क्या है नीलकंठ महादेव मंदिर की महिमा ?
नीलकण्ठ महादेव मंदिर की गणना उत्तर भारत के मुख्य शिव मन्दिरों में की जाती है। संभवतया इसीलिये भगवान नीलकण्ठ महादेव सर्वाधिक लोकप्रिय व महत्वपूर्ण है। तीर्थनगरी ऋषिकेश से नीलकण्ठ तक पहुंचने के दो मार्ग हैं। सड़क मार्ग से नीलकण्ठ जाने के लिये स्वर्गाश्रम रामझूला टैक्सी स्टैण्ड से लक्ष्मणझूला, गरूड़चट्टी होते हुये यमकेश्वर-दुगड्डा मार्ग द्वारा लगभग 32 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता है। दूसरा लगभग 12 किलोमीटर का पैदल मार्ग है।
नीलकंठ महादेव मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर अत्यन्त प्रभावशाली है। नीलकंठ महादेव मंदिर की महिमा अपरंपार है। इस मंदिर के प्रति लोगों में असीम आस्था है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं तथा श्रद्धा भाव से भगवान शिव के चरणों में शीष नवाते हैं।
भगवान भोलेनाथ भी दर पर आने वाले अपने भक्तों की संपूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। भक्तों एवं श्रद्धालुओं पर भगवान शिव की सदा कृपादृष्टि बनी रहती है। यहां आने वाले श्रद्धालु चांदी के बने शिवलिंग का काफी निकटता से दर्शन करते हैं।
यह पावन तीर्थ विष्णुकूट, ब्रह्माकूट तथा मणिकूट पहाड़ियों का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। मणिकूट, विष्णुकूट तथा ब्रह्मकूट के मूल में स्थित एवं मधुमती यानी मणिभद्रा एवं पंकजा यानी चंद्रभद्रा नदियों का संगम होने के कारण यह क्षेत्र शीतलता प्रदान करने वाला है।
श्री नीलकंठ महादेव मंदिर की नक्काशी भी देखते ही बनती है। अत्यंत मनोहारी मंदिर शिखर के तल पर समुद्र मंथन का दृश्य चित्रित किया गया है। जबकि गर्भगृह के प्रवेश-द्वार पर एक विशाल पेंटिंग में भगवान शिव को विष ग्रहण करते हुए दिखाया गया है। मंदिर में दक्षिण भारत का वास्तुशिल्प स्पष्ट है।
मंदिर परिसर में शिवलिंग के साथ अखंड धुना भी विद्यमान है, जो अनादि काल से अनगिनत सिद्ध साधु, संतों की साधना का साक्षी रहा है। बरगद का अति प्राचीन एवं वृहद वृक्ष स्थल की पुरातनता का साक्षी है। इस वृश्र में श्रद्धालु अपनी मन्नत का धागा बांधते हैं तथा पूरा होने पर उसे खोलते और निकालते हैं।
नीलकंठ महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि एवं सावन में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ होती है। कहा जाता है कि जो श्रद्धालु किसी कारण से बद्रीनाथ एवं केदारनाथ नहीं जा पाते, उन्हें नीलकंठ महादेव जरूर जाना चाहिए। भगवान नीलकंठ के दर्शन, पूजन एवं अभिषेक जरूर करना चाहिए।
ऋषिकेश के पास मणिकूट पर्वत पर नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकला विष शिव ने इसी स्थान पर पिया था। विष पीने के बाद उनका गला नीला पड़ गया, इसलिए उन्हें नीलकंठ कहा गया।
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