अल्पसंख्यक घोषित करने की अधिसूचना रद्द करने की मांग के पीछे वजह है क्या?
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पेटिशन की कॉपी अटॉर्नी जनरल को देने को कहा है। साथ ही कोर्ट ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल से सुझाव मांगे, अब इस केस में चार हफ्ते बाद सुनवाई होगी। यह याचिका बीजेपी नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर की है। याचिकाकर्ता ने अल्पसंख्यक आयोग को 17 नवंबर 2017 को ज्ञापन दिया था और मांग की थी कि पांच समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित करने की 1993 की अधिसूचना रद्द की जाए। इस मामले की याचिका भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है। इसमें केंद्र की 26 साल पुरानी अधिसूचना की वैधता को चुनौती दी गई है। इस अधिसूचना में पांच समुदायों मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक घोषित किया गया है। इसके साथ ही याचिका में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 की धारा 2 (सी) को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। इसी अधिनियम के तहत 23 अक्टूबर 1993 को अधिसूचना जारी की गई थी।
इसके साथ ही अल्पसंख्यक की परिभाषा और पहचान तय करने के साथ-साथ जिन राज्यों में हिन्दुओं की संख्या बहुत कम है वहां हिन्दुओं को अल्पसंख्यक घोषित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को 3 महीने के भीतर उस ज्ञापन पर फैसला लेने को कहा था। उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कोर्ट से अल्पसंख्यक की परिभाषा और पहचान तय करने की मांग की थी। भारत के संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के तहत उन लोगों के लिए कुछ अलग से प्रावधान किया गया है जो भाषा और धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक श्रेणी में आते हैं, लेकिन 'अल्पसंख्यक' की सटीक व्याख्या और परिभाषा नहीं होने की वजह से इसका बड़े स्तर पर दुरुपयोग हो रहा है।
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