देश में बढ़ रही है गरीबों की संख्या, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की रिपोर्ट में खुलासा,गांवों में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग घटी
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों की मानें तो, ‘कम से कम बीते पांच दशक के दौरान ऐसा कभी नहीं हुआ, जब एक अवधि के दौरान रियल टर्म में उपभोक्ता व्यय में कमी दर्ज की गई हो। ये आंकड़े संकेत करते हैं कि देश में गरीबी के स्तर में खासी बढ़ोत्तरी हुई है। इन आंकड़ों से जाहिर होता है कि गरीबी में कम से कम 10 फीसदी अंकों का इजाफा हुआ है।’
देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में अभी भी वक्त लग सकता है। केंद्र सरकार को इस दिशा में कारगर और ठोस कदम उठाना होगा। अर्थव्यवस्था को झटका देने वाली खबर आई है। देश के ग्रामीण इलाकों में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में पिछले चार दशकों की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली है। इससे लगता है कि अभी अर्थव्यवस्था को सुधरने में काफी समय लगेगा और सरकार को भी मांग बढ़ाने के लिए कई सुधारों पर काम करना होगा।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी एनएसओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक गांवों में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में 8.8 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। वित्त वर्ष 2017-18 में उपभोक्ता खर्च में 3.7 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। यह इसलिए बड़ी बात है,क्योंकि बीते चार दशक में पहली बार यह कमी देखने को मिली है। रिपोर्ट के मुताबिक उपभोगव्यय में कमी से संकेत मिलते हैं और इससे पता चलता है कि देश में गरीबी से प्रभावित लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के व्यय सर्वेक्षण में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि ग्रामीण इलाकों में मांग में कमी कुछ ज्यादा है। सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया, ‘2017-18 में प्रति व्यक्ति खर्च घटकर 1,446 रुपये प्रति महीना रह गया,जबकि 2011-12 में यह 1,501 रुपये था।’
सर्वे के मुताबिक, ‘प्रति महीना खपत व्यय यानी एमपीसीई के ये आंकड़े रियल टर्म में हैं, जिसका मतलब है कि इन्हें 2009-10 को आधार वर्ष मानते हुए मुद्रास्फीति के साथ समायोजित किया गया है। वर्ष 2011-12 में दो साल की अवधि के दौरान वास्तविक एमपीसीई 13 फीसदी बढ़ी थी।’
इस सर्वे की खास बात यह है कि यह गांवों में उपभोक्ता व्यय में भारी गिरावट का उल्लेख करता है, जिसमें वर्ष 2017-18 में 8.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। हालांकि शहरों में छह साल के दौरान 2 फीसदी की बढ़ोतरी रही है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने इससे पहले 1972-73 में उपभोग व्यय में भारी कमी के आंकड़े जारी किए थे। उस समय खपत में गिरावट के लिए वैश्विक तेल संकट को जिम्मेदार ठहराया गया था। रिपोर्ट में कहा गया, ‘एनएसओ रिपोर्ट इस साल जून में जारी होनी थी,जिसे नकारात्मक निष्कर्षों के कारण रोक दिया गया था। यह सर्वेक्षण जुलाई, 2017 और जून, 2018 के बीच कराया गया था। यह वही समय है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी) लागू किया था।’
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों की मानें तो, ‘कम से कम बीते पांच दशक के दौरान ऐसा कभी नहीं हुआ, जब एक अवधि के दौरान रियल टर्म में उपभोक्ता व्यय में कमी दर्ज की गई हो। ये आंकड़े संकेत करते हैं कि देश में गरीबी के स्तर में खासी बढ़ोत्तरी हुई है। इन आंकड़ों से जाहिर होता है कि गरीबी में कम से कम 10 फीसदी अंकों का इजाफा हुआ है।’
विशेषज्ञों के मुताबिक, एक चिंता की बड़ी बात यह भी है कि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के सर्वेक्षण में पहली बार एक दशक में खाद्य पदार्थों की खपत में गिरावट दर्ज की गई है, जो देश में कुपोषण बढ़ने की ओर भी इशारा करती है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के सर्वे के मुताबिक 2017-18 के दौरान गांवों में खाने पर प्रति व्यक्ति खर्च महज 580 रुपये प्रति महीना रहा,जो 2011-12 (रियल टर्म में) के 643 रुपये की तुलना में 10 फीसदी कम था। वहीं शहरी इलाकों में 2017-18 में प्रति व्यक्ति खर्च 946 रुपये महीना रहा। इस तरहसे शहरी इलाकों में वृद्धि स्थिर बनी हुई है।
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