अब नीतीश की जमीन पर सीता ‘स्वयंवर’ करेगी भाजपा
फागु चौहान बिहार में अतिपिछड़ी जाति के पहले राज्यपाल मनोनीत किये गये हैं। इसका प्रचार भी मीडिया में अतिपिछड़ा के रूप में किया गया। इसका लाभ लेने का प्रयास भी भाजपा करेगी। अब बिहार में अतिपिछड़ी जातियों के वोटों के लिए जदयू और भाजपा में लड़ाई शुरू होगी।वरिष्ठ पत्रकार बीरेंद्र यादव की रिपोर्ट ।
भाजपा ने बिहार विधान सभा चुनाव में जातीय वोटों की गोलबंदी को लेकर अभियान शुरू कर दिया है। उसका पहला मकसद नीतीश कुमार के अतिपिछड़ा वोटों के आधार में सेंधमारी करना है। भाजपा लालू यादव के आधार वोट में सेंधमारी की शुरुआत पहले ही कर चुकी है। अब नीतीश की जमीन पर भाजपा अपना भगवा फहराना चाहती है, ताकि अगले विधान सभा चुनाव तक भाजपा अकेले दम पर चुनाव लड़ सके।
इसी मकसद से भाजपा ने उत्तर प्रदेश के घोसी विधान सभा क्षेत्र से विधायक फागु चौहान को बिहार का नया राज्यपाल नियुक्त किया है। वे बिहार के राजनीतिक समीकरणों में अतिपिछड़ी जाति नोनिया से आते हैं। राजद के साथ वाली नीतीश कुमार की सरकार ने मंत्री अनिता देवी नोनिया जाति की ही थीं। भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रेणु देवी भी नोनिया जाति से आती हैं।
बिहार भाजपा और नीतीश कुमार के जदयू में आपसी खींचतान के बीच अतिपिछड़ी जाति के फागु चौहान को राज्यपाल मनोनीत कर भाजपा ने करीब 30 फीसदी वाली अतिपिछड़ी जातियों को बड़ा संदेश दिया है। बिहार में सवर्ण और पिछड़ी जातियों के बीच स्पष्ट विभाजन के बाद अतिपिछड़ी जाति को आकर्षित करने के लिए सभी पार्टियों की ओर से प्रयास किया जा रहा है। पंचायत राज और नगर निकायों में अतिपिछड़ी जातियों को 20 फीसदी आरक्षण देकर नीतीश कुमार ने इन जातियों में अपना आधार बनाया है। आरक्षण का श्रेय भाजपा भी लेती रही है।नीतीश कुमार ने जब लालू यादव के खिलाफ मोर्चा खोला था, उस समय नीतीश ने अतिपिछड़ी जातियों को साधने का पूरा प्रयास किया था। यादव के खिलाफ ‘गैरयादव पिछड़ा’ का नारा दिया था। इसका व्यापक असर बाद में दिखा और यही गैरयादव पिछड़ा नीतीश की राजनीतिक जमीन बन गयी।
भाजपा के साथ समझौते के बाद भी अतिपिछड़ा नीतीश के साथ ही जुड़ा रहा। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के अपिपिछड़ा प्रधानमंत्री का नारा कारगार साबित हुआ और अतिपिछड़ों का एक बड़ा खेमा नीतीश का साथ छोड़कर भाजपा के साथ चला गया, लेकिन 2015 के विधान सभा चुनाव में वह ताकत फिर नीतीश के साथ एकजुट दिखी। इस यर्थाथ को भांपकर ही भाजपा ने अतिपिछड़ा कार्ड खेला और फागु चौहान को राज्य के सर्वोच्च संवैधानिक पद राज्यपाल का जिम्मा सौंपा।
फागु चौहान मूलत: समाजवादी पृष्ठभूमि के हैं। 1985 में पहली बार दलित मजदूर किसान पार्टी के टिकट पर घोसी से विधायक बने थे। बाद में वे भाजपा में चले गये और विधायक बने। बसपा से भी विधायक बने और फिर 2017 के विधान सभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर विधायक बने। वे उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष भी हैं। यूपी विधान सभा में अभी उनका छठा कार्यकाल है।
उत्तर प्रदेश में उन्हें पिछड़ी जातियों का कदावर नेता माना जाता है और इसी छवि का इस्तेमाल भाजपा बिहार में करना चाहती है। बिहार में अतिपिछड़ा नीतीश कुमार के साथ है। अब फागु चौहान के बहाने नीतीश के अतिपिछड़ी जमीन पर ‘सीता स्वयंवर’ आयोजित करने की रणनीति बना डाली है। नीतीश के साथ खुद को भी योग्य ‘वर’ साबित करने का प्लान कर चुकी है। दलित राष्ट्रपति, अतिपिछड़ा प्रधानमंत्री के बाद अतिपिछड़ा राज्यपाल की रणनीति करीब 45 फीसदी वोटों को जोड़ने का प्रयास है। चुनाव परिणामों के इसका सार्थक असर भी दिख रहा है।
भाजपा ने बिहार के तीन नेतओं को राज्यपाल बनाया है। इसमें भी सामाजिक समीकरण का ख्याल रखा है। अनुसूचित जाति के सत्यदेव नारायण आर्य को हरियाणा का राज्यपाल नियुक्त हैं तो अतिपिछड़ी जाति के गंगा प्रसाद को सिक्किम का राज्यपाल बनाया गया है। जबकि सवर्ण जाति की मृदुला सिन्हा को गोवा की राज्यपाल बनाया गया है।
फागु चौहान बिहार में अतिपिछड़ी जाति के पहले राज्यपाल मनोनीत किये गये हैं। इसका प्रचार भी मीडिया में अतिपिछड़ा के रूप में किया गया। इसका लाभ लेने का प्रयास भी भाजपा करेगी। अब बिहार में अतिपिछड़ी जातियों के वोटों के लिए जदयू और भाजपा में लड़ाई शुरू होगी। नीतीश अपने वोट को कितना बांध कर रख पाते हैं या भाजपा नीतीश के आधार पर कितना कब्जा कर पाती है, यह समय बतायेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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