देश का एक ऐसा स्टेशन जहां रुकती हैं 10 से अधिक रेल गाड़ियां, लेकिन रेलवे का नहीं है कोई कर्मचारी या अधिकारी
राजस्थान के नागौर में स्थित है जालसू नानक रेलवे स्टेशन। यह एक ऐसा स्टेशन हैं, जहां कोई रेलवे अधिकारी या कर्मचारी नहीं है। इसके बावजूद भी यहां 10 से ज्यादा ट्रेनें रुकती हैं। गांव के लोग ही टिकट काटते हैं और चंदा जुटाकर हर माह करीब 1500 टिकट खरीदते हैं।
आप जरा कल्पना कीजिए,आप किसी रेलवे स्टेशन पर जाते हैं,अपने गनतव्य तक का टिकट चाहते हैं, पर वहां न तो कोई टिकट काउंटर है और नहीं रेलवे का कोई अन्य कर्मचारी नहीं होता है। स्थानीय ग्रामीण आपको अपने पास बुलाते हैं और पैसे लेकर आपको टिकट थमा देते हैं। है न हैरान कर देने वाली बात, पर ये सौ प्रतिशत सत्य है।
राजस्थान के नागौर में स्थित है जालसू नानक रेलवे स्टेशन। यह एक ऐसा स्टेशन हैं, जहां कोई रेलवे अधिकारी या कर्मचारी नहीं है। इसके बावजूद भी यहां 10 से ज्यादा ट्रेनें रुकती हैं। गांव के लोग ही टिकट काटते हैं और चंदा जुटाकर हर माह करीब 1500 टिकट खरीदते हैं।
वास्तव में जानसू नानक गांव में हर घर से एक व्यक्ति फौज में हैं। उनकी सुविधा के लिए सरकार ने 43 साल पहले 1976 में गांव में स्टेशन की सौगात दी। वर्तमान में गांव से 160 से ज्यादा लोग सेना, सीमा सुरक्षा बल, जलसेना, वायुसेना और केंद्रीय रिजरिव पुलिस बल में नौरकी करते हैं। जबकि गांव में 200 से ज्यादा सेवानिवृत्त फौजी हैं।
बताया जाता है कि सरकार ने 2005 में जोधपुर रीजन में कम आमदनी वाले स्टेशनों को बंद कर दिया था। यह स्टेशन भी बंद हो गया था। इसके बाद सेवानिवृत्त फौजियों और ग्रामीणों ने धरना देकर विरोध प्रदर्शन किया। जिसके बाद रेलवे ने 11वें दिन स्टेशन तो शुरू कर दिया, लेकिन ग्रामीणों के सामने एक शर्त रखी, जिसमें रेलवे ने ग्रामीणों से कहा कि उन्हें हर माह 1500 टिकट और प्रतिदिन 50 टिकट बिक्री करने होंगे।
स्थानीय लोगों ने बताया कि ग्रामीणों ने स्टेशन संचालन के लिए एक लाख 50 हजार रुपये का चंदा कर रखा है। यह राशि गांव में ब्याज पर दी गई है। इससे हर महीने तीन हजार रुपये ब्याज मिलता है। वहीं, 1500 टिकट बिक्री के चलते बुकिंग संभालने वाले ग्रामीण को 15 प्रतिशत कमीशन मिलता है। इस राशि से मानदेय भुगतान किया जाता है।
आपको बताते चलें कि 1976 में रेलवे स्टेशन स्वीकृत होने के बाद रेलवे ने यहां एक लकड़ी की कुटिया बनाकर ट्रेनों का ठहराव शुरू कर दिया। ग्रामीणों ने टिकट वितरण तो शुरू कर दिया। लेकिन 2001 तक इस स्टेशन पर किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं थी। तब पंचायत मद से यहां एक हॉल और बरामदे का निर्माण करवाया गया। साथ ही ग्रामीणों ने चंदा जुटाकर प्याऊ बनवाया। साथ ही सेवानिवृत्त फौजियों ने मिलकर फूलों का बगीचा भी तैयार किया है।
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