अखंड सुहाग एवं पारस्परिक प्रेम का पर्व है ‘करवा चौथ’
करवा चौथ श्री करक चतुर्थी व्रत के नाम से भी प्रसिद्ध है। प्रतिवर्ष यह व्रत कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है। सुहागिन स्त्रियां इस व्रत में पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं। समस्त शिव परिवार की उपासना कर अपने पति की लंबी आयु और दांपत्य जीवन में प्रेम तथा सामंजस्य की कामना करती हैं।
देशभर में इस वर्ष 17 अक्टूबर को करवा चौथ का पावन पर्व मनाया जा रहा है। करवा चौथ श्री करक चतुर्थी व्रत के नाम से भी प्रसिद्ध है। प्रतिवर्ष यह व्रत कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है। सुहागिन स्त्रियां इस व्रत में पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं। समस्त शिव परिवार की उपासना कर अपने पति की लंबी आयु और दांपत्य जीवन में प्रेम तथा सामंजस्य की कामना करती हैं। करवाचौथ का व्रत, वटसावित्री और हारितालिका तीज के समान ही दांपत्य जीवन के लिए शुभफलदायी होता है। यह व्रत पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, बंगाल समेत सभी प्रांतों में किया जाता है।
करवा चौथ' का महत्व
करवा चौथ का व्रत प्रायः निर्जला किया जाता है। करवा चौथ का व्रत एवं पूजन शास्त्रोक्त विधि से, श्रद्धापूर्वक, संपूर्ण विधि-विधान से, पूर्ण विश्वास के साथ, अपनी मर्यादा के अनुकूल करना चाहिए। अन्न ग्रहण-जल नहीं करना चाहिए। करवा चौथ व्रत में भगवान श्री गणेश, माँ अंबिका गौरी, श्री नंदीश्वर, श्री कार्तिकेय जी, भगवान शिव, माता पार्वती और चंद्रदेव की उपासना की जाती है। पूजन के समय देवताओं की प्रतिमा अथवा चित्र का मुख पश्चिम दिशा में होना चाहिए। स्वयं पूर्व दिशा में मुख करके बैठें, क्योंकि ज्ञान, कर्म, तेज और शक्ति के स्वामी सूर्यदेव पूर्व से उदित होते हैं।
'करवा चौथ' का पूजन
करवा चौथ पर सर्वप्रथम व्रत का संकल्प लें। तत्पश्चात नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नानोपरांत दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। आठ पूरियों की अठावरी, हलवा और पकवान बनाएं, पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में भगवान श्रीगणेश को बिठाएं। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। संपूर्ण सुहाग सामग्रियों से गौरी का शृंगार करें। जल से भरा लोटा रखें और बायना देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवे में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें और उसके ऊपर दक्षिणा रख दें। रोली से करवा पर स्वस्तिक बना लें और फिर गौरी, गणेश समेत चित्रित करवा की पूजा करते हुए पति की दीर्घायु की कामना करें।
'करवा चौथ' पर चंद्रदर्शन का महत्व
करवा चौथ के दिन पूजन के लिए दीवार पर या कागज पर चंद्रमा बनाते हैं और उसके नीचे भगवान शिव और कार्तिकेय की प्रतिमा स्थापित करते हैं। इसी प्रतिमा की पूजा व्रत करने वाली स्त्रियों द्वारा की जाती है। सुहागिन स्त्रियां दिनभर का निर्जला व्रत रखती हैं। दिन भर की कठोर तपस्या के बाद जब रात्री में चंद्रमा के दर्शन होते हैं, तब चंद्रमा की पूजा के बाद व्रत पूर्ण होता है। रात्री की पूजा में चंद्रमा को अर्ध्य देना, महत्वपूर्ण है। हर वो स्त्री जो व्रत करती है, वह चंद्रमा को अर्ध्य जरूर देती है, क्योंकि चंद्रदेव के दर्शन और अर्ध्य अर्पित के उपरांत ही व्रत पूर्ण होता है। व्रत पूर्ण करने के बाद स्त्रियां जल और भोजन ग्रहण करती हैं।
'करवा चौथ' पर श्रृंगार
करवा चौथ और श्रृंगार दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। श्रृंगार के बिना करवा का व्रत भला कैसे पूर्ण होगा। हमारे देश में वैसे तो हर तीज-त्योहार में सुहागिन स्त्रियों का श्रृंगार स्वभाविक है। परंतु जब बात करवा चौथ की आती है, तो स्त्रियो का उत्साह ही अलग होता है। इस दिन स्त्रीयां पूरे सोलह श्रृंगार करती हैं। स्त्रियां सजने-संवरने की तैयारी कई दिनों पूर्व से ही शुरू कर देती हैं। स्त्रियां पार्लर जाती हैं, मेहंदी लगवाती हैं और व्रत वाले दिन विशेष कपड़े पहनती हैं, गहने पहनती हैं। गहनों में सबसे खास चीज होती है स्त्री द्वारा पहनी गयी नथ। नथ के पहनने से स्त्री की सुंदरता और भी बढ़ जाती है और उसकी सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं।
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