केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ श्रमिक संगठनों का प्रदर्शन,कॉमर्शियल माइनिंग और निजीकरण का किया विरोघ,प्रधानमंत्री के नाम सीसीएल प्रबंधन को सौंपा ज्ञापन
देश के अन्य राज्यों और शहरों की तरह ही बोकारो जिले के फुसरो में भी श्रमिक संगठनों ने कोल इंडिया लिमिडेट की अनुषंगी कंपनी सेंट्रल कोल फिल्ड्स के सभी कार्यालयों पर संयुक्त रूप से प्रदर्शन किया और प्रबंधन को मांग पत्र सौंपा। श्रमिक नेताओं ने प्रधानमंत्री के नाम ढोरी और बीएंडके प्रबंधन के एसओपी ललन कुमार और प्रतुल कुमार को ज्ञापन भी सौंपा गया। श्रमिक नेताओं ने कहा कि केंद्र सरकार सिर्फ प्राइवेट मालिकों और पूंजीवाद को लाभ पहुंचाने के लिए कॉमर्शियल माइनिंग जैसे नियमों को लागू करने जा रही है,जिसे किसी कीमत पर नहीं होने दिया जाएगा।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार गिरती अर्थव्यवस्था, घटती विकास दर, बढ़ती बेरोजगारी और मंहगाई को लेकर लगातार बैकफुट पर है। इसी बीच वित्त मंत्री की घोषणाओं से नाराज तमाम मजदूर संगठनों ने अब केंद्र सरकार की मुश्किलें और बढ़ा दी है। मजदूर विरोधी होने का आरोप लगाते हुए श्रमिक संगठन सड़क पर उतर आए हैं। शुक्रवार को सभी श्रमिक संगठनों ने मजदूर विरोधी नीतियों और कोल सेकेटर में कॉमशिर्यल माइंनिग का विरोघ करते हुए संयुक्त रूप से देशव्यापी विरोध दिवस मनाया।
देश के अन्य राज्यों की तरह ही बोकारो जिले के फुसरो में भी श्रमिक संगठनों ने कोल इंडिया लिमिडेट की अनुषंगी कंपनी सेंट्रल कोल फिल्ड्स के सभी कार्यालयों पर संयुक्त रूप से प्रदर्शन किया और प्रबंधन को मांग पत्र सौंपा। संयुक्त श्रमिक संगठन अखिल भारतीय ट्रेड यूनीयन कांग्रेस (एटक), इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन काग्रेस यानी इंटक, सीटू, जेसीएमयू, आरसीएमएस, यूसीडब्लूयू, आरकेएमयू, सीएमयू, एचएमकेपी, जेसीकेयू, जेसीएमयू और एजेकेएसएस के प्रतिनिधियों ने पहले से घोषित कार्यक्रम के तहत सीसीएल के ढोरी और बीएंडके जीएम ऑफिस के सामने प्रदर्शन किया। इस दौरान प्रधानमंत्री के नाम ढोरी और बीएंडके प्रबंधन के एसओपी ललन कुमार और प्रतुल कुमार को ज्ञापन भी सौंपा गया।
श्रमिक नेताओं ने कहा कि केंद्र सरकार कोयला मजदूरों पर जुल्म करने को आतुर है,जिसे किसी कीमत पर नहीं होने दिया जाएगा। केंद्र सरकार मजदूरों के धैर्य की परीक्षा नहीं ले, मजदूर आंदोलन करना बखूबी जानता है। मजदूर अपने साथ होने वाले अन्याय को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार सिर्फ प्राइवेट मालिकों और पूंजीवाद को लाभ पहुंचाने के लिए कॉमर्शियल माइनिंग जैसे नियमों को लागू करने जा रही है।
श्रमिक संगठन के नेताओं ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान जब श्रमिकों के हित में फैसले लिए जाने चाहिए तब श्रम कानूनों को और भी कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है। श्रमिकों से जुड़ी जो भी समस्याएं आ रही हैं उसके पीछे श्रमिक कानूनों का उल्लंघन ही है। 8 से 12 घंटे का कार्य दिवस कर दिया गया। चार उपक्रम रखकर बाकी को बेचने की बात है। 31 फीसद शेयर कोल इंडिया का पहले ही बेच चुका है।
