राजनीतिक रंगमंच के बड़े नायक लालू प्रसाद यादव को उनके चाहने वालों ने दी जन्मदिन की शुभकामनाएं, सभी ने की उत्तम स्वास्थ्य की कामना
लालू जी को रोटी से ज्यादा सम्मान प्यारी थी। इसलिए बिहार जैसे सामंती समाज के बीच उन्होंने सामाजिक गैर बराबरी के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंका। आज उसी का परिणाम है कि पिछड़े दलित समाज के लोग बराबरी का हक पाने लगे हैं,शिक्षा ग्रहण करने लगे हैं,सत्ता में उनकी भागीदारी बढ़ी है। लालू जी की ही देन है कि पिछले तीस सालों से बिहार की सत्ता दलितों और पिछड़ों के नेतृत्व में है। इस क्रम में सामन्ती व्यवस्था पर जो चोट उन्होंने की उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। पर जो लोग ये समझ रहे हैं कि उन्हें यातना देकर खत्म कर देंगे, वो भ्रम में हैं। लालू और उनका योगदान और मजबूती से आगे आएगा।
राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा दौर में बिहार की राजनीति की धूरी लालू प्रसाद यादव का जन्मदिन 11 जून को हैं। लालू यादव भले ही सक्रिय राजनीति में नहीं हैं लेकिन बिहार में उनके बिना राजनीति अधूरी है। इमरजेंसी के बाद सबसे बड़े नामों में से एक लालू यादव ही आते है।
जनता के लिए सड़कों पर लड़ने वाले राजनेताओं में से एक लालू प्रसाद यादव हैं। पिछड़ी जातियों का उभार भी इनके मुख्यमंत्रित्व काल में तेजी से हुआ। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के स्वस्थ एवं मंगलमय जीवन की कामना के साथ जन्मदिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं।
सामाजिक न्याय के आंदोलन से नेता बने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान जैसे नेताओं ने तो राजनीतिक शिष्टाचार भी नहीं निभाया। लेकिन फेसबुक पर लालू प्रसाद यादव के समर्थक लिखते हैं कि सामाजिक समरसता के मसीहा लालू जी अगर बाहर होते तो पिछले कुछ दिनों में बिहार के मजदूरों के साथ जो जानवरों से भी बदतर बर्ताव हुआ वो क्या होने देते? उत्तर होगा बिल्कुल नहीं,क्योंकि गरीबों का ये मसीहा अपनी जोरदार आवाज से उनके लिए लड़ने को उठ खड़ा होता।
लालू जी को रोटी से ज्यादा सम्मान प्यारी थी। इसलिए बिहार जैसे सामंती समाज के बीच उन्होंने सामाजिक गैर बराबरी के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंका। आज उसी का परिणाम है कि पिछड़े दलित समाज के लोग बराबरी का हक पाने लगे हैं,शिक्षा ग्रहण करने लगे हैं,सत्ता में उनकी भागीदारी बढ़ी है।
लालू जी की ही देन है कि पिछले तीस सालों से बिहार की सत्ता दलितों और पिछड़ों के नेतृत्व में है। इस क्रम में सामन्ती व्यवस्था पर जो चोट उन्होंने की उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। पर जो लोग ये समझ रहे हैं कि उन्हें यातना देकर खत्म कर देंगे, वो भ्रम में हैं। लालू और उनका योगदान और मजबूती से आगे आएगा।
बिहार के गोपालगंज में एक यादव परिवार में जन्मे लालू प्रसाद यादव ने राजनीति की शुरूआत जयप्रकाश नारायण के जेपी आन्दोलन से की, जब वे एक छात्र नेता थे और उस समय के राजनेता सत्येन्द्र नारायण सिन्हा के काफी करीबी रहे थे। 1977 में आपातकाल के पश्चात हुए लोकसभा चुनाव में लालू यादव जीते और पहली बार 29 साल की उम्र में लोकसभा पहुंचे। 1980 से 1989 तक वे दो बार बिहार विधानसभा के सदस्य रहे और विपक्ष के नेता पद पर भी रहे।
1990 तक लालू प्रसाद ने राज्य की 11.7 फीसदी आबादी के साथ यादव के सबसे बड़े जातियों का प्रतिनिधित्व किया। एक तरफ उन्होंने खुद को निम्न जाति के नेता के रूप में स्थापित किया करता है, तो दूसरी तरफ उन्होंने मुसलमानों को भी खुद से जोड़ने का काम किया।
बिहार में मुसलमान परंपरागत रूप से कांग्रेस (आई) के वोट बैंक के रूप में जाने जाते थे, लेकिन 1989 के भागलपुर हिंसा के बाद मुसलमानों ने लालू प्रसाद यादव के प्रति अपनी वफादारी साबित की। 10 वर्षों की अवधि में मुसलमान-यादव यानी एमवाई का समीकरण बिहार राज्य की राजनीति में एक ताकतवर बल बन गया, जो कि मुस्लिम और यादव मतदाताओं में लालू यादव की लोकप्रियता के लिए जाना जाता है।
1990 में लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने और 1995 में भी उन्होंने भारी बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की। 23 सितंबर 1990 को लालू प्रसाद यादव ने राम रथ यात्रा के दौरान समस्तीपुर में न सिर्फ रथ को रोक दिया, बल्कि भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया, और खुद को एक धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में प्रस्तुत किया।
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