पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में राजनीतिक संकट, तीन साल पुरानी बीजेपी गठबंधन सरकार में पड़ी दरार,उपमुख्यमंत्री जयकुमार सिंह से वापस लिए गए सभी महत्वपूर्ण मंत्रालय
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में एक बार फिर से सियासी संकट की घड़ी आ गई है। राज्य की तीन साल पुरानी बीजेपी गठबंधन सरकार में दरार पड़ गई है। बीजेपी नेता और मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने नेशनल पीपुल्स पार्टी यानी एनपीपी के नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री जयकुमार सिंह से महत्वपूर्ण मंत्रालय छीन लिए हैं।
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में एक बार फिर से सियासी संकट की घड़ी आ गई है। राज्य की तीन साल पुरानी बीजेपी गठबंधन सरकार में दरार पड़ गई है। बीजेपी नेता और मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने नेशनल पीपुल्स पार्टी यानी एनपीपी के नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री जयकुमार सिंह से महत्वपूर्ण मंत्रालय छीन लिए हैं। उपमुख्यमंत्री के पास अब सिर्फ नागरिक उड्डयन और काराधान मंत्रालय बचा है।
युमनाम जयकुमार सिंह से जो जो विभाग वापस लिए गए हैं,उनमें आवास एवं शहरी विकास, वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और अर्थ एवं सांख्यिकी मंत्रालय शामिल है। राज्य में यह विवाद कोरोना लॉकडाउन के दौरान जरूरतमंद लोगों को चावल देने के सवाल पर मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के बीच तीखी बयानबाजी के बाद शुरू हुआ।
दरअसल, राज्य में पहली बार सरकार बना और चला रही बीजेपी के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को लेकर एक वीडियो वायरल हुआ,जिसमें उपमुख्यमंत्री युमनाम जयकुमार सिंह उनके बारे में अभद्र बात कहते हुए सुने गए। मसला चावल का है जो कोरोना लॉकडाउन में जरूरतमंदों के बीच बांटा जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा था कि हरेक आदमी को चार किलो चावल दिया जाए। लेकिन उपमुख्यमंत्री की शिकायत है कि उनके विधानसभा क्षेत्र में जितना चावल भेजा गया है, वो काफी नहीं है और लोगों को चार-चार किलो चावल नहीं दिया जा सकता। इसी दरम्यान उन्होंने किसी बयान पर कहा कि ऐसा कहने वाले लोग पागल हैं जिसे बीजेपी ने मुख्यमंत्री पर हमला मानते हुए उनसे इस्तीफे की मांग कर दी।
फिलहाल उप मुख्यमंत्री का इस्तीफा तो नहीं हुआ है। लेकिन मुख्यमंत्री ने उनके सारे बड़े विभाग वापस ले लिए हैं।इन सबके बीच उपमुख्यमंत्री जयकुमार सिंह ने पत्रकारों से बातचीत में कहा है कि कांग्रेस तकनीकी रूप से 27 विधायकों की पार्टी है और अगर उनके 4 विधायक कांग्रेस की तरफ चले जाते हैं तो बीरेन सिंह सरकार अल्पमत में आ जाएगी,क्योंकि बहुमत के लिए 31 विधायक चाहिए।
ज्ञात हो कि मणिपुर में 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने गैर कांग्रेसी दलों को साथ लेकर पहली बार राज्य में सरकार बनाई थी। 60 विधायकों वाली मणिपुर विधानसभा में 28 विधायक जीतकर पहुंची कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। लेकिन सरकार 32 विधायकों के समर्थन से 21 सीट जीतकर बीजेपी ने बनाई।
बीजेपी के साथ युमनाम जयकुमार सिंह की एनपीपी के 4 विधायक, नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के 4 विधायक, एलजेपी और तृणमूल कांग्रेस के 1-1 विधायक के अलावा 1 निर्दलीय और कांग्रेस से बागी होकर 1 विधायक आ गए थे। कांग्रेस के इस बागी विधायक की सदस्यता दलबदल कानून के तहत सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पिछले महीने ही खत्म हुई है।
सरकार गठन के बाद कांग्रेस के बचे 27 में 8 और विधायक कांग्रेस बीजेपी में शामिल हो गए लेकिन तकनीकी तौर पर कांग्रेस से इस्तीफा नहीं देने की वजह से कांग्रेस में ही गिने जाते हैं। ये विधायक सदन में बैठ भी विपक्ष के साथ रहे हैं लेकिन हैं सरकार के साथ। खुद मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह भी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस से बीजेपी में आए थे।
मौजूदा हालात में बीजेपी सरकार के पास 40 विधायकों का समर्थन है,जिसमें जयकुमार सिंह की पार्टी के 4 विधायक भी हैं। इसलिए सरसरी तौर पर एनपीपी के सरकार से बाहर आने और समर्थन वापस लेने से भी बीरेन सिंह सरकार को कोई खतरा नहीं दिखता है। लेकिन पूर्व आईपीएस अधिकारी युमनाम जयकुमार सिंह के तेवर विभाग छिनने के बाद से तीखे हैं जो राजनीति में आने से पहले राज्य के डीजीपी रह चुके हैं और पूर्व की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री ओकरम इबोबी सिंह के करीबी भी हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने जिस कांग्रेस विधायक टी श्यामकुमार की सदस्यता खत्म की है वो बीरेन सिंह सरकार में मंत्री थे और बिना कांग्रेस से इस्तीफा दिए चुनाव के तुरंत बाद बीजेपी को समर्थन देकर मंत्री बन गए थे। उनके बाद 8 और कांग्रेस विधायक भी बीजेपी में शामिल हुए हैं। लेकिन बताया जाता है कि विधानसभा या कांग्रेस से इस्तीफा नहीं दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने टी श्यामकुमार की सदस्यता खत्म करने की अपील पर स्पीकर को फैसला लेने के लिए बार-बार समय दिया लेकिन उन्होंने जब ऐसा नहीं किया तो कोर्ट ने 18 मार्च को सीधे फैसला कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा था कि अप्रैल, 2017 से विधायकों को अयोग्य घोषित करने के 13 आवेदन स्पीकर के पास दाखिल हुए लेकिन किसी पर फैसला नहीं हुआ। तीन साल बाद कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल करते हुए फैसला सुनाया। जाहिर है कि बीरेन सिंह सरकार का भविष्य स्पीकर की टेबल पर विधायकों को अयोग्य घोषित करने वाले बाकी लंबित अपीलों पर निर्भर करेगा लेकिन फिलहाल के लिए तो सरकार सुरक्षित है।
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