IIT-IISC जैसे देश के टॉप संस्थानों में अनुसूचित जाति के कर्मचारियों की मौजूदगी कम, रिपोर्ट में खुलासा

IIT-IISC जैसे देश के टॉप संस्थानों में अनुसूचित जाति के कर्मचारियों की मौजूदगी कम, रिपोर्ट में खुलासा

देश के शीर्ष वैज्ञानिक संस्थानों में क्या अनुसूचित जाति विरोधी मानसिकता हावी है या फिर वहां शीर्ष पदों पर इस समुदाय के लोगों की कम मौजूदगी महज एक इत्तेफाक है? असली कारण भले ही जो भी हो, लेकिन ‘नेचर जर्नल’ में प्रकाशित एक शोध में दावा किया गया है कि भारत के शीर्ष वैज्ञानिक संस्थानों में नियुक्ति में अनुसूचित जाति के लोगों के साथ भेदभाव होता है। इसलिए 15 फीसदी आरक्षण के बावजूद अनुसूचित जाति के कर्मचारी आज भी शीर्ष पदों पर कम पहुंच सके हैं। शोध के अनुसार शीर्ष वैज्ञानिक संस्थान, जिनमें आईआईटी दिल्ली, बॉम्बे, चेन्नई, कानपुर एवं खड़गपुर के अलावा जेएनयू और आईआईएससी बेंगलुरु शामिल हैं, वहां शीर्ष पदों तथा शोधकर्ताओं के रूप में अनुसूचित जाति के लोगों की मौजूदगी सिर्फ 8.9 फीसदी है। जबकि, संविधान के मुताबिक 15 फीसदी पद उनके लिए आरक्षित हैं। इन संस्थानों में 66.34 फीसदी पदों पर सामान्य वर्ग एवं धार्मिक अल्पसंख्यक के लोग हैं। वहीं, 24.76 फीसदी पदों पर अन्य उपेक्षित समूह के कर्मचारी हैं।

रिपोर्ट पर गौर करें तो पांच शीर्ष आईआईटी में अनुसूचित जाति के लोगों का प्रतिनिधित्व 6 से 14 फीसदी के बीच है। आईआईटी दिल्ली में यह 6 और खड़गपुर में 14 फीसदी है। वहीं, इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस (आईआईएससी) बेंगलुरु में यह 12 फीसदी दर्ज किया गया है। लेकिन 2020 में आईआईटी दिल्ली के 218 और आईआईटी बाम्बे के 324 प्रोफेसरों में से कोई भी अनुसूचित जाति का नहीं है। अलबत्ता मुस्लिम एवं अन्य अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिनिधित्व है। आईआईआएससी में अनुसूचित जाति के दो प्रोफेसर हैं, जबकि 205 सामान्य वर्ग के हैं। जेएनयू के सात साइंस स्कूलों में से पांच में अनुसूचित जाति का कोई प्रोफेसर नहीं है।

‘नेचर जर्नल’ की रिपोर्ट में अनुसूचित जाति के कई वैज्ञानिकों के इंटरव्यू भी दिए गए हैं, जो नियुक्ति में भेदभाव के आरोप लगाते हैं। हालांकि, जेनएनयू के एक सामान्वय वर्ग के प्रोफेसर उमेश कुलश्रेष्ठ का साक्षात्कार भी दिया गया है, जिसमें उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति के योग्य उम्मीदवारों की उपलब्धता भी एक चुनौती है। उन्होंने यह भी कहा कि कई बार उम्मीदवार होते हैं, लेकिन वे इंटरव्यू में प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाते हैं।

रिपोर्ट मे हैदराबाद विश्वविद्यालय के पीएचडी छात्र रोहित वेमुला के प्रकरण, 2007 में दिल्ली एम्स में अनुसूचित जाति एवं आदिवासी छात्रों के साथ हुए भेदभाव, 2019 में आईआईएससी बेंगलुरु में अनुसूचित जाति के एक छात्र को साफ नहीं होने की वजह से लैब में नहीं घुसने देने जैसी घटनाओं का जिक्र किया गया है। एमआईटी के विज्ञान इतिहास लेखक आभा सूर की टिप्पणी भी शामिल की गई है, जिसमें कहा गया है कि भारत के शीर्ष वैज्ञानिक संस्थानों में ब्राह्मणवादी मानसिकता हावी है। इस रिपोर्ट पर देश के शीर्ष वैज्ञानिकों की टिप्पणी लेने की कोशिश की गई, लेकिन कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हुई।