क्या जल्दी जाने वाला नहीं है कोरोना? हमें इसके साथ जीने की डालनी होगी आदत? आर्थिक गतिविधियां भी करनी होगी शुरू?
भारत जैसे अर्धविकसित देश की अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक लॉकड़ाउन में नहीं रखा जा सकता। हालांकि इस तथ्य को भी नकारा नहीं जा सकता कि लॉकड़ाउन भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण के रफ्तार को धीमी रखने में सफल रहा है। फिर भी लॉकड़ाउन कोरोना से बचाव का एकमात्र उपाय नहीं है। इसलिए अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आर्थिक गतिविधियां शुरू करनी ही होगी।
भारत में कोरोना का कहर जारी है। कोरोना संक्रमितों में संख्या अब तक 76 हजार के पार पहुंच गई है। देशव्यापी लॉकडाउन के बावजूद प्राणघातक कोरोना का प्रसार होता ही जा रहा है। लिहाजा, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बाद केंद्र सरकार को भी अब यह भान हो गया है कि हमें कोरोना वायरस के साथ जीने की आदत डालनी होगी। और इसी का परिणाम है कि लॉकड़ाउन के बीच केंद्र सरकार ने सार्वजनिक परिवहन को शुरू करने का निर्णय किया है। मंगलवार से रेल की पटरियों पर यात्री ट्रेनें दौडऩे लगी हैं।
केंद्र सरकार के इस समझदारीपूर्ण फैसले का समर्थन और स्वागत करना चाहिए। पिछले 47 दिनों से आर्थिक और व्यावसायिक गतिविधियां पूरी तरह ठप हैं। अभी तक इसका नकारात्मक असर रोज कमाने और खाने वाले दिहाड़ी मजदूरों पर ही पड़ा है। लेकिन अगर आर्थिक गतिविधियां आगे भी पूरी तरह ठप रहीं तो छोटे और मझोले व्यापारी या अन्य नौकरीपेशा वाले निम्न मध्यवर्गीय लोग भी प्रभावित होने लगेंगे।
दरअसल, यह ऐसा वर्ग है जो अपनी आय का बहुत मामूली हिस्सा बचत कर पाता है। आर्थिक तबाही के कारण जब यह वर्ग सड़कों पर उतरेगा तो अराजकता पैदा होने लगेगी। इसलिए सरकार शायद यह समझ चुकी है कि कोरोना से बचाव के नियमों का कठोरता से पालन करते हुए आर्थिक गतिविधियों को शुरू करना ही चाहिए।
भारत जैसे अर्धविकसित देश की अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक लॉकड़ाउन में नहीं रखा जा सकता। हालांकि इस तथ्य को भी नकारा नहीं जा सकता कि लॉकड़ाउन भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण के रफ्तार को धीमी रखने में सफल रहा है। फिर भी लॉकड़ाउन कोरोना से बचाव का एकमात्र उपाय नहीं है। इसलिए अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आर्थिक गतिविधियां शुरू करनी ही होगी।
कोरोना वायरस के प्रति अब तो जन साधारण में जागरूकता का प्रचार-प्रसार भी हो गया है। लोगों से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे सावधानियां बरतते हुए अपने कामकाज को आगे बढ़ाएंगे। आगामी कुछ महीने नियंत्रित ढंग से आर्थिक गतिविधियां चलेंगी।
केंद्र और राज्य सरकारों की असली अग्निपरीक्षा भी इन्हीं दिनों में होगी कि वे किस तरह कोरोना महामारी और आर्थिक गतिविधियों के बीच सामंजस्य बैठा पातीं हैं। अर्थात कोरोना की रोकथाम भी हो और आर्थिक गतिविधियां भी चलती रहें। यह सरकारों की प्रशासनिक चुस्ती और दक्षता पर निर्भर करेगा।
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