महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री बनते ही अजित पवार को मिली राहत,एंटी करप्शन ब्यूरो ने सिंचाई घोटाला मामले से जुड़े 9 केस किए बंद,70 हजार करोड़ रुपये का है मामला
महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से बागी बनकर बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाले अजित पवार को बड़ी राहत मिली है। महाराष्ट्र एंटी करप्शन ब्यूरो यानी एसीबी ने उनके खिलाफ सिंचाई घोटाले से जुड़े केस बंद कर दिए हैं। एसीबी के मुताबिक अजित पवार के खिलाफ सिंचाई घोटाले से जुड़ा कोई केस नहीं है।
महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से बागी बनकर बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाले अजित पवार को बड़ी राहत मिली है। महाराष्ट्र एंटी करप्शन ब्यूरो यानी एसीबी ने उनके खिलाफ सिंचाई घोटाले से जुड़े केस बंद कर दिए हैं। एसीबी के मुताबिक अजित पवार के खिलाफ सिंचाई घोटाले से जुड़ा कोई केस नहीं है। सिंचाई घोटाले में अजित पवार के खिलाफ इन्क्वॉयरी स्तर के कुछ मामले बंद कर दिए गए हैं।
महाराष्ट्र एंटी करप्शन ब्यूरो के अधिकारी ने बताया,'जो मामले बंद हुए हैं वे इन्क्वॉयरी स्तर की हैं। किसी को कोई क्लीन चिट नहीं दी गई है। हमारे पास सिंचाई घोटाला मामले में 3000 से ज्यादा केस हैं। ये इन्क्वॉयरिज तीन महीनों से बंद किए जाने के लिए लंबित थीं। आज हमने इन्हें बंद किया है। इसे पूरी तरह से पेशेवर तरीके से किया गया है।' एसीबी के अधिकारी ने बताया कि अजित पवार के खिलाफ मामलों को सशर्त बंद किया गया है और अगर आगे कोई जानकारी मिलती है,तो इसे फिर से खोला जा सकता है।
गौरतलब है कि 2013 के सिंचाई घोटाले की जांच के लिए नियुक्त माधव चिताले कमेटी को देवेंद्र फडनवीस ने 14000 पन्नों के साक्ष्य सौंपे थे। फडनवीस और विधान परिषद में विपक्ष के नेता विनोद तावडे माधव चिताले से उनके औरंगाबाद स्थित कार्यालय में मिले थे और उन्हें 14000 पन्नों के साक्ष्य सौंपे। दिलचस्प बात है कि इन साक्ष्यों को चार बैग में भरकर बैलगाड़ी से चिताले के कार्यालय लाया गया था।
उस समय देवेंद्र फडणवीस ने कहा था, 'हम मांग करते हैं कि माधव चिताले कमेटी इस मामले की जांच कर सच्चाई सामने लाए। हमारे द्वारा पेश किए गए साक्ष्य पर्याप्त हैं। यह हजारों करोड़ रुपए का घोटाला है। इस घोटाले के लिए अधिकारी ही नहीं मंत्री भी जिम्मेदार हैं।'
आपको बताते चलें कि यह घोटाला विदर्भ क्षेत्र में हुआ था और महाराष्ट्र का एंटी करप्शन ब्यूरो इसकी जांच कर रहा था। यह मामला उस वक्त का है, जब राज्य में कांग्रेस और एनसीपी की गठबंधन सरकार थी। 1999 और 2014 के बीच अजित पवार इस सरकार में अलग-अलग मौकों पर सिंचाई मंत्री थे।
आर्थिक सर्वेक्षण में यह सामने आया था कि एक दशक में सिंचाई की अलग-अलग परियोजनाओं पर 70 हजार करोड़ रुपए खर्च होने के बावजूद राज्य में सिंचाई क्षेत्र का विस्तार महज 0.1% हुआ। परियोजनाओं के ठेके नियमों को ताक पर रखकर कुछ चुनिंदा लोगों को ही दिए गए। मामले में 3 हजार टेंडर की जांच हुई थी।
सिंचाई विभाग के एक पूर्व इंजीनियर ने तो चिट्ठी लिख कर ये भी आरोप लगाए थे कि नेताओं के दबाव में कई ऐसे डैम बनाए गए, जिनकी जरूरत नहीं थी। इंजीनियर ने ये भी लिखा था कि कई डैम कमजोर बनाए गए। 2014 में महाराष्ट्र में सत्ता में आने से पहले चुनाव प्रचार के समय बीजेपी ने सिंचाई घोटाले को जबरदस्त मुद्दा बनाया था।
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