जानिए कौन होगा राज्यसभा में सदन का नेता?
केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत को राज्यसभा में सदन का नेता नियुक्त किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली इस पद पर थे।
केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत को राज्यसभा में सदन का नेता नियुक्त किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली इस पद पर थे। अरुण जेटली फिलहाल बीमार हैं और स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। थावरचंद गहलोत बीजेपी अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण के बाद पार्टी में सबसे बड़े दलित चेहरे हैं। इनको नेता सदन के तौर पर आगे कर बीजेपी ने अपनी दलित राजनीति को भी मजबूत कर लिया है। ये बीजेपी संसदीय समिति और चुनाव समिति के भी सदस्य हैं।
चार दशकों का है संसदीय अनुभव
गहलोत को चार दशकों से भी ज्यादा का संसदीय अनुभव है। वह मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य के साथ-साथ लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सदस्य भी रहे हैं। पर सवाल यह खड़ा होता है कि क्या थावरचंद गहलोत अरुण जेटली की तरह काम कर सकेंगे? क्या सरकार और बाजेपी के लिए ये जेटली की तरह संकटमोचक भी भूमिका निभा सकेंगे? क्या कांग्रेस के कपिल सिब्बल, पी. चिदंबरम और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे नेताओं को तार्किक चुनौती दे सकेंगे? क्योंकि मोदी-शाह को एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो विपक्षी नेताओं को तार्किक चुनौती दे सके। पहली सरकार में यह काम अरुण जेटली की अनुपस्थिति में रविशंकर प्रसाद किया करते थे, पर अब उनके लोकसभा में चले जाने से राज्यसभा में नेता सदन का चुनाव करना कठिन हो गया था।
अन्य नामों पर भी हुई चर्चा
बीजेपी के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि राज्यसभा में नेता सदन के लिए कई दिनों से पार्टी के भीतर माथापच्ची चल रही थी। इस पद के लिए जो नाम सबसे आगे थे उनमे केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत, मुख्तार अब्बास नकवी और बीजेपी महासचिव भूपेंद्र यादव का नाम शामिल था। इसके अलावा वरिष्ठ बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री सुषमा स्वराज को भी राज्यसभा में लाकर उन्हें यह जिम्मेदारी दी जा सकती है। लेकिन आखिरकार थावरचंद गहलोत को राज्यसभा में सदन का नेता नियुक्त किया गया।
गहलोत के नाम पर क्यों लगी मुहर?
अब सवाल यह उठता है कि आखिर राज्यसभा में नेता सदन को तौर गहलोत के ही नाम पर मोहर क्यों लगी? अगर व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखें तो इनकी पहचान सरल और संवेदनशील नेता के तौर पर रही है। इसके अलावा ये सादगी प्रिय इंसान हैं। इनके व्यवहारिक रिश्ते पक्ष और विपक्ष दोनों से सही हैं। इनकी छवि भी एक गंभीर नेता की है। राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें, तो सत्ता पक्ष की तरफ से ये राज्यसभा में सबसे वरिष्ठ नेता हैं। संगठन का लंबा अनुभव होने के साथ साथ संसदीय राजनीति का भी इनका लंबा अनुभव है। इनकी पकड़ संघ और पार्टी दोनों में अच्छी है। सबसे बड़ी बात ये कही जाती है कि ये नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों के ही काफी करीबी हैं।
तार्किक पक्ष रखने में हैं माहिर
थावरचंद गहलोत को वैसे तो प्रखर वक्ता नहीं माना ताजा है, पर तार्किक पक्ष को रखने में ये माहिर हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्यसभा में पार्टी का पक्ष ये कैसे रख पाते हैं। ये इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि ऊपरी सदन यानी राज्यसभा में बीजेपी को फिलहाल बहुमत नहीं है, लिहाजा, विपक्ष ज्यादा हमलावर हो सकता है।
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