केंद्र सरकार का बाबा भोलेनाथ के भक्तों को नायाब तोहफा , धारचूला-लिपूलेख मार्ग को खोला, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने किया उद्घाटन, कैलाश मानसरोवर यात्रा अब होगी आसान
केंद्र सरकार ने कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं को नायाब तोहफा दिया है। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा उत्तराखंड में बनाए गए धारचूला-लिपूलेख मार्ग को खोल दिया गया है। सरकार के इस सकारात्मक कदम से कैलाश मानसरोवर यात्रा और आसान हो जाएगी।
केंद्र सरकार ने कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं को नायाब तोहफा दिया है। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा उत्तराखंड में बनाए गए धारचूला-लिपूलेख मार्ग को खोल दिया गया है। सरकार के इस सकारात्मक कदम से कैलाश मानसरोवर यात्रा और आसान हो जाएगी। कैलाश मानसरोवर यात्रा श्रद्धालुओं के लिए पहले के मुकाबले काफी सुगम हो जाएगी। यात्रा में समय भी कम लगेगा, क्योंकि लोगों को कठिन रास्ते पर सफर नहीं करना पड़ेगा।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को दिल्ली से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस मार्ग का उद्घाटन किया। रक्षामंत्री ने ट्वीट किया, ''मानसरोवर यात्रा के लिए आज एक लिंक रोड का उद्घाटन करके खुशी हुई। बीआरओ ने धारचूला से लिपूलेख (चीन बॉर्डर) को जोड़ने की उपलब्धि हासिल की है, इसे कैलाश मानसरोवर यात्रा रूट के नाम से जाना जाता है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए वाहनों के एक जत्थे को पिथौरागढ़ से गुंजी के लिए रवाना किया।''
सीमा सड़क संगठन इंजीनियरों और कर्मियों को बधाई देते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि उनके समर्पण ने इस उपलब्धि को संभव बनाया। रक्षा मंत्री ने इस सड़क के निर्माण के दौरान हुए जानमाल के नुकसान पर शोक व्यक्त किया। उन्होंने बीआरओ कर्मियों के योगदान की प्रशंसा की जो दूरस्थ इलाकों में तैनात हैं और अपने परिवारों से दूर हैं।
सीमा सड़क संगठन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह ने कहा कि अधिक ऊंचाई, भारी बर्फबारी और साल में केवल 5 महीने काम करने लायक होने की वजह से इस सड़क का निर्माण बहुत चुनौतीपूर्ण था। सीमा सड़क संगठन ने 80 किलोमीटर की इस सड़क से पिथौरागढ़ जिले में धारचूला और लिपुलेख को जोड़ा है। इस मार्ग के खुलने से यात्रियों को अब 5-6 दिन तक चढ़ाई करने की जरूरत नहीं होगी।
केंद्र की इस परियोजना के पूरा होने पर अब कैलाश यात्रियों को ज्यादा चढ़ाई नहीं करनी होगी। अभी कैलाश-मानसरोवर की यात्रा में सिक्किम या नेपाल की तरफ से जाने वाले रास्तों के माध्यम से लगभग दो से तीन सप्ताह लगते हैं। लिपुलेख मार्ग में ऊंचाई वाले इलाकों में 90 किलोमीटर का पैदल ट्रैक था और बुजुर्ग यात्रियों को यहां काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।
सिक्किम और नेपाल के दो अन्य दो सड़क मार्ग हैं। इसमें 20 प्रतिशत भारतीय और 80 प्रतिशत भूमि का हिस्सा चीन में आता है। घाटीबगढ़-लिपुलेख सड़क के खुलने के साथ, यह अनुपात उलट गया है। अब मानसरोवर के तीर्थयात्री भारतीय सड़कों पर 84 प्रतिशत यात्रा करेंगे,जबकि चीन में केवल 16 प्रतिशत पैदल यात्रा करेंगे।
ज्ञात हो कि यह सड़क तवाघाट से आगे घियाबागढ़ से निकलती है और लिपुलेख दर्रा, कैलाश-मानसरोवर के प्रवेश द्वार पर समाप्त हो जाती है। 80 किलोमीटर की इस सड़क में ऊंचाई 6,000 से 17,060 फीट तक बढ़ जाती है। पिथौरागढ़ से चीन और नेपाल बॉर्डर लगता है। लिहाजा, रणनीतिक रूप से भी यह सड़क भारत के लिए अहम है। यहां आर्मी के अलावा आईटीबीपी और एसएसबी भी तैनात है।
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