साधकों को शत्रुभय, अग्निभय, भूत-प्रेत बाधा एवं अकाल मृत्यु से मुक्ति प्रदान करती हैं माँ कालरात्रि

माँ कालरात्रि की अनुकंपा से साधकों को ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं। शत्रुओं का नाश करने वाली माँ कालरात्रि अपने भक्तों को हर परिस्थिति में विजय दिलाती है। माँ कालरात्रि की पूजा-अर्चना एवं साधना द्वारा शत्रुभय, अकाल मृत्यु, भूत-प्रेत बाधा, व्यापार, अग्निभय आदि से छुटकारा प्राप्त होता है। ये सभी व्याधियां माँ कालरात्रि के स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं।

साधकों को शत्रुभय, अग्निभय, भूत-प्रेत बाधा एवं अकाल मृत्यु से मुक्ति प्रदान करती हैं माँ कालरात्रि
Pic of Maa Kalratri
साधकों को शत्रुभय, अग्निभय, भूत-प्रेत बाधा एवं अकाल मृत्यु से मुक्ति प्रदान करती हैं माँ कालरात्रि
साधकों को शत्रुभय, अग्निभय, भूत-प्रेत बाधा एवं अकाल मृत्यु से मुक्ति प्रदान करती हैं माँ कालरात्रि
साधकों को शत्रुभय, अग्निभय, भूत-प्रेत बाधा एवं अकाल मृत्यु से मुक्ति प्रदान करती हैं माँ कालरात्रि
साधकों को शत्रुभय, अग्निभय, भूत-प्रेत बाधा एवं अकाल मृत्यु से मुक्ति प्रदान करती हैं माँ कालरात्रि
साधकों को शत्रुभय, अग्निभय, भूत-प्रेत बाधा एवं अकाल मृत्यु से मुक्ति प्रदान करती हैं माँ कालरात्रि
साधकों को शत्रुभय, अग्निभय, भूत-प्रेत बाधा एवं अकाल मृत्यु से मुक्ति प्रदान करती हैं माँ कालरात्रि

महाविनाशक गुणों से दुष्टों एवं शत्रुओं का संहार करने वाली सातवीं दुर्गा का नाम कालरात्रि है। विनाशिका होने के कारण ही इसका नाम कालरात्रि पड़ा। आकृति और सांसारिक स्वरूप में माँ कालरात्रि कालिका का अवतार हैं। माँ कालरात्रि चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं। माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है। इनका वर्ण अंधकार की भांति काला है। केश बिखरे हुए हैं। कंठ में विद्युत की चमक वाली माला है। माँ कालरात्रि के तीन नेत्र ब्रह्माण्ड की तरह विशाल एवं गोल हैं,जिनमें से बिजली की भांति किरणें निकलती रहती हैं। इनकी नासिका से श्वास तथा नि:श्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालएं निकलती रहती हैं।

माँ कालरात्रि वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं। युद्ध स्थल में एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकड़कर दूसरे हाथ में खड़ग लेकर उनका नाश करने वाली कालरात्रि अपने विकट रूप में नजर आती है। इनकी सवारी गधर्व यानी गधा है, जो समस्त जीव-जंतुओं में सबसे अधिक परिश्रमी और निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को लेकर इस संसार में विचरण कर रहा है।

दुर्गा सप्तशती के अनुसार जब देवी ने इस सृष्टि का निर्माण शुरू किया और ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का प्रकटीकरण हुआ, उससे पहले देवी ने अपने स्वरूप से तीन महादेवियों को उत्पन्न किया। सर्वेश्वरी महालक्ष्मी ने ब्रह्माण्ड को अंधकारमय और तामसी गुणों से भरा हुआ देखकर सबसे पहले तमसी रूप में जिस देवी को उत्पन्न किया वह देवी ही कालरात्रि हैं। देवी कालरात्रि ही अपने गुण द्वारा महामाया, महामारी, महाकाली, क्षुधा, तृषा, निद्रा, तृष्णा, एकवीरा एवं दुरत्यया कहलाती हैं। माँ का यह भय उत्पन्न करने वाला स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिए है।

माँ कालरात्रि की महिमा

माँ कालरात्रि का स्वरूप काला और भयंकर है। परंतु यह ऋद्धि और सिद्धि प्रदान करने वाली हैं। कालरात्रि का स्वरूप देखने में भयानक होते हुए भी सदैव शुभ फल देने वाला होता हैं। इसलिए माँ कालरात्रि को शुभंकरी के नाम से भी जाना जाता हैं। माँ कालरात्रि की भक्ति से हमारे मन का हर प्रकार का भय नष्ट होता है। साधक को इनकी साधना से जीवन की हर समस्या को पलभर में हल करने की शक्ति प्राप्त होती है। माँ कालरात्रि की अनुकंपा से साधकों को ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं। शत्रुओं का नाश करने वाली माँ कालरात्रि अपने भक्तों को हर परिस्थिति में विजय दिलाती है। माँ कालरात्रि की पूजा-अर्चना एवं साधना द्वारा शत्रुभय, अकाल मृत्यु, भूत-प्रेत बाधा, व्यापार, अग्निभय आदि से छुटकारा प्राप्त होता है। ये सभी व्याधियां माँ कालरात्रि के स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं।

