परिणाम से बौखलाहट क्यों?
पिछले काफी दिनों से ये प्रयास चल रहा है कि देश में गृहयुद्ध से हालात पैदा हों। पिछली सारी कोशिशें बेकार गईं अब फिर एक कोशिश हो रही है। इस बार EVM के बहाने। EVM में गड़बड़ी या इसे बदले जाने की खबर निराधार है मगर इसे हवा दी जा रही है।
गंगेश गुंजन :
पिछले काफी दिनों से ये प्रयास चल रहा है कि देश में गृहयुद्ध से हालात पैदा हों। पिछली सारी कोशिशें बेकार गईं अब फिर एक कोशिश हो रही है। इस बार EVM के बहाने। EVM में गड़बड़ी या इसे बदले जाने की खबर निराधार है मगर इसे हवा दी जा रही है।
इसमें मीडिया के वे paid लठैत भी शामिल हैं, जिन्होंने पिछले पांच साल से लगातार झूठ का व्यापार चला रखा है। EVM बदलना किस कदर मुश्किल है, इसे समझिए। EVM को अकेले में बंद नही किया जाता। इसे सभी पार्टी के प्रतिनिधियों के सामने हस्ताक्षर कर सील किया जाता है। जब ये मशीन खुलेगी तो हस्ताक्षर समेत सभी आंकड़ों का मिलान होगा। मसलन इस मशीन में कितने वोट दर्ज हैं आदि। अब सोचिए ये कैसे मुमकिन है कि हजारों मशीन में कुछ को बदल दिया जाए? तो फिर EVM मिल कहाँ से रहे हैं? ये वो मशीनें हैं जो इस्तेमाल नहीं की गईं। आमतौर पर इन्हें ही हटाया जाता है या इनकी अलग व्यवस्था की जाती है।
अगर कोई ये सोचे कि खुले ट्रक में या खुली गाड़ियों में EVM बदलने के लिए ले जाई जा रही है तो उन्हें इलाज की ज़रूरत है। देश में किसी भी तरह अराजकता का माहौल बने, कोशिश ये है। जब नोटबन्दी हुई थी तब भी एक कोशिश हुई थी कि लोग विद्रोह करें, नहीं हो पाया। GST को लेकर भी ये कोशिश हुई। अल्पसंख्यकों में lynching का खौफ भरा गया। जबकि सच्चाई ये है कि जिसे आज आप lynching कहते है ये एक घिनौना अपराध है और नक्सलवादियों से ज़्यादा lynching इस देश में किसने की है। उससे पहले सामंतों ने खुलेआम lynching की। हर दंगा lynching की कई-कई कहानियां समेटे रहता है। मगर खौफ पैदा करने के लिए ऐसी घटनाओं को उभारा गया।
इन सबके बावजूद जब कुछ न हो सका तो अब EVM को लेकर unrest करने की कोशिश शुरू हुई है। यह लोकतंत्र की जड़ पर हमला है। हारने पर या हारने के डर से आप पूरी प्रक्रिया पर ही सवाल पैदा कर दें ये कैसी बेहूदगी है। लोकतंत्र है ये। लोगों को जीतिए। और अभी तो परिणाम भी नही आए। फिर बौखलाहट क्यों?
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