नवरात्र में कैसे करें नवदुर्गा का पूजन, किस मंत्र का करें जप?
नवरात्र नौ शक्तियों से संयुक्त है। नवरात्र के नौ दिनों में प्रतिदिन एक शक्ति की पूजा-अर्चना का विधान है। सृष्टि की संचालिका आदिशक्ति की नौ कलाएं यानी नौ विभूतियां नवदुर्गा कहलाती हैं। नवरात्र के पावन अवसर पर नौ दिनों तक नौ देवियों की पूजा-उपासना से भक्तों, साधकों एवं उपासकों को मनोवांच्छित फलों की प्राप्ति होती है।
नवरात्र नौ शक्तियों से संयुक्त है। नवरात्र के नौ दिनों में प्रतिदिन एक शक्ति की पूजा-अर्चना का विधान है। सृष्टि की संचालिका आदिशक्ति की नौ कलाएं यानी नौ विभूतियां नवदुर्गा कहलाती हैं। नवरात्र के पावन अवसर पर नौ दिनों तक नौ देवियों की पूजा-उपासना से भक्तों, साधकों एवं उपासकों को मनोवांच्छित फलों की प्राप्ति होती है।
नवरात्र में नवदुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा का अलग-अलग विधान है। नवरात्र के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इनका मूल मंत्र है- ‘ऊँ शं शैल पुत्रयै फट्’ है। माँ शैलपुत्री के इस मंत्र का जाप करने से माँ स्त्रियों को अखंड सौभाग्यवती का वरदान देती हैं तथा उपासकों के जीवन में स्थिरता आती है।
नवदुर्गा का दूसरा स्वरूप माँ ब्रह्मचारिणी का है। नवरात्र के दूसरे दिन ‘ऊँ ब्रं ब्रह्मचारिण्यै नमः’ का एक सौ आठ या एक हजार आठ बार जप करने से भक्तों को सभी पापों एवं संतापों से मुक्ति मिलती है।
नवरात्र की तृतीया तिथि को माँ चंद्रघंटा की पूजा से इहलोक एवं परलोक में कल्याण होता है। इनका बीज मंत्र एंव मूल मंत्र ‘‘ऊँ चं चं चं चं चंद्रघंटाये हुँ है।
नवरात्र की चतुर्थी तिथि को ऊँ क्रीं कुष्मांडायै नमः’ मंत्र के जाप करते हुए माँ कूष्मांडा की उपासना करने से रोग एवं शोक का नाश होता है तथा उपासक के अंदर आयु-यश एवं बल की वृद्धि होती है।
नवरात्र के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाती है। स्कंद देव को गोद में लिए कमल पुष्प पर विराजमान स्कंदमाता सदा शुभ फल देने वाली हैं। इनका मूल मंत्र ‘ऊँ स्कंदायै देव्यै ऊँ’ का जाप करने से भक्त एवं साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
देवी दुर्गा के छठे स्वरूप की बात करें, तो वो माँ कात्यायनी हैं। इसका मूल मंत्र ऊँ क्रां क्रौं कात्ययन्यें क्रौं क्रौं फट् है। माँ कात्यायनी की पूजा एवं उपासना से साधक को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है।
नवरात्र की सप्तमी तिथि को माँ दुर्गा के सातवें स्वरूप माँ कालरात्री की पूजा का विधान है। इस दिन इनके बीज मंत्र ‘ली क्रौं हुँ’ का लगातार जाप करने से माँ कालरात्रि प्रसन्न होती हैं। तथा उपासकों को अनेक शुभ फल प्राप्त होते हैं।
बात माँ महागौरी की करें, तो माँ महागौरी देवी दुर्गा की अष्टम स्वरूप है। अतः नवरात्र की अष्टमी तिथि को इनकी आराधना की जाती है। माँ महागौरी का मूलमंत्र ‘ऊँ श्री महागौर्ये ऊँ’ है। इस मंत्र का जाप करने से माँ महागौरी अत्यंत प्रसन्न होती हैं, जिससे भक्तों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।
माता का नवम स्वरूप अष्ट सिद्धियां प्रदान करने वाली माँ सिद्धिदात्री का है। इनकी अर्चना शान्तिदायक, अमृत पद की ओर ले जाने वाली होती है। माँ सिद्धिदात्री का मूल मंत्र ‘ ऊँ शं सिद्धिप्रदायै शं ऊँ’ है। माँ के मूलमंत्र का नवमी तिथि को जाप करने से समस्त निधियों एवं सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
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