समान नागरिक संहिता आखिर कब? बुर्के पर बवाल ने फिर समझाई जरूरत, सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है
कर्नाटक में हुए बुर्का विवाद के बाद अब जगह-जगह एक बार फिर से समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड- Uniform Civil Code) को लागू कराने की बातें होना शुरू हो गई हैं। उत्तराखंड चुनावों के मद्देनजर तो भारतीय जनता पार्टी ने इसे लेकर वादा भी किया है कि अगर उनकी सरकार राज्य में लौटी तो शपथ ग्रहण के तुरंत बाद समान नागरिक संहिता लागू होगी।
कर्नाटक में हुए बुर्का विवाद के बाद अब जगह-जगह एक बार फिर से समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड- Uniform Civil Code) को लागू कराने की बातें होना शुरू हो गई हैं। उत्तराखंड चुनावों के मद्देनजर तो भारतीय जनता पार्टी ने इसे लेकर वादा भी किया है कि अगर उनकी सरकार राज्य में लौटी तो शपथ ग्रहण के तुरंत बाद समान नागरिक संहिता लागू होगी। ये वादा प्रदेश की भाजपा ने देवभूमि उत्तराखंड के स्वरूप में हो रहे बदलाव और उसे लेकर उठने वाली चिंताओं के मद्देनजर किया है।
वैसे बुर्का विवाद पहली वजह नहीं है जिसके कारण देश में समान नागरिक संहिता को लागू कराने का मुद्दा गरमाया हो। इससे पूर्व, इसके समर्थन में कई बार तरह-तरह की माँगें उठती रही हैं। विभिन्न अदालतों ने भी यूनिफॉर्म सिविल कोड के समर्थन में अपनी टिप्पणी की है…।
समान नागरिक संहिता का कोर्ट में समर्थन
पिछले साल की बात है, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी केंद्र सरकार से इसे लागू करने के लिए गंभीरता से विचार करने को कहा था। वहीं सुप्रीम कोर्ट भी इसे 1985 के शाहबानो प्रकरण से लागू कराने के लिए सुझाव देते हुए आया है। अभी कुछ दिन पहले इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने सवाल भी उठाए थे कि आखिर अब तक नागरिक समान संहिता लागू करने के लिए सरकार द्वारा कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया गया। कोर्ट ने देश को गोवा से सीखने की नसीहत दी थी जहाँ 1962 के बाद से ये संहिता लागू है। इनके अलावा दिल्ली हाईकोर्ट भी यूनिफॉर्म सिविल कोड के समर्थन में अपनी टिप्पणी दे चुका है।
क्या है समान नागरिक संहिता?
बता दें कि समान नागिक संहिता लागू कराने की माँगें इसलिए भी इतने तूल पर हैं क्योंकि इसके बाद देश में हर नागरिक के लिए एक समान कानून हो जाएगा। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म का हो, जाति का हो या समुदाय का हो, मगर हर किसी के लिए एक ही कानून होगा। कोई भी पर्सनल लॉ इस यूनिफॉर्म सिविल कोड से ऊपर नहीं होगा। मसलन कानून किसी हिंदू महिला की सुरक्षा के मद्देनजर बनाया जाएगा, तो वहीं कानून मुस्लिम, ईसाई और पारसी महिला को भी सुरक्षा प्रदान करेगा। इसी तरह शादी, तलाक, संपत्ति सबसे जुड़े मामलों में पूरे देश में एक ही कानून लागू होगा।
गोवा में पहले से यूनिफॉर्म सिविल कोड
उल्लेखनीय है एक ओर जहाँ भारत के अन्य राज्यों में यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए जद्दोजहद हो रही है। वहीं गोवा भारत का एक अकेला ऐसा राज्य है, जहाँ वर्ष 1962 से ही यह कानून प्रभावी है। जानकारी के अनुसार, 1961 में गोवा के भारत में विलय के बाद भारतीय संसद ने गोवा में ‘पुर्तगाल सिविल कोड 1867’ को लागू करने का प्रावधान किया था जिसके तहत गोवा में समान नागरिक संहिता लागू हो गई और तब से राज्य में ये संहिता लागू है। पिछले दिनों गोवा में यूनिफॉर्म सिविल कोड की तारीफ जस्टिस एस ए बोबड़े ने भी की थी। सीजेआई ने कहा था कि गोवा के पास पहले से ही वह है जिसकी कल्पना संविधान निर्माताओं ने पूरे देश के लिए की थी।
मुस्लिम करते रहे हैं समान नागरिक संहिता का विरोध
देश में जगह-जगह समय-समय पर समान नागरिक संहिता की जरूरत को महसूस करते हुए इसके लिए आवाज उठाई जाती रही हैं, मगर मुस्लिमों ने हमेशा इसका विरोध किया है। समुदाय के कट्टरपंथी वर्ग का मानना रहा है कि उनके इस्लामी पर्सनल लॉ से ऊपर कोई कानून नहीं है। पिछले दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जब अपनी टिप्पणी की थी तो उसके बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ ने भी अपना बयान जारी किया था। अपने बयान में लॉ बोर्ड ने ईशनिंदा के विरुद्ध कानून बनाने की माँग की थी जबकि यूनिफॉर्म सिविल कोड का खुलकर विरोध किया था।
यूनिफॉर्म सिविल कोड की माँग
याद दिला दें कि भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड समेत कुछ कानून लागू कराने के लिए पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने एक रैली का आह्वान किया था। मगर, पहले तो रैली निकालने के लिए आयोजको को इसकी अनुमति नहीं मिली और जब ये रैली आयोजित हुई तो भड़काऊ नारेबाजी के आरोप में इस रैली में शामिल कई हिंदू नेता पकड़ लिए गए थे। बाद में पता चला था कि रैली में कुछ असामाजिक तत्वों की घुसपैठ हो गई थी जिन्होंने कुछ भड़काऊ बयानबाजी करते हुए माहौल खराब करने का प्रयास किया था।
अब चर्चा क्यों?
कर्नाटक के बुर्का विवाद के बाद से समान नागरिक संहिता की बातें जगह-जगह हो रही हैं, इसकी वजह यही है कि एक किसी मजहब के नाम पर समुदाय विशेष की मनमानियों को रोका जा सके। अभी तक मजहब के नाम पर कई नियम बदलने के प्रयास होते रहे हैं। किसी भी पब्लिक प्लेस पर नमाज पढ़ने की बात हो या हिजाब पहनकर कॉलेज तक आ जाने की। हर नियम को मजहब के हवाले से चुनौती मिलती देख लोगों की माँग यही है कि जब भारत में रहने वाला हर नागरिक भारतीय है और सबको समानता का अधिकार है तो फिर सबके लिए एक समान कानून भी होना चाहिए।
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