भारत-चीन 2019 में भी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बने रहेंगे-IMF
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से जारी वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक के मुताबिक 2019 में भारत की विकास दर 6.1 फीसदी रहने का अनुमान है। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 2020 तक यह 7 फीसद तक पहुंच सकती है। इसी साल अप्रैल में आईएमएफ ने अनुमान जाहिर किया था कि भारत की विकास दर 7.3 फीसद रहेगी, लेकिन इसके कुछ ही महीनों बाद उसने आंकड़ों को बदल दिया है।
भारत और चीन साल 2019 में भी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बने रहेंगे। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ ने ये उम्मीद जाहिर की है। हालांकि आईएमएफ ने भारत की विकास दर में 1.2 फीसदी तक की कटौती का अनुमान जाहिर किया है।
आईएमएफ की ओर से जारी वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक के मुताबिक 2019 में भारत की विकास दर 6.1 फीसदी रहने का अनुमान है। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 2020 तक यह 7 फीसद तक पहुंच सकती है। इसी साल अप्रैल में आईएमएफ ने अनुमान जाहिर किया था कि भारत की विकास दर 7.3 फीसद रहेगी, लेकिन इसके कुछ ही महीनों बाद उसने आंकड़ों को बदल दिया है।
आईएमएफ की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में कॉरपोरेट और पर्यावरण नियामकों की अनिश्चितता के कारण भारत की विकास दर धीमी पड़ सकती है। गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों की सेहत की चिंता भी इसमें जुड़ी हुई है। भारत के अलावा 2019 में चीन की विकास दर 6.1 फीसदी और 2020 में 5.8 फीसदी रहने का अनुमान जाहिर किया गया है। 2018 में चीन की विकास दर 6.6 फीसदी थी। विश्व की अर्थव्यवस्था के बारे में आईएमएफ ने अनुमान जाहिर किया है कि 2019 में विकास दर 3.3 फीसदी और 2020 में 3.4 फीसदी हो सकती है।
आईएमएफ रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका और चीन के बीच चल रही ट्रेड वार के कारण 2020 तक वैश्विक जीडीपी में 0.8 फासदी तक गिर सकती है। आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने बताया कि अगर 2018 और 2019 में अमेरिका और चीन के बीच सभी शुल्क समाप्त कर लिए गए होते तो वैश्विक जीडीपी 0.8 फासदी तक बढ़ जाती।
उन्होंने बताया कि विकास में कमजोरी की मुख्य वजह वैश्विक व्यापार और उत्पादन गतिविधियों में तेजी से गिरावट आना है। इसके अलावा उच्च शुल्क और दीर्घकालीन व्यापार नीतियों की अनिश्चितता निवेश और मांग को नुकसान पहुंचा रही हैं। उन्होंने कहा कि नीति निर्धारकों को विकास में तेजी लाने के लिए प्रतिबंधों को हटाना चाहिए और दीर्घकालीन समझौते करने चाहिए। इसके साथ ही क्षेत्रीय तनाव को कम करने और घरेलू नीतियों की अनिश्चितता को खत्म करने के लिए भी कदम उठाने चाहिए।
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