दीपावली के पावन पर्व पर माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए घर में कब, कहां और कितने दीपक करें प्रज्वलित?
दीपावली के दिन घर में जलाए जाने वाले हर दीपक का एक अलग महत्व और अर्थ होता है। क्या आप जानते हैं घर के किस कोने में रखे जाने वाले दीपक का आपके जीवन में क्या असर पड़ता है? नहीं तो ज्योतिर्विद पंडित शीलभूषण शर्मा आज आप सभी को बता रहे हैं कि दीपावली कहां, कब और कैसे मनाएं? माँ लक्ष्मी का पूजन कब और कैसे करें? धनतेरस से दीपावली तक में कितने दीपक जलाएं और हर दीपक का क्या होता है मतलब?
दीपावली दीपों का त्योहार है। दीपावली रोशनी का त्योहार है। दीपावली स्वास्थ्य के देवता धन्वन्तरि, मृत्यु दे देवता यमराज, धन के देवता कुबेर और यश्वर्य की देवी लक्ष्मी को मनाने का त्योहार है। दीपावली के दिन दीपों की पंक्तियां सजाते हैं। माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए घरों को दीपों से सजाते हैं।
दीपावली के दिन घर में जलाए जाने वाले हर दीपक का एक अलग महत्व और अर्थ होता है। क्या आप जानते हैं घर के किस कोने में रखे जाने वाले दीपक का आपके जीवन में क्या असर पड़ता है? नहीं तो ज्योतिर्विद पंडित शीलभूषण शर्मा आज आप सभी को बता रहे हैं कि दीपावली कहां, कब और कैसे मनाएं? माँ लक्ष्मी का पूजन कब और कैसे करें? धनतेरस से दीपावली तक में कितने दीपक जलाएं और हर दीपक का क्या होता है मतलब?
दीपावली का पावन पर्व इस वर्ष कार्तिक अमावस्या 27 अक्टूबर 2019, रविवार को दोपहर 12:23 से 28 अक्टूबर, सोमवार प्रात: 9:09 तक रहेगी। मध्याह्न, अपराह्न, सायाह्न, प्रदोष, निशीथ और महानिशीथ व्यापिनी अमावस्या 27 अक्टूबर को, रविवार को होने के कारण दीपावली पर्व और लोक महोत्सव इसी दिन होगा।
27 अक्टूबर 2019, रविवार को चित्रा नक्षत्र, पद्म योग, अमावस्यायुक्त प्रदोष, निशीथ और महानिशीथ योगों से युक्त दीपावली अत्यन्त शुभप्रद है। महालक्ष्मी के पूजन के लिए चरलग्न मेष और स्थिरलग्न वृष, सिंह प्रशस्त और मिथुन लग्न मध्यम फलदायक है। शुभ, अमृत और चर चौघड़िया पूजन में विशेष प्रशस्त हैं।
लग्न और चौघड़िया की शुभद व्याप्ति के अनुसार, सद्गृहस्थों के लिए महावसना पूजन के शुभ मुहूर्त:
उत्तर पश्चिमी भारत (जम्मू, जालन्धर, दिल्ली, मेरठ, जयपुर, लुधियाना, अमृतसर)
* प्रदोषकाल में शाम 5.40 से 6. 34 तक मेष और उसके बाद 8.16 तक स्थिर वृष लग्न, स्वाती नक्षत्र तथा शुभ और अमृत चौघड़िया की व्याप्ति के कारण विशेष शुभदायी है।
* निशीथकाल में रात्रि 8.16 से रात्रि 8.31 तक वृष लग्न शुभ और उसके बाद 10.34 तक मिथुन लग्न तथा चर चौघड़िया महावसना के पूजन के लिए मध्यम शुभदायी है।
* महानिशीथ काल में रोग और काल की चौघड़िया के बावजूद रात्रि 10.51 से 12.14 तक कर्क और सिंह लग्न की व्याप्ति होने से विशेष काम्य प्रयोग और अनुष्ठान अत्यन्त शुभदायक होगा।
मध्यपूर्व भारत (इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, राँची, गोरखपुर, टाटानगर)
* प्रदोषकाल में शाम 5.30 से 8.06 तक मेष-वृष लग्न, स्वाती नक्षत्र, तथा शुभ और अमृत चौघड़िया की व्याप्ति के कारण विशेष शुभदायी है।
* निशीथकाल में रात्रि 8.06 से रात्रि 8.21 तक वृष तग्न शुभ और उसके बाद 10.24 तक मिथुन लग्न तथा चर चौघड़िया महावसना के पूजन के लिए मध्यम शुभदायी है।
* महानिशीथ काल में रोग और काल की चौघड़िया के बावजूद रात्रि 10.41 से 12.04 तक कर्क और सिंह लग्न की व्याप्ति होने से विशेष काम्य प्रयोग और अनुष्ठान अत्यन्त शुभदायक होगा।
पश्चिमी-दक्षिणी भारत (महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा)
