इन वजहों से आदिवासी डा. आंबेडकर को अपना नेता नहीं मानते हैं -ग्लैडसन डुंगडुंग
डा. भीमराम अम्बेदकर ने संविधान के मसौदा से आदिवासी शब्द को चलाकी से हटाकर हमारे लिए अनुसूचित जनजाति शब्द का प्रयोग करते हुए हम आदिवासियों के उपर जाति व्यवस्था थोपकर हमारे आदिवासी पहचान को मटियामेट कर दिया।
यह संदेश उन गैर-आदिवासी बुद्धिजीवियों के लिए है जो अपने भाषणों और लेखनों में आदिवासियों को ‘वनवासी’ कहकर संबोधित करते हैं। यह हमें अस्वीकार्य है और अब बर्दास्त से बाहर हो चुका है। हम आदिवासी हैं। हमें वनवासी कहकर गाली मत दीजिये। हम आदिवासियों को वनवासी कहकर संबोधित करने का सीधा अर्थ है कि आप हमें जंगली और असभ्य कहकर गाली दे रहे हैं। इसलिए अच्छा होगा कि आपलोग आदिवासियों का मसीहा बनना बंद करें।
यदि आप लोग आदिवासियों की इज्जत नहीं कर सकते हैं तो हमारे तरफ से बोलना और लिखना बंद करें। हमारे पूर्वज पिछले तीन सौ वर्षों से अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ते आये हैं इसलिए हमलोग भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ लेंगे। मरंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा ने संविधानसभा में आदिवासियों का पक्ष रखते हुए कहा था कि हम आदिवासी हैं और हमें हमारे लिए आदिवासी शब्द के आलावा और कोई दूसरा शब्द नहीं चाहिए।
लेकिन डा. भीमराम अम्बेदकर ने संविधान के मसौदा से आदिवासी शब्द को चलाकी से हटाकर हमारे लिए अनुसूचित जनजाति शब्द का प्रयोग करते हुए हम आदिवासियों के उपर जाति व्यवस्था थोपकर हमारे आदिवासी पहचान को मटियामेट कर दिया। Tribe का अर्थ जन होना चाहिए न कि जनजाति। जन के साथ जाति शब्द कैसे जोड़ा गया? किसने ऐसा शब्द ढूंढा हमारे लिए?
हम आदिवासी लोग सामुदायिक व्यवस्था से आते हैं न कि वर्ण और जाति व्यवस्था से। यदि आदिवासी डा. अम्बेदकर को अपना नेता नहीं मानते हैं तो इसका मूल कारण यही है। यदि आप आदिवासियों के हित में काम करते है तो सोच-समझकर बोलिये और लिखिये। वरना आदिवासी इतिहास आपको भी माफ नहीं करेगा। इसलिए आप लोगों से विनम्र निवेदन हैं कि हम आदिवासियों की पहचान और अस्मिता के साथ खिलवाड़ करना बंद कीजिये।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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