बिहार उपचुनाव में एनडीए को झटका, महाठबंधन ने मारी बाजी, ओवैसी की इन्ट्र्री
बिहार में एक लोकसभा और पांच विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में सत्ता्धारी एनडीए के घटक दल जनता दल यूनाइटेड को बड़ा झटका लगा है। जबकि महागठबंधन के नेता के रूप में तेजस्वी यादव का कद बढ़ गया है। साथ ही बिहार की सियासत में असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री हुई है।
बिहार में एक लोकसभा और पांच विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में सत्ता्धारी एनडीए के घटक दल जनता दल यूनाइटेड को बड़ा झटका लगा है। जबकि महागठबंधन के नेता के रूप में तेजस्वी यादव का कद बढ़ गया है। साथ ही बिहार की सियासत में असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री हुई है। इस उपचुनाव के नतीजे 2020 के विधानसभा चुनाव की दशा और दिशा भी तय कर सकते हैं। इस उपचुनाव का असर बिहार में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकते हैं।
जेडीयू अपनी सिटिंग सीटें भी नहीं बचा सका। जेडीयू सिमरी बख्तियारपुर और बेलहर की सिटिंग सीटें आरजेडी से हार गया। दरौंदा की सीट पर जेडीयू को एनडीए की आंतरिक लड़ाई का खामियाजा भुगतना पड़ा। वहां बीजेपी के बागी प्रत्याशी कर्णजीत सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत गए। दरौंदा में जेडीयू की हार के बाद अब बीजेपी का एक धड़ा मुख्यामंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ फिर मुखर हो गया है। बीजेपी एमएलसी टुन्नाबजी पांडेय ने नीतीश कुमार को हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीपफा कर मांग कर दी है।
इस बीच किशनगंज विधानसभा सीट पर कांग्रेस की हार के भी गहरे अर्थ हैं। कांग्रेस परंपरागत सीट रहे किशनगंज में एआइएमआइएम की जीत के साथ बिहार की सियासत में असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री हुई है। वहां एआइएमआइएम प्रत्यााशी कमरुल होदा ने बीजेपी की स्वीीटी सिंह को हराया है।
बीजेपी की स्वीटी सिंह भी किशनगंज में चुनाव हार गई। समस्तीपुर लोकसभा सीट पर एलजेपी प्रत्याशी ने जीत दर्ज कर एनडीए का खाता खोला। समस्तीपुर लोकसभा सीट पर लोक जनशक्ति पार्टी के रामचंद्र पासवान के निधन के बाद उनके बेटे प्रिंस पासवान को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया था।
दरअसल, लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की हार के बाद से तेजस्वी यादव के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाए जाते रहे थे। हम के अधियक्ष जीतनराम मांझी ने तो उनके नेतृत्वव और अनुभव पर अनुभव पर सीधा सवाल खड़ा किया। कांग्रेस ने भी उन्हें अगले विधानसभा चुनाव में विपक्ष का नेता और मुख्यमंत्री चेहरा मानने से इनकार कर दिया। खुद तेजस्वी भी मुख्यधारा की राजनीति से लंबे समय तक कटे रहे,जिसकी वजह से विपक्ष के नेता होने पर सवाल खड़े किए जाते रहे थे। ऐसे हालात में इस उपचुनाव में तेजस्वीा को अपनी पहचान बनाने की चुनौती थी।
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