सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला,लॉकडाउन के दौरान की पूरी सैलरी नहीं देने वाली कंपनियों के खिलाफ नहीं होगी दण्डात्मक कार्रवाई,कर्मचारी-नियोक्त आपसी समझौते से सुलझाएंगे मामला
देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन नहीं देने वाली कंपनियों के खिलाफ कोई दण्डात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। कर्मचारी और नियोक्त (कंपनी) आपसी समझौते से मामला सुलझाएंगे। इसमें राज्यों के श्रम विभाग मदद करेंगे। लॉकडाउन में 54 दिन का पूरा वेतन देने के मामले पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया।
देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन नहीं देने वाली कंपनियों के खिलाफ कोई दण्डात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। कर्मचारी और नियोक्त (कंपनी) आपसी समझौते से मामला सुलझाएंगे। इसमें राज्यों के श्रम विभाग मदद करेंगे। लॉकडाउन में 54 दिन का पूरा वेतन देने के मामले पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया।
अदालत ने अपने फैसले में साफ तौर पर कहा कि अगर लॉकडाउन के दौरान प्राइवेट कंपनियां अपने कर्मचारियों को पूरा वेतन देने में नाकाम रही हैं, तो भी उन पर अभी सख्त कार्रवाई नहीं होगी। अदालत ने आपस में विवाद सुलझाने पर जोर दिया है। इस मामले में अगली सुनवाई जुलाई के आखिरी हफ्ते में होगी। सुनवाई की तारीख अभी तय नहीं है।
दरअसल, गृह मंत्रालय ने 29 मार्च को एक आदेश जारी किया,जिसमें कहा गया कि जब देशभर में लॉकडाउन चल रहा है, तब सभी नियोक्ताओं और कामगारों को तय तारीख पर वेतन दें और इसमें कोई कटौती न करें। गृह मंत्रालय का यह आदेश लॉकडाउन के 54 दिनों के लिए था।
लेकिन गृह मंत्रालय के आदेश के खिलाफ हैंड टूल्स मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन और जूट मिल्स एसोसिएशन समेत कुछ प्राइवेट कंपनियों ने सर्वोच्च अदालत में याचिका लगाई,जिसपर 15 मई को अदालत ने सुनवाई कर अंतरिम आदेश जारी किया और कहा कि गृह मंत्रालय का आदेश नहीं मानने वाली कंपनियों पर कार्रवाई न हो।
शुक्रवार को भी जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय कृष्ण कौल और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने सुनवाई की और कहा कि लॉकडाउन के दौरान पूरी सैलरी देने में नाकाम रही कंपनियों पर सख्त कार्रवाई न की जाए। कंपनियों को जुलाई के आखिरी हफ्ते तक के लिए यह राहत मिली है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर कंपनियों और कर्मचारियों के बीच विवाद न सुलझे तो श्रम विभाग को मामला सुलझाने में मदद करनी होगी। राज्य सरकारों को भी सैटलमेंट में मदद करनी होगी और इसकी रिपोर्ट लेबर कमिश्नर को सौंपनी होगी। केंद्र और राज्य सरकारें इस मुद्दे पर टुकड़ों-टुकड़ों में ध्यान न दें। उन्हें सैटलमेंट के बारे में लेबर डिपार्टमेंट के जरिए सर्कुलर निकालना चाहिए। केंद्र सरकार 4 हफ्ते में एफिडेविट पेश कर गृह मंत्रालय के 29 मार्च के ऑर्डर पर अपना जवाब दाखिल करे।
आपको बताते चलें कि सर्वोच्च अदालत ने 4 जून को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने उस वक्त कहा था कि कर्मचारी को बिना वेतन दिए नहीं छोड़ना चाहिए। कंपनियों के पास पैसे नहीं हैं तो सरकार दखल दे सकती है। वेतन का 50 फीसदी पेमेंट भी किया जा सकता है। हालांकि, सरकार का कहना था कि जो कंपनियां सैलरी देने में दिक्कत होने की बात कर रही हैं, उन्हें अपनी ऑडिटेड बैलेंस शीट कोर्ट में पेश करने को कहा जाना चाहिए।
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