जानिए, क्यों महाराष्ट्र के बाद झारखंड से भी हुई बीजेपी सरकार की विदाई? क्या दोनों राज्यों में सहयोगी पार्टियों की अनदेखी बीजेपी को पड़ी भारी?
झारखंड में बीजेपी की हार के कई कारण हो सकते हैं। सत्ता विरोधी लहर भी हो सकती है। राज्य सरकारों के कार्य करने के तौर-तरीके भी हो सकते हैं। सरकारों का जनता से किए वायदों पर खरा नहीं उतरना भी हो सकता है। लेकिन इन तमाम कारणों में से एक कारण सहयोगी पार्टियों की अनदेखी भी है। महाराष्ट्र और झारखंड में तो ऐसा ही दिखता है। इन दोनों राज्यों में पार्टी के पाले से सहयोगियों के खिसकने की वजह से बीजेपी ने सत्ता से दूर हो गई।
झारखंड विधानसभा चुनाव नतीजों ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि बीजेपी लगातार कमजोर हो रही है। बीजेपी का जनाधार कम हो रहा है। बीजेपी से जनता का मोह भंग हो रहा है। नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अब तक तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए हैं,जिसमें से दो राज्यों महाराष्ट्र और झारखंड से बीजेपी की सरकार की विदाई हो गई है।
बीजेपी की हार के कई कारण हो सकते हैं। सत्ता विरोधी लहर भी हो सकती है। राज्य सरकारों के कार्य करने के तौर-तरीके भी हो सकते हैं। सरकारों का जनता से किए वायदों पर खरा नहीं उतरना भी हो सकता है। लेकिन इन तमाम कारणों में से एक कारण सहयोगी पार्टियों की अनदेखी भी है। महाराष्ट्र और झारखंड में तो ऐसा ही दिखता है। इन दोनों राज्यों में पार्टी के पाले से सहयोगियों के खिसकने की वजह से बीजेपी ने सत्ता से दूर हो गई।
महाराष्ट्र में बीजेपी साथ चुनाव लड़ने के बाद शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद को लेकर सख्त रुख अख्तियार कर लिया और कांग्रेस तथा एनसीपी के पाले में चली गई, वहीं झारखंड में ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन के साथ सीटों को लेकर तालमेल नहीं हो पाने की वजह से दोनों पार्टियों ने अलग-अलग लड़ने का फैसला किया। हालांकि, बीजेपी ने एजेएसयू अध्यक्ष सुदेश महतो के खिलाफ सिल्ली से उम्मीदवार नहीं दिया, तो एजेएसयू ने मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ जमशेदपुर पूर्व से अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था।
सवाल यह उठता है कि क्या बीजेपी अपने पुराने सहयोगी एजेएसयू को साथ रखने में कामयाब हो जाती, तो झारखंड में उसकी सरकार वापसी कर लेती। एजेएसयू को साथ न रख पाने की वजह से बीजेपी की यहां से विदाई हुई है। इसके लिए पार्टियों को मिले वोट प्रतिशत के आंकड़ों पर गौर करना होगा। 81 में से 79 सीटों पर लड़ने वाली बीजेपी को करीब 33.37 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि 58 सीटों पर लड़ने वाली एजेएसयू पार्टी को 8.10 फीसदी वोट पा रही है। दोनों पार्टियों का साझा वोट प्रतिशत 41.47 हो जाता है।
दूसरी तरफ, महागठबंधन के घटक दलों में सबसे बड़ी पार्टी जेएमएम को 18.72 फीसदी, आरजेडी को 2.75 फीसदी और कांग्रेस को 13.88 फीसदी के करीब वोट मिले हैं। इस तरह महागठबंधन को सम्मलित रूप से 35.35 फीसदी वोट मिले हैं। ऐसी स्थिति में बीजेपी और एजेएसयू का सम्मलित वोट महागठबंधन के मुकाबले 6.12 फीसदी ज्यादा है। जाहिर है इन दोनों पार्टियों ने गठबंधन कर लिया होता तो लगभग 6 फीसदी अधिक वोट शेयर का असर सीटों पर भी जरूर दिखता।
क्या बीजेपी को एजेएसयू के साथ न होने पर इतने बड़े नुकसान का भान नहीं था। शायद रहा भी होगा। लेकिन गठबंधन के लिए एजेएसयू की ओर 18 सीटों की मांग ने दोनों पार्टियों की राहें जुदा कर दीं थीं। 2014 के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों का गठबंधन था और आजसू 8 सीटों पर लड़ी थी, जिसमें से 5 पर उसे जीत मिली थी।
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