महापर्व छठ : आज खरना का प्रसाद मांग कर भी ग्रहण करें, पूर्ण होंगी सभी मनोकामनायें!
देश और दुनिया भर में लोक आस्था का महापर्व छठ की रौनक देखने को मिल रही है। चारों ओर श्रद्धा, भक्ति एवं हर्षोल्लास का माहौल है। छठ महापर्व के दूसरे दिन आज खरना मनाया जा रहा है। खास बात यह है कि आज के दिन बेहद शुभ रवि योग का ऐसा संयोग बना है, जो नहाय खाय से लेकर 2 नवंबर तक बना रहेगा। इसी शुभ योग में अस्ताचलगामी सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित किया जाएगा।
खरना का महत्व
सूर्योपासना का यह पावन पर्व छठ 4 दिनों तक मनाया जाता है,जिसकी शुरूआत नहाय-खाय से होती है। अगले दिन खरना किया जाता है। खरना का अर्थ होता है शुद्धिकरण। इस दिन छठ व्रत का पावल करने वाले व्रती नहाय-खाय के दिन पूरा दिन उपवास रखकर केवल एक ही समय भोजन करके अपने शरीर से लेकर मन तक को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं। जिसकी पूर्णता अगले दिन होती है। यही वजह है कि इसे खरना के नाम से बुलाया जाता है।
प्रसाद का विशेष महत्व
खरन के दिन व्रती शुद्ध तन एवं निर्मल मन से अपने कुलदेवता और छठ मैय्या की पूजा करके उन्हें गुड़ से बनी खीर का प्रसाद अर्पण करते हैं। खरना के दिन शाम होने पर गन्ने का रस या गुड़ के चावल या गुड़ की खीर का प्रसाद बनाकर बांटा जाता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास व्रत शुरू हो जाता है।
खरना व्रत रखने की विधि
खरना के दिन से महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास व्रत शुरू होता है। ये व्रत उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के बाद समाप्त होता है। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं शाम को स्नान करके विधि-विधान से रोटी और गुड़ की खीर का प्रसाद तैयार करती हैं। खीर के अलावा पूजा के प्रसाद में मूली, केला और अन्य फल भी रखे जाते हैं। इस दिन मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर प्रसाद तैयार किया जाता है। व्रती महिलाएं भगवान सूर्य की पूजा-अर्चना करने के बाद प्रसाद ग्रहण करती हैं।
खरना का धार्मिक महत्व
खरना के दिन जो प्रसाद बनता है,उसे नए चूल्हे पर बनाया जाता है और ये चूल्हा मिट्टी का बना होता है। चूल्हेा पर आम की लकड़ी का प्रयोग करना शुभ माना जाता है खरना इसलिए भी खास है क्योंयकि इस दिन जब व्रती प्रसाद खा लेती हैं तो फिर वे छठ पूजने के बाद ही कुछ खाती हैं। खरना के बाद आसपास के लोग भी व्रतियों के घर पहुंचते हैं और मांगकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस प्रसाद के लिए लोगों को बुलाया नहीं जाता, बल्कि लोग खुद व्रती के घर पहुंचते हैं।
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