सीटी स्कैन के साइड इफेक्ट से बचाएगा सॉफ्टवेयर, IIIT भागलपुर का दावा, एक्सरे रिपोर्ट देखकर 95% सही बताएगा
भागलपुर ट्रिपल आईटी द्वारा तैयार कोविड डिडक्शन सॉफ्टवेयर सीटी स्कैन के साइड इफेक्ट से बचाएगा। साल भर पहले बनाये गये इस सॉफ्टवेयर को अब तक आईसीएमआर से अनुमति नहीं मिलने की वजह से लागू नहीं किया गया है। ऑर्टिफिशयल इंटेलीजेंस तकनीक से तैयार सॉफ्टवेयर एक्सरे रिपोर्ट को देखकर एक सेकेंड में ही बता देगा कि व्यक्ति कोरोना संक्रमित है या अन्य संक्रमण का शिकार हुआ है।
साल भर से इस तकनीक को अनुमति का इंतजार है। नतीजा संक्रमित व्यक्ति दो से तीन बार सीटी स्कैन करा रहे हैं। बीते दिन दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि एक सीटी स्कैन से 300 एक्सरे प्लेट के बराबर रेडिएशन होता है। बार-बार सीटी स्कैन करने से कैंसर तक के खतरे सामने आ सकते हैं। इसलिए सीटी स्कैन बार-बार करने से बचें। जरूर पड़ने पर ही डाक्टर की सलाह पर ही सीटी स्कैन कराया जाए।
इधर ट्रिपल आईटी के निदेशक प्रो. अरविंद चौबे ने कहा कि कोविड 19 डिडक्शन सॉफ्टवेयर 95 प्रतिशत तक सहीं रिपोर्ट देगा। इसलिए किसी भी तरह का सवाल हीं नहीं उठना चाहिए कि यह सॉफ्टवेयर कितना फायदेमंद होगा। आईसीएमआर की सलाह पर ही पूर्व में पटना एम्स और दिल्ली राममनोहर लोहिया अस्पताल के कोविड संक्रमित मरीजों की रिपोर्ट पर जांच की गई थी। रिपोर्ट 95 प्रतिशत तक सहीं पाया गया। वहीं आरटीपीसीआर की रिपोर्ट 65 प्रतिशत ही सही है। फिर भी उसे पूरे देश में लागू किया गया है।
आईसीएमआर ने बनाया प्रोटोकॉल, दोबारा होगी जांच
सूत्रों की मानें तो सॉफ्टवेयर को अनुमति देने के लिए आईसीएमआर के पास कोई नियमावली नहीं था। इस बार प्रोटोकॉल तैयार किया गया है। इसके हिसाब से दोबारा पटना व दिल्ली के अस्पतालों में कोविड संक्रमित मरीजों के ऊपर जांच करायी जाएगी, फिर अनुमति की संभावना बनेगी। जानकारी हो कि बीते साल कोरोना वेब के समय अप्रैल माह में इस सॉफ्टवेयर को ट्रिपल आईटी के निदेशक प्रो. अरविंद चौबे की देखरेख में सहायक प्राध्यापक डॉ.संदीप राज ने तैयार किया था। अक्टूबर में एम्स में जांच भी हुई थी मगर अब तक अनुमति नहीं मिल पायी है।
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