* प्रदोषकाल में शाम 6.04 से 9 बजे तक मेष-वृष लग्न, स्वाती नक्षत्र, तथा शुभ और अमृत चौघड़िया की व्याप्ति के कारण विशेष शुभदायी है।
* निशीथकाल में रात्रि 9.10 से 11 तक वृष-मिथुन लग्न तथा चर चौघड़िया महावसना के पूजन के लिए मध्यम शुभदायी है।
* महानिशीथ काल में रोग और काल की चौघड़िया के बावजूद रात्रि 11 से 10.34 तक कर्क और सिंह लग्न की व्याप्ति होने से विशेष काम्य प्रयोग और अनुष्ठान अत्यन्त शुभदायक होगा।
पूर्वी भारत (असम, बंगाल, ओड़ीसा)
* प्रदोषकाल में शाम 5 से 7.32 बजे तक मेष-वृष लग्न, स्वाती नक्षत्र, तथा शुभ और अमृत चौघड़िया की व्याप्ति के कारण विशेष शुभदायी है।
* निशीथकाल में रात्रि 7.50 से 10.04 तक वृष-मिथुन लग्न तथा चर चौघड़िया महावसना के पूजन के लिए मध्यम शुभदायी है।
* महानिशीथ काल में रोग और काल की चौघड़िया के बावजूद रात्रि 10.11 से 12.04 तक कर्क और सिंह लग्न की व्याप्ति होने से विशेष काम्य प्रयोग और अनुष्ठान अत्यन्त शुभदायक होगा। इस समय श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त, कनकधारास्तोत्र आदि का अनुष्ठान अत्यन्त मंगलकारी होगा।
दीपावली पूजन में इन बातों का रखें खास ध्यान
* घी मिश्रित सिन्दूर से स्वस्तिक दीवार पर बनाने से वास्तुदोष का प्रभाव कम होता है।
* पूजास्थल को सफेद या हल्के पीले रंग से रंगें। ये रंग शांति, पवित्रता और आध्यात्मिक प्रगति के प्रतीक हैं।
देवमूर्तियां कैसी हों?
* पूजन ईशान कोण में करें, भगवान गणेश की मूर्ति को हमेशा माँ लक्ष्मी की मूर्ति की बायीं ओर रखें, माँ सरस्वती को दाहिनी तरफ रखें।
* मूर्तियों को ईशान कोण में रखें, पानी की छवि एवं कलश को पूजा स्थल की पूर्व या उत्तर दिशा में रखें।
* देवी-देवताओं की मूर्तियां तथा चित्र पूर्व-उत्तर दीवार पर इस प्रकार रखें कि उनका मुख पश्चिम दिशा की तरफ रहे अथवा मुख्य द्वार की तरफ होना चाहिए।
* घर या कार्यस्थल के किसी भी भाग में वक्रतुंड की प्रतिमा अथवा चित्र लगाए जा सकते हैं, किंतु प्रतिमा लगाते समय यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति में इनका मुंह दक्षिण दिशा या नैऋत्य कोण में नहीं हो। इसका विपरीत प्रभाव होता है।
* घर में बैठे हुए गणेशजी तथा कार्यस्थल पर खड़े गणेशजी का चित्र लगाना चाहिए। किंतु यह ध्यान रखें कि खड़े गणेशजी के दोनों पैर जमीन का स्पर्श करते हुए हों, इससे कार्य में स्थिरता आने की संभावना रहती है।
* कमलासना देवी की उपासना के लिए लाल आसन के नीचे कुम्हार, विमौट अथवा खेत की मिट्टी रखें।
दीपमालिका कैसे सजाएं?
कुम्हार के चाक पर बने चौदह दीये चौदह रत्नों के लिए, पांच दीये गंगादि पवित्र नदियों के लिए, इष्टदेवता, कुल देवता, ब्रह्मा, विष्णु, महेशादि देवों के लिए ग्यारह दीये तथा एक दीया तुलसीजी के लिए (कुल 31 दीये) घी के रखें। पांच लोकपाल, दस दिक्पाल, 33 वसु आदि देवों के लिए तथा तीन ग्राम, स्थान और वास्तु देवों के लिए (कुल 51 दीये) तिल के तेल के लिए रखें। इसे ही दीपमालिका कहते हैं।
* घर के बाहर चारों दिशाओं में चार-चार दीए एक साथ लक्ष्मी, गणेश, कुबेर और इन्द्र के लिए प्रजव्लित करें।
* घर में, सीढ़ियों पर, चारदीवारी पर, बरामदे, टैरेस और आस-पास तिल अथवा सरसों के तेल के दीए ही जलाएं।इनके प्रकाश से मिलकर कॉस्मिक-चुम्बकीय उर्जा हमारे अनुकूल तथा इनकी सुगन्ध से वातावरण वायरस के प्रतिकूल हो जाता है।
* सबसे अधिक दीपक दक्षिण-पश्चिम में, उत्तर-पश्चिम में सबसे कम दीपक रखें।
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