संतान की दीर्घायु, सुख-शांति एवं मंगल कामना हेतु किया जाता है जीवित्पुत्रिका व्रत
जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। सौभाग्यवती स्त्रियां इस दिन निर्जला उपवास करती हैं। माताएं नदियों-सरोवरों में स्नान कर पूजन-अर्चन करती हैं। पुत्रवती महिलाएं प्रदोषकाल में जीमूतवान की पूजा करती हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत करने से संतान निरोगी और दीर्घायु होती है।
देशभर में जीवित्पुत्रिका का पावन व्रत किया जा रहा है। जीवित्पुत्रिका व्रत को जीतिया, जीउतिया और जिमूतवाहन भी कहा जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत का विशेष धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। जीवित्पुत्रिका व्रत संतान की मंगल कामना हेतु किया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत संतान की दीर्घायु के लिए किया जाता है।
संतान को सुख-शांति प्रदान करता है यह व्रत
जीवित्पुत्रिका व्रत संतान को सुख और शांति प्रदान करने वाला है। जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। सौभाग्यवती स्त्रियां इस दिन निर्जला उपवास करती हैं। माताएं नदियों-सरोवरों में स्नान कर पूजन-अर्चन करती हैं। पुत्रवती महिलाएं प्रदोषकाल में जीमूतवान की पूजा करती हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत करने से संतान निरोगी और दीर्घायु होती है।
महिलाओं के लिए जितिया व्रत का विशेष महत्व
जीवित्पुकत्रिका अथवा जितिया व्रत हिन्दूि धर्म में आस्था रखने वाली महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह व्रत संतान की मंगल कामना के लिए किया जाता है। महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और उसकी रक्षा के लिए इस निर्जला व्रत रखती हैं। यह व्रत पूरे तीन दिन तक चलता है। व्रत के दूसरे दिन व्रत रखने वाली महिला पूरे दिन और पूरी रात जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती है। यह व्रत उत्तर भारत विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार में प्रचलित है। पड़ोसी देश नेपाल में भी महिलाएं बढ़-चढ़ कर इस व्रत को करती हैं।
जितिया व्रत कब है?
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार जितिया या जीवित्पुलत्रिका व्रत अश्विन माह कृष्णक पक्ष की सप्तलमी से नवमी तक मनाया जाता है। इस बार व्रत को लेकर पंडित और पंचांग एकमत नहीं हैं। यही कारण है कि जितिया का व्रत इस बार दो दिन का हो गया है। बनारस पंचांग के अनुसार 22 सितंबर को जितिया व्रत रखा जाएगा और 23 सितंबर की सुबह पारण होगा। वहीं विश्वविद्यालय पंचांग को मानने वाले भक्त 21 सितंबर को व्रत रखेंगे और और 22 सितंबर की दोपहर तीन बजे व्रत का पारण करेंगे। यह व्रत 21 सितंबर से लेकर 23 सितंबर तक है. व्रत का मुख्यर दिन अष्टऔमी 22 सितंबर को है।
जितिया व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त
अष्टयमी तिथि प्रारंभ: 21 सितंबर 2019 को रात 08 बजकर 21 मिनट से
अष्टयमी तिथि समाप्तभ: 22 सितंबर 2018 को रात 07 बजकर 50 मिनट तक
जितिया व्रत की पूजा विधि
जितिया में तीन दिन तक उपवास किया जाता है। जितिया व्रत में पहले दिन को नहाय-खाय कहा जाता है। इस दिन महिलाएं नहाने के बाद एक बार भोजन करती हैं और फिर दिन भर कुछ नहीं खाती हैं। व्रत में दूसरे दिन को खर जितिया कहा जाता है। यही व्रत का विशेष और मुख्यक दिन है जो कि अष्टदमी को पड़ता है। इस दिन महिलाएं निर्जला रहती हैं। यहां तक कि रात को भी पानी नहीं पिया जाता है। व्रत के तीसरे दिन पारण किया जाता है। इस दिन व्रत का पारण करने के बाद भोजन ग्रहण किया जाता है।
जितिया व्रत की कथा
जितिया व्रत की कथा महाभारत काल से संबंधित है। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था। उसके हृदय में बदले की भावना भड़क रही थी। इसी के चलते वह पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर उन्हें मार डाला। वे सभी द्रोपदी की पांच संतानें थीं। फिर अुर्जन ने उसे बंदी बनाकर उसकी दिव्यन मणि छीन ली। अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्युस की पत्नीद उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने की साजिश रची। उसने ब्रह्मास्त्रन का इस्तेकमाल कर उत्तरा के गर्भ को नष्टा कर दिया। ऐसे में भगवान श्रीकृष्णक ने अपने सभी पुण्योंा का फल उत्तरा की अजन्मीे संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उस बच्चेो का नाम जीवित्पुसत्रिका पड़ा। तब से ही संतान की लंबी उम्र और मंगल के लिए जितिया का व्रत किया जाने लगा। आगे चलकर यही बच्चाा राजा परीक्षित बना।
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