जानिए, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने जा रहे उद्धव ठाकरे का कैसा रहा है सामाजिक जीवन और महाराष्ट्र की राजनीति में क्या है उनका स्थान और योगदान?
उद्धव ठाकरे की पत्नी का नाम रश्मि ठाकरे है। उनके दो बेटे हैं आदित्य ठाकरे और तेजस ठाकरे। आदित्य ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय नजर आते हैं, वे युवा सेना के अध्यक्ष हैं जबकि छोटा बेटा तेजस अभी न्यूयॉर्क में पढ़ाई कर रहा है। आदित्य ठाकरे विधायक भी है। उन्होंने इसी बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और भारी जीत दर्ज की।
महाराष्ट्र को आज नया मुख्यमंत्री मिलने जा रहा है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे आज मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं। शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के 29वें मुख्यमंत्री होंगे। राज्य में एनसीपी-शिवसेना-कांग्रेस गठबंधन यानी महाराष्ट्र विकास अघाड़ी की सरकार बनने जा रही है। आइए आज जानते हैं कि उद्धव ठाकरे का महाराष्ट्र की राजनीति में क्या है स्थान और योगदान?
उद्धव ठाकरे शिवसेना पार्टी के संस्थापक बाल ठाकरे के बेटे हैं। उद्धव का जन्म 27 जुलाई 1960 को मुंबई में हुआ था। उद्धव को पहले राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन जब 2002 में पिता बालासाहेब ने उन्हें बीएमसी चुनाव के लिए पार्टी की जिम्मेदारी सौंपी तो उन्होंने कमाल कर दिखाया। उनके नेतृत्व में पार्टी ने सबसे पहले 2002 में बृहन्नमुंबई म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन (बीएमसी) का चुनाव जीता था इसके बाद बालासाहेब की तबीयत खराब होने के चलते जनवरी 2003 में वे पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष चुने गए थे।
उद्धव ठाकरे की पत्नी का नाम रश्मि ठाकरे है। उनके दो बेटे हैं आदित्य ठाकरे और तेजस ठाकरे। आदित्य ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय नजर आते हैं, वे युवा सेना के अध्यक्ष हैं जबकि छोटा बेटा तेजस अभी न्यूयॉर्क में पढ़ाई कर रहा है। आदित्य ठाकरे विधायक भी है। उन्होंने इसी बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और भारी जीत दर्ज की।
राजनीति और चुनावी कार्यक्रमों में सक्रिय रहने वाले उद्धव ठाकरे एक हिंदू अखबार, जिसका नाम मराठी समाचार पत्र है, उसका संचालन करते हैं। शिवसेना पार्टी अपनी उंचाईयों को छू रही थी इसी बीच पार्टी को दो बार झटका लगा। पार्टी के नेता रहे नारायण राणे की उद्धव से मतभेद होने के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी और वे बीजेपी में शामिल हो गए। इसके बाद उद्धव के छोटे भाई राज ठाकरे ने भी 2006 में पार्टी छोड़ दी और अपनी नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली है।
शिवसेना की खासियत ये रही कि इसने राज्य स्तर पर ही शुरू से काम किया और इसी तरह से कई राजनीतिक दलों को जीत दिलाई, लेकिन इसने कभी भी राष्ट्रीय स्तर पर आकर राजनीति करने का निर्णय नहीं लिया। राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की पहचान बनाने के बावजूद उद्धव ठाकरे ने अपने पिता बालासाहेब ठाकरे की तरह ही महाराष्ट्र के लोगों के लिए हमेशा काम करने का फैसला किया।
उद्धव ठाकरे पॉलीटीशियन से पहले एक जाने-माने लेखक भी हैं साथ ही एक प्रोफेशनल फोटोग्राफर भी हैं। इन्होंने कई पत्रिकाओं के लिए भी काम किया है। शुरू-शुरू में उन्हें राजनीति में आने का बिल्कुल मन नहीं था। करीब 40 साल तक उन्होंने अपने आप को राजनीति से दूर रखा और वे अपने पिता से उलट दूसरी दुनिया यानी वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी में अपना करियर बनाना चाहते थे।
उद्धव ठाकरे को 2002 में बीएमसी के चुनाव के लिए पार्टी की तरफ से जिम्मेदारी दी गई और इस चुनाव में उद्धव ने कमाल का काम किया। इस चुनाव में उद्धव की नेतृत्व क्षमता ही थी कि शिवसेना को इस चुनाव में जीत हासिल हुई। इसके बाद उनका मन इसमें रमने लगा और फिर 2004 में बालासाहेब ने उन्हें पार्टी का अगला अध्यक्ष घोषित कर दिया।
बालासाहेब ठाकरे का मुखपत्र सामना की कमान भी उद्धव ठाकरे ने अपने हाथों में ले ली। जून 2006 से ही वे इस मराठी लोकल न्यूजपेपर के प्रमुख संपादक हैं। 2013 में बालासाहेब की मृत्यु के बाद शिवसेना पार्टी का पूरा नियंत्रण उद्धव ठाकरे के हाथ में आ गया। उनके छोटे भाई जिन्हें बालासाहेब का उत्तराधिकारी कहा जाता था उन्होंने उद्धव के पार्टी चीफ बनने के बाद ही 2006 में शिवसेना छोड़ दी थी। शिवसेना से अलग होने के बाद राज ठाकरे ने अपनी अलग पार्टी बनाई।
अगर बात उद्धव ठाकरे की उपलब्धियों की करें, तो ये अपनी उम्र के ढलान पर राजनीति में शामिल हुए, बावजूद इसके काफी कम समय में ही ये साबित कर दिया कि राजनीति में वे भले ही नए हैं पर दूर के खिलाड़ी हैं। पहली बार में ही अपनी नेतृत्व क्षमता से बीएमसी में पार्टी की जीत से अपनी योग्यता का परिचय दे दिया।
कर्ज राहत अभियान के तहत उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के विदर्भ के किसानों का भला किया। 2007 के दौर में सूखा पड़ने के कारण किसानों के आत्महत्या की दर काफी बढ़ गई थी और वे कर्ज के तले डूबे जा रहे थे। इसी दौरान उद्धव ठाकरे ने केंद्र और राज्य सरकार की परवाह किए बिना आगे बढ़कर उनकी मदद की।
शिवसेना ने एक बार फिर से 2012 में बीएमसी चुनाव में जीत हासिल की। इन चुनाव में बीजेपी और शिवसेना बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई। यहीं से क्षेत्रवाद से आगे बढ़कर पार्टी ने विकास की दिशा में अपना फोकस बनाया। 'मराठी मानुष' स्लोगन वाली पार्टी का ये कदम बेहद चर्चा में रहा था।
शुरूआत में शिवसेना पार्टी की छवि एक हिंसक और सैन्य गतिविधियों वाली थी लेकिन उद्धव ठाकरे के कमान संभालने के बाद पार्टी की छवि में काफी सुधार हुआ और अब इसे भी अन्य पार्टियों की तरह सुसंगठित और विकास केंद्रित पार्टी माना जाता है जो राज्य और जनविकास के लिए काम करता है।
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