देश का कानून नहीं, कंपनी के नियम वाले तर्क पर ट्विटर को कोर्ट की लताड़, अकाउंट सस्पेंड करने का मामला
ट्विटर, फेसबुक जैसी सोशल मीडिया कंपनियाँ आए दिन किसी न किसी का अकाउंट बिना तर्क के सस्पेंड करती रहती हैं। राष्ट्रवादी आवाज उठाने वाले अकाउंट इस मामले में सबसे ज्यादा पीड़ित हैं। केंद्र सरकार ने इस मामले में अकाउंट सस्पेंड होने वाले लोगों की तरफ से दिल्ली हाई कोर्ट में हलफनामा दायर किया है।
ट्विटर, फेसबुक जैसी सोशल मीडिया कंपनियाँ आए दिन किसी न किसी का अकाउंट बिना तर्क के सस्पेंड करती रहती हैं। राष्ट्रवादी आवाज उठाने वाले अकाउंट इस मामले में सबसे ज्यादा पीड़ित हैं। केंद्र सरकार ने इस मामले में अकाउंट सस्पेंड होने वाले लोगों की तरफ से दिल्ली हाई कोर्ट में हलफनामा दायर किया है।
दिल्ली हाई कोर्ट में इस मामले को लेकर सुनवाई हुई है। केंद्र सरकार ने हलफनामा देकर बताया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को हरेक यूजर्स को उचित मौका देना चाहिए। साथ ही कहा कि ये कंपनियाँ किसी के भी अकाउंट को बिना तर्क या फर्जी आधार पर सस्पेंड नहीं कर सकते।
ट्विटर यूजर्स मेघ बुलेटिन (Megh Bulletin) और वोकफ्लिक्स (Wokeflix) के अकाउंट सस्पेंशन से जुड़ा यह मामला दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहा है। इन दोनों अकाउंट को ट्विटर ने बिना कोई कारण बताए सस्पेंड कर दिया था। लॉ बीट के अनुसार ट्विटर यूजर भारद्वाज स्पिक्स (Bharadwajspeaks) भी इस मामले में एक अपीलकर्ता हैं।
13 अप्रैल 2022 को इस मामले में अंतिम जिरह-बहस होगी। फिलहाल कोर्ट की एक टिप्पणी गौर करने लायक है। यह टिप्पणी तब आई जब सरकारी वकील के देश के कायदे-कानून के अनुसार कंपनी को चलने के तर्क को काटते हुए ट्विटर के वकील ने कहा – “हम एक प्राइवेट कंपनी हैं, हमारे अपने कायदे-कानून हैं।” इस पर जज ने तीखी टिप्पणी की – “आप भारत सरकार से अपनी तुलना कर रहे हैं।”
ट्विटर ने 23 फरवरी 2022 को अपनी नीतियों का तर्क देते हुए और कथित ‘उल्लंघन’ का आरोप लगा कर कुछ खास राष्ट्रवादी ट्विटर अकाउंटों को मनमाने ढंग से सस्पेंड कर दिया था।
जिन अकाउंटों को मनमाने ढंग से सस्पेंड किया गया था, उनमें कुछ प्रमुख नाम ये हैं: समाचार और करंट अफेयर्स से संबंधित खबरें देने वाला हैंडल – मेघ बुलेटिन (Megh Bulletin), फेमस फैक्ट-चेकिंग ट्विटर अकाउंट – बिफिटिंग फैक्ट्स (Befitting Facts), व्यंग्य भरी बातें लिखने वाला अकाउंट – द स्किन डॉक्टर (The Skin Doctor), राजनीतिक व्यंग्य के लिए फेमस वोकफ्लिक्स (Wokeflix)।
बिग टेक कंपनियों की मनमानी का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि ट्विटर ने जिन राष्ट्रवादी अकाउंटों को सस्पेंड किया था, उन्हें उसके पीछे का कारण भी नहीं बताया। “हमारी नीतियों के खिलाफ है” और “कथित उल्लंघन” बता कर अकाउंट सस्पेंड।
ट्विटर की इसी मनमानी के खिलाफ इन सोशल मीडिया हैंडलों ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसके जवाब में कोर्ट ने ट्विटर और केंद्र सरकार दोनों को नोटिस भेजा था। इस मामले में भारत सरकार ने कोर्ट को बताया कि वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत देश के प्रत्येक नागरिक के अधिकारों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY: Ministry of Electronics and Information Technology) ने कोर्ट में कहा:
“इन प्लेटफार्मों (सोशल मीडिया) पर यूजर्स के अधिकारों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत सुरक्षित रखना है। आम जनता के कार्यों का निर्वहन करने वाले ऐसे प्लेटफॉर्म यह सुनिश्चित करने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं कि नागरिकों के इन अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं हो।”
ट्विटर अकाउंट मेघ बुलेटिन (Megh Bulletin) की याचिका के जवाब में, केंद्र सरकार ने बताया कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और नवीनतम सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता, Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) नियम 2021 के तहत मनमाने ढंग से यूजर के अकाउंट को सस्पेंड करने की मंजूरी नहीं है।
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कहा कि कानून और नियम बनाने का दृष्टिकोण निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित है: इंटरनेट सभी के लिए खुला (ओपन, पक्षपात के बिना) हो, सुरक्षित और भरोसेमंद हो। यूजर के प्रति प्लेटफॉर्म ही जवाबदेह हो, और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 सहित अन्य अधिकारों के तहत नागरिकों के किसी भी अधिकार का उल्लंघन करने की अनुमति किसी भी मंच या मध्यस्थ को तब तक नहीं, जब तक कि इससे मौजूदा नियमों का उल्लंघन न हो।
सुनवाई की शुरुआत में ही ट्विटर को दिल्ली हाई कोर्ट ने चेतावनी के लहजे में कहा कि वो समय आ गया है जब ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कंपनियाँ “जाग” जाएँ। जज यशवंत वर्मा ने यह टिप्पणी तब कि जब यूजर द्वारा दायर याचिका “सुनने लायक ही नहीं है” जैसा तर्क ट्विटर के वकील ने कोर्ट में दिया।
मनमानी से नहीं, देश के कानून से चलेंगी बिग-टेक कंपनियाँ:
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने 2-3 दिन पहले ही कहा था कि सोशल मीडिया कंपनियों को देश के कानून का उल्लंघन करने की आजादी नहीं है। कंपनियों द्वारा अपने कायदे-कानून के नाम पर यूजर की स्वतंत्रता के साथ खिलवाड़ नहीं करने दिया जा सकता है।
मीडिया से बात करते हुए मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा था कि भारतीय इंटरनेट को बिग-टेक कंपनियों के मनमाने फैसले और उससे होने वाले खतरों से मुक्त करना होगा। इसके लिए देश के कानूनों पर पुनर्विचार करने और बिग टेक कंपनियों को देश के ही खिलाफ माहौल बनाने से बचाना होगा।
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री की यह टिप्पणी रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के संदर्भ में थी। इस युद्ध की शुरुआत के बाद कई बिग-टेक कंपनियों ने मनमाने ढंग से रूस में अपनी सर्विस को आंशिक या पूर्ण रूप से बंद कर दिया है।
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