय का कार्य कर रहे हैं।
इस तरह हम देखते हैं कि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने पूर्वांचल के विकास का जो वादा किया था उसे विशेष प्रयासों द्वारा पूरा किया है। इसके अलावा सरकार द्वारा चलाये जा रहे जन-धन योजना, मुद्रा योजना, उज्ज्वला योजना, आदि जनोपयोगी योजनाओं का लाभ देश की अन्य जनता के साथ-साथ पूर्वांचल की जनता भी ले रही है।
( लेखक ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पीएचडी की है और वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। वे एकेडेमिक्स फ़ॉर नमो से भी जुड़े हैं।
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