यह राहुल है या रणछोड़दास ?
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अजीब-सी नौटंकी में फंसे हुए हैं। यदि उन्हें अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना ही है तो फिर वे मान-मनौव्वल के दौर में क्यों फंसे हैं ? चार-छह दिन ऐसी खबरें छपती रहें कि वे किसी की भी नहीं सुन रहे हैं और फिर अचानक खबर छपे कि वे अध्यक्ष पद पर बने रहने के आग्रह को मान गए हैं, तो राहुल की कितनी मजाक बनेगी। जिन प्रदेशाध्यक्षों ने हार के बाद इस्तीफे दिए हैं, वे अपने नेता के बारे में क्या सोचेंगे ? राहुल ने अभी तक नए अध्यक्ष की घोषणा क्यों नहीं की ?
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अजीब-सी नौटंकी में फंसे हुए हैं। यदि उन्हें अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना ही है तो फिर वे मान-मनौव्वल के दौर में क्यों फंसे हैं ? चार-छह दिन ऐसी खबरें छपती रहें कि वे किसी की भी नहीं सुन रहे हैं और फिर अचानक खबर छपे कि वे अध्यक्ष पद पर बने रहने के आग्रह को मान गए हैं, तो राहुल की कितनी मजाक बनेगी। जिन प्रदेशाध्यक्षों ने हार के बाद इस्तीफे दिए हैं, वे अपने नेता के बारे में क्या सोचेंगे ? राहुल ने अभी तक नए अध्यक्ष की घोषणा क्यों नहीं की ?
अभी तो इसी खबर पर लोग हंस रहे हैं कि राहुल ने कार्यसमिति की बैठक में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और मप्र के मुख्यमंत्री कमलनाथ की इसलिए निंदा की कि वे अपने बेटों के लिए टिकिट मांगकर ले गए। क्या यह तर्क कभी राहुल ने खुद पर लागू किया ? सोनिया गांधी ने अपने बेटे को पार्टी का अध्यक्ष कैसे बनाया ? क्यों बनाया ? देश के लाखों कांग्रेसियों और सैकड़ों बड़े नेताओं में उन्हें क्या अकेले राहुल ही इस पद के योग्य दिखे ? और फिर अपनी बेटी प्रियंका वाड्रा को कांग्रेस का महासचिव क्यों बना दिया ? सिर्फ इसलिए कि वह पूर्व अध्यक्ष की बेटी और वर्तमान अध्यक्ष की बहन है। मैं जो कहता हूं कि हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां अब प्राइवेट लिमिटेड कंपनियां बनती जा रही हैं, यह कथन अब स्वयंसिद्ध हो रहा है।
कोई भाई-भाई पार्टी है, कोई मां-बेटा पार्टी है, कोई बाप-बेटा पार्टी है, कोई बुआ-भतीजा पार्टी है। इन पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र का दम घुटता जा रहा है। इनकी कार्यसमितियों में किसी मुद्दे पर दो-टूक बहस नहीं होती। बिगाड़ के डर से कोई ईमान की बात नहीं कहता। यही बीमारी हमारी संसद को घेरे हुए हैं। उसमें बोलनेवाले सांसद अपने विरोधियों पर तो अंधाधुंध प्रहार करते हैं लेकिन अपनी सरकार या अपनी पार्टियों की गल्तियों पर आंख मींचे रहते हैं। यदि कांग्रेस में आतंरिक लोकतंत्र होता तो चुनाव-अभियान के दौरान ही कांग्रेस के बुजुर्ग नेता राहुल को फटकारते और उससे मर्यादित व्यवहार की मांग करते। राहुल ने मोदी की नकल करने की कोशिश की। जनेऊ, पूजा-पाठ, गौत्र-पाठ आदि क्या हैं ? किसी भी अनुभवी नेता ने राहुल को बरजा क्यों नहीं ? अब अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने से क्या होगा ? आप रणछोड़दास कहलाएँगे या नहीं ? पराजय की इस वेला में राहुल सीना तानकर डटे, कांग्रेस में जान फूंके, भाषण देना सीखे, थोड़ा पढ़े-लिखे और देश में जन-जागरण और जन-आंदोलन की लहर फैला दे तो भारतीय लोकतंत्र का बहुत कल्याण होगा ? जो हारकर भाग खड़ा हो, उसे नेता कौन मानेगा? नेता वह है, जो प्रतिकूल परिस्थिति में भी चट्टान की तरह अड़ा रहे।
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