श्रमिक नेताओं ने कहा कि वर्तमान में कोल इंडिया के रिजर्व फंड में भारत सरकार ने 63 हजार करोड़ रूपये में से ज्यादा रकम पहले ही ले लिया है। कोल इंडिया की आर्थिक स्थिति को सरकार ने एक साजिश के तहत कमजोर कर दिया है। जिसकी वजह से आज वेतन भुगतान की भी समस्या उत्पन्न हो रहीं है। उन्होंने कहा कि मंदी की बात कहकर कॉरपोरेट जगत को फायदा पहुंचाना गरीबों के रोटी-रोजी से खिलवाड़ करना है। कॉमर्शियल माइनिंग और सरकारी एकाधिकार को समाप्त करने की केंद्र सरकार की घोषणा वापस लेनी होगी। अगर सरकार नहीं मानती तो यूनियन बड़े पैमाने पर आंदोलन करेगी।
श्रमिक नेताओं ने कहा कि श्रम कानूनों के समाप्त होने से देश का औद्योगिक विकास अवरूद्ध हो जाएगा। बीजेपी शासित राज्यों में आठ घंटे की जगह 12 घंटे काम करने के फरमान को वापस लेना होगा। उन्होंने कहा कि राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार ने प्रदेश में श्रम विधियों को समाप्त कर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि राजस्थान में औद्योगिक विकास अवरुद्ध हो गया है।
प्रधानमंत्री के नाम सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया कि प्रवासी श्रमिकों की घर वापसी के बारे में रोजोना मिल रही रिपोर्ट उनकी हताशा को दर्शाती है। लाखों मज़दूर सड़कों और जंगलों से होकर कई सौ मील तक सड़कों पर, रेलवे की पटरियों पर चलते रहे हैं। भूख, थकावट और दुर्घटनाओं के कारण रास्ते में कई जान गंवा रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा पीड़ित महिलाएं और बच्चे हुए हैं। इस विशाल मानवीय समस्या से निपटने में केंद्र और राज्यों के बीच संवेदनशीलता और समन्वय की कमी है। यह स्थिति आपके द्वारा संसद, राज्य सरकारों, राजनीतिक दलों और उन लोगों को विश्वास में लिए बिना अचानक निर्णय लेने की वजह से उत्पन्न हुई है, जो कोरोना वायरस से लड़ने में महत्वपूर्ण थे।
श्रमिक संगठनों ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की बहुत चर्चा है, जिसमें आम लोगों के लिए वास्तविक धनराशि सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1 फीसदी है, बाकी सभी केवल वित्त मंत्री द्वारा घोषित विभिन्न क्षेत्रों द्वारा विभिन्न उधारों के लिए गारंटी है। लेकिन हमारी तात्कालिक चिंता यह है कि जिन लोगों के रोजगार को लॉकडाउन के चलते छीन लिया गया है, उनके भोजन और अन्य जरुरी आवश्यकताओं के लिए इसमें कुछ भी ठोस नहीं है।
वित्त मंत्री द्वारा पांच किश्तों में की गई की घोषणा, शहरी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था दोनों में, कई करोड़ कामकाजी आबादी को कोई राहत देने के बजाय, वास्तविक रूप से विदेशी और घरेलू बड़े कॉर्पोरेट और व्यावसायिक घरानों के स्थायी सशक्तिकरण की योजना है। ये घोषणाएं, गरिमा पूर्ण मानवीय अस्तित्व और काम करने वाले लोगों को बुनियादी मानव अधिकारों से वंचित करती हैं। सरकार द्वारा योजनागत और स्वच्छता श्रमिकों, स्वास्थ्य क्षेत्र, कोरोना के खिलाफ जंग में फ्रंट लाइन श्रमिकों जैसे सबसे निचले पायदान पर कार्यरत लोगों की निरंतर उपेक्षा की जा रही है।
प्रदर्शन में मजदूर नेता गिरजा शंकर पांडेय, जवाहर लाल यादव, फुसरो नगर परिषद के उपाध्यक्ष छेदी नोनिया, शिवनंदन चौहान, उत्तम सिंह, परवेज अखतर, गजेंद्र प्रसाद सिंह, सुशील कुमार सिंह, संतोष ओझा, पीके नंदी, वीरेंद्र कुमार सिंह, सुबोध सिंह पवार, श्यामल सरकार, आर उनेश, गोवर्धन रविदास, महेंद्र चौधरी, बबलु रवानी, और संतोष महतो समेत बड़ी संख्या में मजदूर यूनियन के प्रतिनिध मौजूद थे।
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