माँ कालरात्रि के शस्त्र

देवी दुर्गा का सातवें स्वरूप कालरात्रि की चार भुजाएं हैं। दायीं ओर की उपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान दे रही हैं, जबकि नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं। बायीं भुजा में माँ कालरात्रि ने क्रमश: तलवार और खड्ग धारण किया है। माँ कालरात्रि का अभय मुद्रा  जहां सुरक्षा, शांति, परोपकार  और भय को दूर करने का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं वरद मुद्रा  चढ़ावा, सत्कार, दान, मदद, दया और ईमानदारी का प्रतीक है। यदि बात तलवार एवं खड़ग की करें, तो ये दोनों शक्ति, सुरक्षा एवं लोकरक्षा का प्रतीक है। माँ कालरात्रि के हाथ में सुशोभित तलवार की तेज धार और चमक ज्ञान का भी प्रतीक है। यह ज्ञान सभी संदेहों से मुक्त है। इसकी चमक और आभा यह बताती है कि ज्ञान के मार्ग पर कोई संदेह नहीं होता है।

माँ कालरात्रि की पूजा

नवरात्र के सातवें दिन आदि शक्ति माँ कालरात्रि की पूजा-अर्चना का विधान है। दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व बताया गया है। पूजा विधान में शास्त्रों में जैसा वर्णित हैं, उसके अनुसार पहले कलश की पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए। माँ कालरात्रि की पूजा से पहले उनका इस मंत्र के जाप के साथ ध्यान करना चाहिए।

"देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्तया, निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां, भक्त नता: स्म विदाधातु शुभानि सा न''

माँ कालरात्रि की उपासना के पश्चात भगवान शिव और परमपिता ब्रह्मा जी की पूजा भी अवश्य करनी चाहिए। ऐसा करने से संपूर्ण फल की प्राप्ती होती है। इस दिन माँ को गुड़ का भोग लगाना और उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करना अति-उत्तम होता है। तदोपरांत माँ कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए।

माँ कालरात्रि की साधना

नवरात्र में सप्तमी की पूजा सुबह में अन्य दिनों की तरह ही होती है। परंतु रात्रि में विशेष विधान के साथ माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है। क्योंकि दुर्गा पूजा का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले साधकों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है। इसीलिए सप्तमी की रात्रि सिद्धियों की रात्रि भी कही जाती है। सप्तमी पूजा के दिन तंत्र साधना करने वाले साधक मध्य रात्रि में देवी की तांत्रिक विधि से साधना करते हुए इस मंत्र का जाप करते हैं।

करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्।
कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥
दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघो‌र्ध्वकराम्बुजाम्।
अभयंवरदांचैवदक्षिणोध्र्वाघ:पाणिकाम्॥
महामेघप्रभांश्यामांतथा चैपगर्दभारूढां।
घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्॥
सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्।
एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्॥

इस दिन माँ की आंखें खुलती हैं। षष्ठी पूजा के दिन जिस विल्व को आमंत्रित किया जाता है, उसे सप्तमी के दिन तोड़कर लाया जाता है और उससे माँ की आंखें बनती हैं। इस दिन अनेक प्रकार के मिष्टान एवं कहीं-कहीं तांत्रिक विधि से पूजा होने पर मदिरा भी माँ कालरात्रि को अर्पित की जाती है। कुण्डलिनी जागरण हेतु जो साधक साधना में लगे होते हैं, वे आज सहस्त्रसार चक्र का भेदन करते हैं। इस आराधना के फलस्वरूप भानुचक्र की शक्तियां जागृत होती हैं। कालरात्रि का ध्यान, कवच एवं स्तोत्र का जाप करने से भानु चक्र जाग्रत होता है। व्यापार संबंधी समस्या, ऋण मुक्ति एवं अचल संपत्ति के लिए मां कालरात्रि की पूजा का विशेष महत्व बताया जाता है।

माँ कालरात्रि का ध्यान मंत्र

करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्।
कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥
दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघो‌र्ध्वकराम्बुजाम्।
अभयंवरदांचैवदक्षिणोध्र्वाघ:पाणिकाम्॥
महामेघप्रभांश्यामांतथा चैपगर्दभारूढां।
घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्॥
सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्।
एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्॥

माँ कालरात्रि का स्तोत्र मंत्र

हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती।
कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता॥
कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघन्कुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनी॥
क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी।
कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा॥

माँ कालरात्रि का कवच

ॐ क्लींमें हदयंपातुपादौश्रींकालरात्रि।
ललाटेसततंपातुदुष्टग्रहनिवारिणी॥
रसनांपातुकौमारी भैरवी चक्षुणोर्मम
कहौपृष्ठेमहेशानीकर्णोशंकरभामिनी।
वíजतानितुस्थानाभियानिचकवचेनहि।
तानिसर्वाणिमें देवी सततंपातुस्तम्भिनी॥