सरकार की पाक-दुविधा
भारत और पाकिस्तान, दोनों को चाहिए कि वे अपना दिमाग ठंडा करें और अपने आपसी संबंधों को सहज बनाएं। इस समय पाकिस्तान गहरी मुश्किलों में घिरा हुआ है। इसके बावजूद वह भारत के आगे घुटने नहीं टेकेगा। भारत भी बड़प्पन दिखाए और उसकी मजबूरी समझे।
भारत सरकार की यह दुविधा मेरी समझ के बाहर है। एक तरफ उसने पाकिस्तान को सबक सिखाने की ठान रखी है और दूसरी तरफ उसकी छोटी-सी कृपा पाने के लिए ववह गिड़गिड़ा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 13-14 जून को शांघाई सहयोग संगठन की बैठक में भाग लेने जाना है। वे पाकिस्तान की हवाई सीमा में से उड़कर किरगिजिस्तान की राजधानी बिश्केक जाएंगे तो यह सफर चार घंटे में तय होगा और पाकिस्तान ने इजाजत नहीं दी तो उनका जहाज चक्कर लगाकर वहां आठ घंटे में पहुंचेगा। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी 21 मई को बिश्केक जाते हुए पाकिस्तान की इजाजत मांगी थी और पाकिस्तान ने उन पर मेहरबानी करके इजाजत दे दी थी। इमरान खान अब मोदी पर भी यह मेहरबानी कर देंगे, ऐसी आशा मुझे हैं।
मैं पूछता हूं कि इस मेहरबानी की आपको जरुरत क्या है ? आपके चार या आठ घंटे क्या इतने महत्वपूर्ण हैं कि आप अपना आत्म-सम्मान भी खो दें ? अकेले एयर इंडिया ने अप्रैल-मई महिने में पाकिस्तान की इस रास्ताबंदी के कारण 300 करोड़ रु. का नुकसान उठाया। पेट्रोल, रखरखाव व अन्य खर्चों में बढ़ोतरी हो गई। यह तो सिर्फ एक हवाई कंपनी का एक माह का घाटा है। यदि सभी कंपनियों का घाटा जोड़ा जाए तो यह हजारों करोड़ बैठेगा।
इससे भी ज्यादा चिंता की बात हमारे किसानों की है। पाकिस्तान को बेचा जानेवाला खेती का माल हमारे बाजारों में सड़ रहा है। पाकिस्तान को हमारा 92 प्रतिशत निर्यात घट गया है। महाराष्ट्र में अंगूर 40 रु. किलो से घटकर 18 रु. किलो में बिक रहा है। 27 फरवरी को बालाकोट हुआ। हुआ सो हो गया। दोनों देशों का नाम मात्र का नुकसान हुआ। अब उसके बहाने हवाई मार्ग और व्यापार बंद करके ज्यादा नुकसान करने पर दोनों देशों के नेता क्यों आमादा हैं ?
भारत और पाकिस्तान, दोनों को चाहिए कि वे अपना दिमाग ठंडा करें और अपने आपसी संबंधों को सहज बनाएं। इस समय पाकिस्तान गहरी मुश्किलों में घिरा हुआ है। इसके बावजूद वह भारत के आगे घुटने नहीं टेकेगा। भारत भी बड़प्पन दिखाए और उसकी मजबूरी समझे। उसकी इस उदारता का असर वहां की फौज पर पड़े या न पड़े, पाकिस्तान के लोगों और नेताओं पर उसका असर पड़े बिना नहीं रहेगा।
(लेखक के ये अपने विचार हैं)
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