Corona Effect : लॉकडाउन और कोरोना महामारी मजदूरों पर पड़ी भारी,लाखों कामगार हुए बेरोजगार, अब तक 45 मजदूरों की हो चुकी है मौत
हाथ में न के बराबर पैसा था और जिम्मेदारी के नाम पर बीवी बच्चों वाला भरापूरा परिवार था। तो फैसला किया पैदल ही निकल चलते हैं। चलते-चलते पहुंच ही जाएंगे। यहां रहे तो भूखे मरेंगे। ज्यादातर अपनी मंजिल तक पहुंच भी गए। कुछ अभी भी रास्ते में हैं। और कुछ ने दम तोड़ दिया। लॉकडाउन के बाद से अब तक 45 मजदूरों की मौत हो चुकी है। किसी ने पैदल चलते-चलते दम तोड़ दिया, तो किसी से खुदकुशी कर ली।
आज एक मई है। आज मजदूर दिवस है। आज लाखों-करोड़ों मजदूरों के सम्मान का दिन है। लेकिन सच्चाई यह है कि आज देश में कोरोना के कारण अचानक लगाया लॉकडाउन प्रवासी मजदूरों पर सबसे ज्यादा भारी पड़ा है। महामारी की मार ने पारंपरिक हुनर के दम पर रोजी-रोटी कमा रहे श्रमिकों को खुद को बदलने पर मजबूर कर दिया है।
लॉकडाउन में काम-धंधा ठप होने से बाजार में न तो इनकी कोई जरूरत बची है और न ही इनके हुनर की कोई कीमत। मजबूर मजदूरों ने दो जून की रोटी के लिए अपने हुनर से किनारा कर दूसरे कामों में हाथ आजमाना शुरू कर दिया है। कोई फल और सब्जी बेच रहा है, कोई कुछ और।
दरअसल, देश में कोरोना वायरस से बचाव के लिए हुए लॉकडाउन होने के चलते दिहाड़ी मजदूरी करने वालों पर आफत टूट पड़ी। फैक्ट्रियां और बाजार बंद होने के कारण उन्हें मजदूरी नहीं मिल रही औऱ न ही वे रेहड़ी आदि लगा पा रहे थे। हर रोज कमाने और खाने वाली इस बिरादरी के पास राशन खत्म हो रहा था। इस वजह से दिल्ली समेत देश के अन्य राज्यों से सैकड़ मजदूर के परिवार पैदल ही पलायन कर गए और आज भी पलायन करने को मजबूर हैं।
केंद्र सरकार ने एक अडवाइजरी जारी कर देश के तमाम राज्य सरकारों को यह निर्देश दिया कि वो अपने-अपने मंजदूरों को वापस लाने का प्रयास करें। कई राज्य सरकारों ने इस काम करना शुरू भी कर दिया है। मजदूरों को वापस गृह राज्य लाने के लिए बसों का इंतजाम किया जा रहा है। पर बिहार की नीतीश तुमार सरकार ने हाथ खड़े कर दिए हैं। सरकार का साफ कहना है कि उसके पास इतनी बसें उपलब्ध नहीं है कि देशभर में फंसे मजदूरों और छात्रों को वापस लाया जा सके। जबकि सच्चाई यह है कि देश के अलग-अलग राज्यों में फंसे सबसे ज्यादा मजदूर और छात्र बिहार के ही हैं।
वास्तव में मजदूरों को जब ये पता चला की जिन फैक्ट्रियों और काम धंधे से उनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ होता था, वह न जाने कितने दिनों के लिए बंद हो गया है, तो वे घर लौटने को छटपटाने लगे। ट्रेन-बस सब बंद थीं। घर का राशन भी इक्का-दुक्का दिन का बाकी था। जिन ठिकानों में रहते थे उसका किराया भरना नामुमकिन लगा।
हाथ में न के बराबर पैसा था और जिम्मेदारी के नाम पर बीवी बच्चों वाला भरापूरा परिवार था। तो फैसला किया पैदल ही निकल चलते हैं। चलते-चलते पहुंच ही जाएंगे। यहां रहे तो भूखे मरेंगे। ज्यादातर अपनी मंजिल तक पहुंच भी गए। कुछ अभी भी रास्ते में हैं। और कुछ ने दम तोड़ दिया। लॉकडाउन के बाद से अब तक 45 मजदूरों की मौत हो चुकी है। किसी ने पैदल चलते-चलते दम तोड़ दिया, तो किसी से खुदकुशी कर ली।
लॉकडाउन की वजह से आज भी लाखों श्रमिक देश के अलग-अलग हिस्सों में फंसे हुए हैं। उनके पास न तो काम है और ना ही खाने-पीने की वस्तुएं। गुजर-बसर करने के लिए भी वे सरकार या सरकारी संस्थाओं पर निर्भर हैं। कोई खाने की सामग्री दे जा रहा है,तो कोई खाने का पैकेट।
देश में कोरोना के बढ़ते मामलों ने उनकी चिंता और बढ़ा दी है। उम्मीद थी कि कोरोना का कहर जल्द खत्म होगा और कल-कारखाने खुलेंगे। निर्माण का काम शुरू होगा। फैक्टरियां चालू होंगी। सड़कें बनेंगी। गाड़ियां चलेंगी। फिस से उनको काम मिलेगा। लेकिन उनकी उम्मीदों पर कोरोना वायरस पानी फेरता नजर आ रहा है। क्योंकि देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। कोरोना मरीजों की संख्या अब 34 हजार के आंकड़े को भी पार कर चुकी है। मरने वालों की संख्या भी 1,147 पहुंच गई है।
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