मानव जीवन में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का क्या है महत्व?
देशभर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व मनाया जाता है। भगवान श्री गीरिधर गोपाल के जन्मोत्वस को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। श्रीकृष्ण जन्माषटमी पर भक्ति-भाव एवं हर्षोल्लास का माहौल होता है।
देशभर में जन्माष्टमी का त्यौहार भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। मथुरा नगरी में असुरराज कंस के कारागृह में देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को अवरतित हुए। उनके अवतरण के समय अर्धरात्रि यानी आधी रात थी, चन्द्रमा उदय हो रहा था और उस समय रोहिणी नक्षत्र भी था। इसलिए इस दिन को प्रतिवर्ष कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तैयारियां जोर-शोर से शुरु हो चुकी है। इस वर्ष भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव 24 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जा रहा है। इस दौरान मंदिरों और घरों को सजाया-संवारा जाता है और लोग अपने प्यारे कान्हा के जन्म को उत्सव के रूप में मनाते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को कृष्णाष्टमी, सातम-आठम, गोकुलाष्टमी, अष्टम रोहिणी, श्रीकृष्ण जयंती एवं श्री जयंती आदि नामों से भी जाना जाता है।
श्री कृण्ण जन्माष्टमी व्रत का विधान
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर व्रत एवं पूजन का विधान है। प्रातःकाल नित्यकर्म से निवृत होकर स्नानोपरांत अशोक के पत्तों से घर को सजाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण तथा शालिग्राम जी की मूर्ति को पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। श्रद्धालु दिन में पूजन, कीर्तन के पश्चात् रात्रि जागरण करते हैं और ठीक बारह बजे भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के उपासकों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वह मोह माया से मुक्त हो जाते हैं। व्रतधारियों को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
भगवान श्रीकृष्ण के मंत्रों का महत्व
बाल-गोपाल श्रीकृष्ण मंत्र ना केवल आर्थिक समस्या दूर करते हैं, अपितु जीवन की प्रत्येक परेशानी में कान्हा के चमत्कारी मंत्र सहायक सिद्ध होते हैं। दुख-दरिद्रता हो चाहे, संतान एवं विजय प्राप्ति की अभिलाषा। गृह कलह-क्लेश हो अथवा सुख एवं समृद्धि की कमी। हर समस्या का शमन करते हैं भगवान श्रीकृष्ण के चमत्कारिक मंत्र।
दही-हांडी का है गहन महत्व
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर वैसे तो देशभर में दही-हांडी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। परंतु महाराष्ट्र की दही-हांडी प्रतियोगिता अत्यंत लोकप्रिय है। दही-हांडी प्रतियोगिता में देश-विदेश के बाल-गोबिंदा भाग लेते हैं। बाल-गोविंदाओं द्वारा मटकी फोड़ा जाता है और प्रतियोगिता में विजेता टीम को उचित ईनाम देकर सम्मानित किया जाता है।
कान्हा ने हर किरदार को जिया
धरती पर जब-जब अन्याय और अत्याचार बढ़ा है। तब-तब भगवान विष्णु ने अवतार लिया है। अन्याय और अत्याचार से सभी को मुक्त किया है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भी इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु हुआ। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवन काल में, जीवन के हर एक किरदार को जिया और लोगों को उसी तरह जीने की प्रेरणा भी दी। वो चाहे गोकुल में गोपियों संग रासलीला हो या महाभारत में पांडवों और कौरवों संग युद्ध का मैदान।
भगवान श्रीकृष्ण की महिमा
भगवान श्रीकृष्ण श्रीहरि विष्णु के आठवें अवतार थे। सोलहों कलाओं से युक्त भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने पांडव पुत्र अर्जुन को कायरता से वीरता, विषाद से प्रसाद की ओर जाने का दिव्य संदेश दिया। भयंकर विषधर कालिया नाग के फन पर नृत्य किया। विदुराणी का साग खाया और गोवर्धन पर्वत को उठाकर गिरिधारी कहलाए। भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की गालियां सुनीं तो क्रोध आने पर सुदर्शन चक्र भी उठाया।
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