प्रभु श्रीराम के परम भक्त श्रीहनुमान अपने उपासकों को देते हैं बल, बुद्धि एवं विद्या का अखंड वरदान
देश आज ज्ञान एवं गुणों के सागर, अतुलित बल के स्वामी, माता अंजनी के पुत्र और पवन पुत्र महावीर बजरंग बली की जयंती मना रहा है। कोरोना संकट और लॉकडाउन के कारण मंदिरों में तो भक्तों एवं श्रद्धालुओं का सैलाब नहीं उमड़ रहा है, लेकिन भक्तजन अपने-अपने घरों में हनुमान जी की पूजा-उपासना कर मनोकामना पूर्ति की कामना कर रहे हैं। हनुमान जी के पूजन-अर्चन से श्रद्धालुओं के समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
देश आज ज्ञान एवं गुणों के सागर, अतुलित बल के स्वामी, माता अंजनी के पुत्र और पवन पुत्र महावीर बजरंग बली की जयंती मना रहा है। कोरोना संकट और लॉकडाउन के कारण मंदिरों में तो भक्तों एवं श्रद्धालुओं का सैलाब नहीं उमड़ रहा है, लेकिन भक्तजन अपने-अपने घरों में हनुमान जी की पूजा-उपासना कर मनोकामना पूर्ति की कामना कर रहे हैं। हनुमान जी के पूजन-अर्चन से श्रद्धालुओं के समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
वास्तव में प्रभु श्रीराम के परम भक्त, संकट मोचन, महावीर, बजरंग बलि हनुमान की महिमा सबसे न्यारी हैं। सूरज को निगलना, पर्वत को उठाकर उड़ना, रावण की सोने की लंका का दहन करना, जैसे कितने ही ऐसे असंभव लगने वाले कार्य हैं,जिन्हें श्रीहनुमान ने कर दिखाया। माता अंजनी के लाल और पिता पवन के पुत्र वीर हनुमान का जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार यह तिथि इस वर्ष 08 अप्रैल 2020 यानी आज बुधवार को है।
श्रीहनुमान की जन्म कथा
हनुमान जी का जन्म वैसे तो दो तिथियों में मनाया जाता है। पहला चैत्र माह की पूर्णिमा को,तो दूसरी तिथि कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। पौराणिक ग्रंथों में भी दोनों तिथियों का उल्लेख मिलता है। लेकिन एक तिथि को जन्मदिवस के रुप में तो दूसरी को विजय अभिनन्दन महोत्सव के रुप में मनाया जाता है। उनकी जयंती को लेकर दो कथाएं भी प्रचलित है।
चैत्र माह की पूर्णिमा को जन्में हनुमान
शास्त्र एवं पुराणानुसार माता अंजनी के उदर से हनुमान जी की का अवतरण हुआ। उन्हें बड़ी जोर की भूख लगी हुई थी,अतः वे जन्म लेने के तुरंत बाद आकाश में उछले और सूर्य को फल समझ खाने की ओर दौड़े। उसी दिन राहू भी सूर्य को अपना ग्रास बनाने के लिए आया हुआ था। लेकिन हनुमान जी को देखकर उन्होंने इसे दूसरा राहु समझ लिया। तभी इंद्र ने पवनपुत्र पर वज्र से प्रहार किया,जिससे उनकी ठोड़ी पर चोट लगी और उसमें टेढ़ापन आ गया। इसी कारण उनका नाम भी हनुमान पड़ा। इस दिन चैत्र माह की पूर्णिमा होने से इस तिथि को हनुमान जयंती के रुप में मनाया जाता है।
दीपावली के दिन भी मनाई जाती है हनुमान जयंती
दूसरी कथा माता सीता से हनुमान को मिले अमरता के वरदान से जुड़ी है। हुआ यूं कि एक बार माता सीता अपनी मांग में सिंदूर लगा रही थी,तो हनुमान जी को यह देखकर जिज्ञासा जागी कि माता ऐसा क्यों कर रही हैं। उनसे अपनी शंका को रोका न गया और माता सीता से पूछ बैठे कि माता आप अपनी मांग में सिंदूर क्यों लगाती हैं। माता सीता ने कहा कि इससे मेरे स्वामी श्रीराम की आयु और सौभाग्य में वृद्धि होती है। रामभक्त हनुमान ने सोचा जब माता सीता के चुटकी भर सिंदूर लगाने से प्रभु श्रीराम का सौभाग्य और आयु बढ़ती है,तो क्यों न पूरे शरीर पर ही सिंदूर लगाने लगूं। उन्होंने ऐसा ही किया इसके बाद माता सीता ने उनकी भक्ति और समर्पण को देखकर महावीर हनुमान को अमरता का वरदान दिया। माना जाता है कि यह दिन दीपावली का दिन था। अतः इस दिन को भी हनुमान जयंती के रुप में मनाया जाता है। सिंदूर चढ़ाने से बजरंग बलि के प्रसन्न होने का भी यही रहस्य है।
हनुमान जयंती पर कैसे करें व्रत और पूजा
हनुमान जयंती के पावन अवसर पर व्रत रखने वाले व्रत की पूर्व रात्रि ब्रह्मचर्य का पालन करें और जमीन पर ही सोएं तो अच्छा रहता है। प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठें, प्रभू श्रीराम, माता सीता और श्री हनुमान का स्मरण करें। फिर नित्य क्रिया से निवृत होकर स्नान करें। बजरंग बलि हनुमान की प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर विधिपूर्वक पूजा करें और श्री हनुमान जी की आरती उतारें, इसके बाद हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ भी करें।
पूजन सामग्रियां
हनुमान जयंती पर श्री रामचरित मानस के सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का अखंड पाठ भी करवाया जा सकता है। प्रसाद के रुप में गुड़, भीगे या भुने हुए चने और बेसन के लड्डू रख सकते हैं। पूजा सामग्री के लिये गैंदा, गुलाब, कनेर, सूरजमुखी आदि के लाल या पीले फूल, सिंदूर, केसरयुक्त चंदन, धूप-अगरबती, शुद्ध घी या चमेली के तेल का दीप आदि ले सकते हैं। इस दिन हनुमान जी को सिंदूर का चोला चढाएं तो उससे भी मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होती हैं।
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