भारत-पाकः दोनों की ज्यादती
इस्लामाबाद के भारतीय दूतावास में ऐसा क्या हो रहा था, जिसे नाकामयाब करने के लिए पाकिस्तानी फौज और गुप्तचर विभाग ने अपने जवानों को अड़ा दिया। वहां 1 जून को और कुछ नहीं, बस एक इफ्तार पार्टी हो रही थी। न तो वहां कोई भारतीय स्वाधीनता का जलसा हो रहा था, न किसी भारतीय विदेश मंत्री की सम्मान-सभा हो रही थी, न कोई पाकिस्तान-विरोधी सम्मेलन हो रहा था। क्या इफ्तार पार्टी में भी अडंगा लगाना किसी इस्लामी राष्ट्र को शोभा देता है ?
इस्लामाबाद के भारतीय दूतावास में ऐसा क्या हो रहा था, जिसे नाकामयाब करने के लिए पाकिस्तानी फौज और गुप्तचर विभाग ने अपने जवानों को अड़ा दिया। वहां 1 जून को और कुछ नहीं, बस एक इफ्तार पार्टी हो रही थी। न तो वहां कोई भारतीय स्वाधीनता का जलसा हो रहा था, न किसी भारतीय विदेश मंत्री की सम्मान-सभा हो रही थी, न कोई पाकिस्तान-विरोधी सम्मेलन हो रहा था। क्या इफ्तार पार्टी में भी अडंगा लगाना किसी इस्लामी राष्ट्र को शोभा देता है ?
यह ठीक है कि पाकिस्तान के हुक्मरान भारत को एक ‘हिंदू राष्ट्र’ ही मानते हैं, जैसे पाकिस्तान को वे एक मुस्लिम राष्ट्र मानते हैं। यदि ऐसा है तो ‘हिंदू राष्ट्र’ के उच्चायुक्त अजय बिसारिया द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी का पाकिस्तान के हुक्मरानों को जोर-शोर से स्वागत करना चाहिए था लेकिन वहां हुआ क्या ? वहां निमंत्रित लगभग 300 अतिथियों को पाकिस्तानी पुलिस ने हद से ज्यादा तंग किया। ज्यादातर को अंदर जाने ही नहीं दिया गया। ये लोग कौन थे ? ये सब पाकिस्तान के गिने-चुने भद्रलोग थे। ये ऐरे-गैरे-नत्थूखेरे लोग नहीं थे। जब पाक सरकार की इस हरकत पर भारत की तरफ से एतराज़ जताया गया तो पाकिस्तान का जवाब था कि आपने भी 23 मार्च और 28 मई को यही किया था। 23 मार्च को पाकिस्तान-दिवस और 28 मई को इफ्तार पार्टी दिल्ली के पाक-उच्चायोग में जब मनाए गए तो भारतीय पुलिस ने भी यही किया था। याने जैसे को तैसा किया गया।
मैं सोचता हूं कि दोनों देशों ने यह ठीक नहीं किया। यदि भारत ने आतंकवादी हमलों और चुनावी माहौल में वैसा कर भी दिया था तो पाकिस्तान सरकार, खास तौर से इमरान खान को अपनी ऊंचाई पर टिके रहने चाहिए था। शालीनता दिखाना हमेशा बड़े भाई के लिए जरुरी नहीं होता। छोटे भाई की शालीनता का जलवा तो और भी शानदार होता है। इमरान ने मोदी को जीत पर बधाई दी और उसके कई दिन पहले उन्होंने कहा था कि मोदी यदि जीत गए तो भारत-पाक संबंध सुधरने की काफी संभावना है लेकिन अब लगता है कि जैसे को तैसा की नीति पर यदि दोनों देश चलते रहे तो अगले चार-पांच साल में कई बालाकोट और भी होते रहेंगे। कुछ दिन बाद होनेवाले शंघाई सहयोग संगठन के बिश्केक सम्मेलन में पता नहीं ये दोनों प्रधानमंत्री हाथ भी मिलाएंगे या नहीं ? मैं तो दोनों से कहूंगा कि आप दोनों अपना-अपना दिल टटोलो और खुद से पूछो कि दोनों देशों के आपसी संबंध सुधारने के लिए क्या आप दोनों कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि जो आज तक दोनों देशों के सारे हुक्मरान नहीं कर सके।
(लेखक के ये अपने विचार हैं)
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