एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम फैसला, पुराना फैसला लिया वापस, बगैर जांच होगी गिरफ्तारी
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र की याचिका को स्वीकार कर अपने पुराने फैसले को वापस ले लिया और इस कानून के तहत अग्रिम जमानत का प्रावधान खत्म कर दिया। कोर्ट के फैसले के अनुसार अब बिना जांच के मामला दर्ज किया जाएगा और किसी की गिरफ्तारी से पहले अनुमति की आवश्यनकता नहीं है और न ही जांच की जरूरत है।
देश की सर्वोच्च अदालत ने अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति पर केंद्र की समीक्षा याचिका को अनुमति दे दी है। अदालत ने केंद्र की याचिका को स्वीकार कर अपने पुराने फैसले को वापस ले लिया और इस कानून के तहत अग्रिम जमानत का प्रावधान खत्म कर दिया। कोर्ट के फैसले के अनुसार अब बिना जांच के मामला दर्ज किया जाएगा और किसी की गिरफ्तारी से पहले अनुमति की आवश्यनकता नहीं है और न ही जांच की जरूरत है। इससे पहले शिकायत दर्ज करने के बाद जांच करने पर ही मामला दर्ज करने का आदेश था।
अदालत ने कहा कि आजादी के 70 साल बाद भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को भेदभाव और छूआछूत का सामना करना पड़ रहा है। उनका अभी भी सामाजिक रूप से बहिष्कार किया जा रहा है। देश में समानता के लिए अभी भी उनका संघर्ष खत्म नहीं हुआ है।
अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल का कहना था कि मार्च 2018 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला संविधान के तहत सही नहीं था। कोर्ट ने 13 सितंबर को केंद्र की समीक्षा याचिका तीन जजों की पीठ को सौंपी थी। जस्टिस अरुण मिश्रा, एमआर शाह और बीआर गवई की खंडपीठ ने एससी/एसटी अधिनियम के मामले में फैसला दिया। गत 18 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 20 मार्च को दो जजों की पीठ के फैसले की आलोचना की थी। कोर्ट ने कहा था कि क्या संविधान की भावना के विरुद्ध भी कोई फैसला दिया जा सकता है।
20 मार्च 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने अग्रिम जमानत का प्रावधान पेश किया था। साथ ही गिरफ्तारी के लिए गाइड लाइंस दिए थे। पिछले साल दिए गए फैसले में न्यायालय ने माना था कि एससी/एसटी एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी की व्यवस्था के चलते कई बार बेकसूर लोगों को जेल जाना पड़ता है। लिहाजा, अदालत ने तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इसके खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार अर्जी दायर की थी।
सर्वोच्च अदालत ने निर्णय दिया था कि एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोपी की सीधे गिरफ्तारी नहीं हो सकेगी। इस आदेश के मुताबिक, मामले में अंतरिम जमानत का प्रावधान किया गया था और गिरफ्तारी से पहले पुलिस को एक प्रारंभिक जांच करनी थी। इस फैसले के बाद एससी/एसटी समुदाय के लोग देशभर में व्यापक प्रदर्शन किए थे।
व्यापक प्रदर्शन को देखते हुए केंद्र सरकार ने कोर्ट में एक याचिका दायर की थी और बाद में कोर्ट के आदेश के खिलाफ कानून में आवश्यक संशोधन किए थे। संशोधित कानून के लागू होने पर कोर्ट ने किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई थी। सरकार के इस फैसले के बाद कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई। इसमें आरोप लगाया गया था कि संसद ने मनमाने तरीके से इस कानून को लागू कराया है।
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