जानिए, कब है शिव की महान रात्रि ‘महाशिवरात्रि’ और क्या है भगवान शिव की पूजा-अर्चना और साधना का शुभ मुहूर्त?
पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु, साधकों के लिए यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की भांति स्थिर और निश्चल हो गए थे।
मानव जीवन में ‘शिव की महान रात्रि’,यानी महाशिवरात्रि का गहन महत्व है। महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है। यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु, साधकों के लिए यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की भांति स्थिर और निश्चल हो गए थे।
शिव और शिवरात्रि की महिमा
यौगिक परंपरा में शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता। उन्हें आदि गुरु माना जाता है। पहले गुरु, जिनसे ज्ञान की उत्पत्ति हुई। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात् एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि का था। उनके भीतर की सारी गतिविधियां शांत हुईं और वे पूरी तरह से स्थिर हुए,इसलिए साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में भी मनाते हैं। महाशिवरात्रि हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए महाशिवरात्रि से अच्छा कोई शुभ अवसर नहीं है। शिवरात्रि का मुख्य पर्व साल में दो बार व्यापक रुप से मनाया जाता है। एक फाल्गुन के महीने में तो दूसरा श्रावण मास में। फाल्गुन के महीने की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है।
शिवरात्रि का व्रत
महाशिवरात्रि के दिन लोग व्रत रखते हैं और पूरे विधि विधान से शंकर भगवान की पूजा करते हैं। इस दिन भोले शंकर को प्रसन्न करने के लिए लोग व्रत रखते हैं। कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन श्रद्धा-भक्ति के साथ व्रत रखते हैं,उन्हें भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान भोले नाथ का व्रत रखना चाहिए। पूरा दिन भगवान शिव के चरणों में भक्ति के साथ बिताना चाहिए। सुबह सबसे पहले जल में काले तिल मिलाकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद भोले शंकर के शिवलिंग पर दूध,शहद से अभिषेक कराना चाहिए। अभिषेक करते समय ओम नम: शिवाय का जाप करना चाहिए।
महाशिवरात्रि की पूजा विधि
शिवरात्रि को भगवान शंकर को पंचामृत से स्नान करा कराएं। केसर के 8 लोटे जल चढ़ाएं। पूरी रात्रि का दीपक जलाएं। चंदन का तिलक लगाएं। तीन बेलपत्र, भांग धतूर, तुलसी, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र व दक्षिणा चढ़ाएं। सबसे बाद में केसर युक्त खीर का भोग लगा कर प्रसाद बांटें। पूजा में सभी सामग्रियां अर्पित करते हुए ॐ नमो भगवते रूद्राय, ॐ नमः शिवाय रूद्राय् शम्भवाय् भवानीपतये नमो नमः मंत्र का जाप करें।
क्या खाएं, क्या नहीं खाएं?
महाशिवरात्रि का व्रत करें,तो यह भी ध्यान रखें कि चावल, आटा और दाल का सेवन नहीं करना चाहिए। अगर निराहार व्रत नहीं रख सकते तो इस दिन फल, चाय और दूध का सेवन कर सकते हैं। शाम में कूट्टू के आटे से बनी पूड़ी और सिंगाड़े का आटा अथवा हलवा का सेवन भी कर सकते हैं। आलू और लौकी का हलवा भी खा सकते हैं।
अगर आप पूरे दिन निराहार व्रत रखना चाहते हैं तो अगले दिन स्नान करके व्रत का पारण कर सकते हैं। इस बीच रात्रि में भगवान भोले शंकर का जागरण करना चाहिए। कहा जाता है कि शिवरात्रि में संपूर्ण रात्रि जागरण करने से महापुण्य फल की प्राप्ति होती है।
कब मनायी जाएगी महाशिवरात्रि?
इस वर्ष महाशिवरात्रि 21 फरवरी की है। 21 तारीख को शाम 5 बजकर 20 मिनट से त्रयोदशी तिथि समाप्त हो जाएगी और चतुर्दशी तिथि प्रारंभ होगी। चतुर्दशी तिथि को ही शिवरात्रि मनाई जाती है। शिवरात्रि तिथि रात्रि में जब होगी तभी मनाई जाएगी।
महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त
21 फरवरी को ये शिवरात्रि शाम को 5 बजकर 20 मिनट से शुरु होकर शनिवार 22 फरवरी को शाम 7 बजकर 2 मिनट तक रहेगी। रात्रि की पूजा शाम को 6 बजकर 41 मिनट से शुरू होकर रात 12 बजकर 52 मिनट तक होगी। शिवरात्रि में जो रात का समय होता है उसमें चार पहर की पूजा होती है।
व्रत खोलने का समय
चतुर्दशी तिथि भगवान शिव की ही तिथि मानी जाती है। चतुर्दशी तिथि को ही शिवरात्रि होती है। 21 फरवरी को त्रयोदशी के दिन जो लोग पूजन नहीं कर पा रहे हैं,तो वो 22 फरवरी को भी चतुर्दशी के समय तक शिव का पूजन कर सकते हैं। मंदिरों में 22 फरवरी को भी धूमधाम से शिव का पूजन किया जाएगा। शिवरात्रि तभी मनानी चाहिए जिस रात्रि में चतुर्दशी तिथि हो। शिवरात्री का व्रत रखने वाले अगले दिन 22 फरवरी को सुबह 6 बजकर 57 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 22 मिनट तक पारण कर सकते हैं।
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