जानिए, महत्वकांक्षी मिशन चंद्रायन-2 का क्या हुआ?
चंद्रयान-2 मिशन से जुड़े एक वरिष्ठ इसरो अधिकारी ने शनिवार को कहा कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने 'विक्रम' लैंडर और उसमें मौजूद 'प्रज्ञान' रोवर को संभवत: खो दिया है. इससे पहले लैंडर जब चंद्रमा की सतह के नजदीक जा रहा था तभी निर्धारित सॉफ्ट लैंडिंग से चंद मिनटों पहले उसका पृथ्वी स्थित नियंत्रण केंद्र से सपंर्क टूट गया।
हमारा देश भारत अंतरिक्ष में इतिहास रचने से महज 2 कदम की दूरी पर ही रह गया। सतह से सिर्फ 2.1 किलोमीटर की दूरी पर लैंडिंग से 69 सेकंड पहले चंद्रयान-2 का पृथ्वी से संपर्क टूट गया। भारतीय अंतरीक्ष अनुसंधान संगठन के अनुसार शुक्रवार की रात 1:37 बजे लैंडर की चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की प्रक्रिया शुरू हो गई थी, लेकिन लगभग 2.1 किमी ऊपर संपर्क टूट गया।
दरअसल, इसरो 11 साल बाद दोबारा चांद पर भारत का झंडा फतेह करने के लिए मिशन पर था। सब कुछ ठीक रहता, तो भारत दुनिया का ऐसा पहला देश बन जाता जो चांद की दक्षिणी सतह पर उतरता। चांद का यह वह अंधेरा हिस्सा है जहां उतरने का किसी देश ने साहस नहीं किया है। यह भारत का दूसरा चांद मिशन था। इससे पहले 2008 में चंद्रयान-1 को भेजा गया था।
डेटा की हो रही है समीक्षा- के. सिवन
इसरो के अध्यक्ष के. सिवन ने बताया कि डेटा की समीक्षा की जा रही है। विक्रम लैंडर को रात 1:30 बजे से 2:30 बजे के बीच चांद की सतह पर उतरना था। इसरो के वैज्ञानिकों ने रात 1:30 बजे चंद्रयान 2 के विक्रम लैंडर को धीरे-धीरे चांद की सतह पर उतारना शुरु किया था। विक्रम लैंडर को पहले चांद की कक्षा में मौजूद ऑर्बिटर से अलग किया जाना था और फिर उसे चंद्रमा की सतह की ओर ले जाना था। लेकिन भारतीय अंतरीक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो का यह मिशन कतई नाकाम नहीं हुआ है। हम असफल नहीं हुए हैं। क्योंकि उम्मीद अभी भी बाकी है। करीब 978 करोड़ रुपए की लागत वाले चंद्रयान-2 मिशन का सबकुछ खत्म नहीं हुआ है।
चंद्रायन-2 की क्या थी प्रक्रिया?
आपको बताते चलें कि लैंडर के अंदर प्रज्ञान नाम का रोवर भी था जिसे लैंडर के सुरक्षित उतर जाने के बाद बाहर निकलकर चांद की सतह पर घूमना और वैज्ञानिक जांच पड़ताल करना था। इसरो द्वारा चंद्रयान 2 के लिए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को चुना गया था जहां पर विक्रम लैंडर की सॉफ़्ट लैंडिंग करवाई जानी थी। सब कुछ सही जा रहा था लेकिन सतह पर पहुंचने से कुछ देर पहले ही लैंडर से संपर्क टूट गया।
चांद पर क्यों जा रहे हैं हम?
पृथ्वी के सबसे नजदीक चंद्रमा ही ऐसा उपग्रह है, जिसपर खोज करने की दुनिया में होड़ मची हुई है। चंद्रमा पर पहुंचते ही अंतरिक्ष में कई और खोजों का प्रयास किया जा सकता है। भारत का चंद्रयान मिशन-2 चांद पर खोज करने और नई नई टेक्नोलॉजी का प्रयोग करने के लिए एक परीक्षण केंद्र के रूप में होगा। चंद्रयान-2 के सफल होते ही भारत एक नए युग में प्रवेश कर जाएगा, हम दुनिया को बता सकेंगे कि हमारी पहुंच अंतरिक्ष में हर जगह हो रही है। इससे दुनिया में भारत की धाक बढ़ेगी। प्रौद्योगिकी को बढ़ावा मिलेगा, भावी वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं को प्रेरणा मिलेगी।
चंद्रयान-2 का क्या उद्देश्य है?
हमारे देश के वैज्ञानिक चांद पर पहुंचने का प्रयास इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि चंद्रमा ही हमें पृथ्वी के कई महत्वपूर्ण रहस्यों और सौर मंडल की जानकारियां दे सकता है। वैसे तो चंद्रमा पर कई देशों ने खोज किया लेकिन चांद के बारे में गहन खोज किसी ने भी नहीं किया है। भारत इस मिशन के जरिए चंद्रमा पर व्यापक शोध करेगा। भारतीय वैज्ञानिक चंद्रमा की उत्पत्ति का व्यापक स्तर पर अध्ययन करेंगे। ज्ञात हो कि चंद्रयान-1 के तहत भारतीय वैज्ञानिकों ने पानी के होने का सबूत इकट्ठा किया था। इस मिशन के बाद उस पर और भी कई खोज हो सकते हैं।
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ही क्यों?
भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कोई यान भेजने वाला पहला देश है। अब तक चांद पर गए ज़्यादातर मिशन इसकी भूमध्य रेखा के आस-पास ही उतरे हैं। यदि भारत क़ामयाब रहता तो अमरीका, रूस और चीन के बाद भारत चंद्रमा पर किसी अंतरिक्ष यान की सॉफ़्ट लैंडिंग करवाने वाला चौथा देश बन जाता। चंद्रायन-2 मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव विशेष रूप से दिलचस्प है। क्योंकि इसकी सतह का ज्यादातर हिस्सा उत्तरी ध्रुव की तुलना से अधिक छाया में दिखाई देता है।जितना हिस्सा छाया में रहता है इस पर पानी होने की संभावनाएं हैं। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर कुछ जीवाश्म होने का रिकॉर्ड मौजूद है, जिसके तहत पानी की आशंका है।
क्या है चंद्रयान-2?
भारतीय अंतरीक्ष अनुसंधान संगठन ने 22 जुलाई 2019 को चंद्रयान-2 लांच किया गया था। चंद्रयान में तीन प्रमुख हिस्से ऑर्बिटर (वजन 2,379 किलोग्राम), लैंडर विक्रम (1,471 किलोग्राम) और एक रॉवर प्रज्ञान (27 किलोग्राम) है। आपको बताते चलें कि ये प्रक्षेपण पहले 15 जुलाई को होनी थी, लेकिन आखिरी मौके पर कुछ तकनीकी खामी सामने आने के बाद प्रक्षेपण टाल दिया गया था।
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